उत्तराखंडः कई जगहों पर प्‍यास बुझाने को तरस रहे लोग! यहां स्वीमिंग पूल की आई बाढ़, प्रशासन की अनदेखी से संचालकों के हौसले बुलंद

Uttarakhand: People are yearning to quench their thirst at many places! There is a flood of swimming pools here, the operators are emboldened by the administration's negligence

रुद्रपुर। उत्तराखंड के जनपद ऊधम सिंह नगर क्षेत्र में बिना किसी आधिकारिक अनुमति के व्यावसायिक रूप से स्वीमिंग पूल संचालित किए जा रहे हैं। न केवल ये पूल सुरक्षा मानकों को ताक पर रखकर चल रहे हैं, बल्कि इनमें अधाधुंध जल दोहन कर प्राकृतिक संसाधनों का भी दोहन किया जा रहा है। प्रशासन की अनदेखी से संचालकों के हौसले बुलंद हैं और सरकारी राजस्व को भी बड़ा नुकसान हो रहा है। जनपद में पानी की बर्बादी हो रही है और विभाग गहरी नींद में है। शहर के गावों में भी जगह-जगह अवैध रूप से स्वमिंग पूल खुल गए हैं। स्विमिंग पूल में इन दिनों उमड़ रही भीड़ से संचालक मनमानी फीस तो वसूल रहे हैं लेकिन लघु सिंचाई विभाग में पंजीकरण नहीं करा रहे। बिना पंजीकरण के चलते रहे दर्जनों स्विमिंग पूल में सुरक्षा मानकों की भी अनदेखी है। गाइडलाइन के अनुसार स्वीमिंग पूल के संचालन के लिए जिला क्रीड़ाधिकारी, स्वास्थ्य विभाग और उपजिलाधिकारी (एसडीएम) से अनुमति लेना अनिवार्य है। साथ ही पूल में प्रशिक्षित प्रशिक्षक, फिल्ट्रेशन सिस्टम और सुरक्षा उपकरणों की मौजूदगी जरूरी होती है। मगर क्षेत्र में संचालित अधिकांश स्वीमिंग पूल सिर्फ व्यवसायिक मुनाफे के लिए बनाए गए हैं, जिनका न कोई लाइसेंस है न ही तकनीकी मानक पूरे किए गए हैं।

जनपद के अनुसार जनपद ऊधम सिंह नगर में शहर से लेकर देहात तक नियमों को ताक पर रखकर कुकुरमुत्तों की तरह स्वीमिंग पूल बन गए हैं। बिना एनओसी के चल रहे इन पूल के संचालक मोटी कमाई कर रहे हैं। इसके अलावा इन पूलों में रोजाना लाखों लीटर पानी बर्बाद हो रहा है। हालांकि, प्रशासनिक अधिकारी बिना एनओसी चल रहे स्वीमिंग पूल को बंद कराने की बात कह रहे हैं।

जनपद में रुद्रपुर,किच्छा,काशीपुर,गदरपुर,दिनेशपुर,शक्तिफॉर्म,सितारगंज के साथ और भी अनेको स्थान पर अचानक दर्जनों स्वीमिंग पूल खुल गए हैं। अधिकतर स्वीमिंग पूल खाली पड़े प्लाट में बिना किसी मानक के बनाए गए हैं। जबकि कुछ किसानों ने सड़क किनारे खेतों में बना रखे हैं। गर्मी बढ़ते ही इन पूलों पर ठंडक पाने वालों का तांता लगा रहता है। गर्मी में ये पूल ठंडक का अहसास भले ही कराते हों लेकिन इससे हो रहे पानी की बेहिसाब बर्बादी से भूगर्भीय जल को काफी नुकसान हो रहा है। एक स्वीमिंग पूल में औसतन 60 से 70 हजार लीटर पानी जमा होता है। जिसे दिन में दो बार भरा जाता है। पूल को खाली करने के लिए इस पानी को नालियों में बहा दिया जाता है। कुल मिलाकर इन पूलों से प्रतिदिन लाखों लीटर पानी बर्बाद हो रहा है। भूगर्भीय जल दोहन के खिलाफ आए दिन प्रशासन की ओर से जागरूकता कार्यक्रम किए जा रहे हैं। लेकिन इन स्वीमिंग पूलों पर प्रशासन मौन हैं। नियमानुसार भूगर्भीय जल का दोहन करने वालों को वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट लगाना जरूरी है। लेकिन किसी भी पूल संचालक ने ऐसा सिस्टम लगाने की जहमत नहीं उठाई है, जिससे पानी का रिसाइकिलिंग किया जा सके।

स्वीमिंग पूल के संचालन के लिए कई मानक हैं। फैमिली पूल, क्लब पूल और दूसरे पूलों के लिए अलग अलग गहराई होती हैं। इसके लिए प्रदूषण, भूगर्भ जल विभाग के साथ नगर पालिका परिषद से एनओसी लेनी पड़ती है। एनओसी के अलावा पूल पर एक लाइफ सेवर व कोच की नियुक्ति अनिवार्य है। लेकिन जिले में अधिकतर पूलों पर यह सुविधा नदारद है। भीषण गर्मी में स्वीमिंग पूल युवाओं के लिए बेहतर विकल्प बन रहे है। ऐसे में पूल संचालक इस मौसम में अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं। 40 से 60 रुपये प्रति घंटा की दर से पूल में प्रवेश दे रहे हैं। जबकि कुछ पूलों में दो हजार रुपये में मासिक सदस्यता भी दी जा रही है। इसके लिए अलग से कोई पार्टी का आयोजन करना हो तो उसके लिए भी पूल बुक किया जा रहा है। पूल में मस्ती के दौरान साफ सफाई का ख्याल नहीं रखा जा रहा है। चर्म रोग विशेषज्ञ डाक्टरों की माने तो पूल के पानी को साफ रखने के लिए इसमें क्लोरीन आदि के अलावा बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए दवाईयों का छिड़काव जरूरी होता है। इसके अलावा स्वीमिंग पूल में पहले बाहर नहाने के बाद पूल संचालक द्वारा दिये गए अंडरवीयर का ही प्रयोग किया जाना चाहिए। लेकिन यहां ऐसा नहीं होता, जिससे लोगों में त्वचा रोग का खतरा बना रहता है।