हैरान करने वाला रहस्यः धरती के इस कोने में बहता है ‘खून’ का झरना! साल 1911 में थॉमस ग्रिफिथ टेलर ने की थी खोज, तो क्या ग्लेशियर के नीचे मौजूद है अलग दुनिया?

यूं तो धरती पर कई रहस्यमयी जगह हैं, जहां की खूबसूरती और रहस्य दोनों ही लोगों को हैरान कर देते हैं। ऐसी ही रहस्यमयी जगह बर्फ से ढके अंटार्कटिका में भी है, जहां लाल रंग का खूनी झरना बहता है। इस झरने के बारे में जब कोई सुनता है या फिर इसे देखता है तो वह हैरान रह जाता है। बर्फ से अंटार्कटिका में बहकर आ रहा पानी लाल रंग का होता है, जो देखकर खून की तरह लगता है। ये अंटार्कटिका का वो क्षेत्र है जहां सूरज की रोशनी महीनों तक नहीं पड़ती है। खबरों के मुताबिक 1911 में ब्रिटिश खोजकर्ताओं ने अंटार्कटिका के टेलर ग्लेशिर पर खून का झरना बहते देखा था। ये खूनी झरना पूर्वी अंटार्कटिका के विक्टोरिया लैंड पर है।
बताया जाता है कि खून का यह झरना कई दशकों से बह रहा है। जानकारों की मानें तो खून ये बताता है कि इस ग्लेशियर के नीचे जिंदगी पनप रही है। ग्लेशियर का यह खून नमकीन सीवेज है, जो एक बेहद प्राचीन इकोसिस्टम का हिस्सा है। टेलर ग्लेशियर के नीचे एक अत्यधिक प्राचीन जगह है। ऐसा माना जाता है कि वहां पर जीवन मौजूद है। जिन वैज्ञानिकों ने इस खून के झरने को नजदीक जाकर देखा और सैंपल लिया, वो बताते हैं कि यह स्वाद में नमकीन है। जैसे खून होता है, लेकिन यह इलाका किसी नरक से कम नहीं है, यहां जाना मतलब जान जोखिम में डालना। खून के इस झरने की खोज सबसे पहले ब्रिटिश खोजकर्ता थॉमस ग्रिफिथ टेलर ने 1911 में की थी। अंटार्कटिका के इस इलाके में यूरोपियन वैज्ञानिक सबसे पहले पहुंचे थे।
शुरुआत में थॉमस और उनके साथियों को लगा था कि ये लाल रंग की एल्गी है, लेकिन ऐसा था नहीं। बाद में यह मान्यता रद्द की गई। 1960 में पता चला कि यहां ग्लेशियर के नीचे लौह नमक है। यानी फेरिक हाइड्रोक्साइड यह बर्फ की मोटी परत से वैसे निकल रहा है जैसे आप टूथपेस्ट से पेस्ट निकालते हैं। साल 2009 में यह स्टडी आई है कि यहां पर ग्लेशियर के नीचे सूक्ष्मजीव हैं, जिनकी वजह से ये खून का झरना निकल रहा है। ये सूक्ष्मजीव इस ग्लेशियर के नीचे 15 से 40 लाख साल से हैं। यह एक बहुत बड़े इकोसिस्टम का छोटा हिस्सा है। हम इंसान इसका छोटा हिस्सा ही खोज पाए हैं। यह इतना बड़ा है कि इसके एक छोर से दूसरे छोर तक की खोज करने में कई दशक लग जाएंगे। क्योंकि इस इलाके में आना-जाना और रहना बेहद मुश्किल है।
इस झरने में लोहे के साथ-साथ सिलिकॉन, कैल्सियम, एल्यूमिनियम और सोडियम के कण भी निकल रहे हैं। यह एक दुर्लभ सबग्लेशियल इकोसिस्टम के बैक्टीरिया का घर है। जिनके बारे में किसी को पता नहीं है। ये ऐसी जगह जिंदा हैं, जहां पर ऑक्सीजन है ही नहीं। बैक्टीरिया बिना फोटोसिंथेसिस के ही जी रहे हैं। नए बैक्टीरिया पैदा कर रहे हैं। इस जगह का तापमान दिन में माइनस सात डिग्री सेल्सियस रहता है। यानी खून का झरना अत्यधिक ठंडा है। ज्यादा नमक होने की वजह से ये बहता रहता है, नहीं तो जम जाता। दिक्कत ये है कि इंसानों के पास ऐसी तकनीक, रोबोट या यंत्र नहीं है जो ग्लेशियर की गहराई में मौजूद किसी जगह की डिटेल निकाल सके।
जहां से इन बैक्टीरिया और केमिकल्स की धार निकल रही है, उसके अंदर जाकर स्टडी करना मुश्किल है वैज्ञानिक अभी तक यह नहीं समझ पाए हैं कि खून के झरने को अंदर से कौन प्रेशर दे रहा है, जिसकी वजह से यह ग्लेशियर से बाहर निकल रहा है। इसके पीछे भूगर्भीय दबाव है या कुछ और इसका पता नहीं चल पा रहा है। खून के झरने का स्रोत ग्लेशियर के नीचे लाखों सालों से दबा हुआ है। जानकारों की मानें तो अगर यहां की स्टडी करने का मौका और मिले तो यह पता चल सकता है कि पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत कैसे हुई।