कब जागेगा शिक्षा विभाग: सैकड़ों स्कूल के पास नहीं मान्यता फिर भी एडमिशन जारी! मासूम के भविष्य से हो रहा खिलवाड़,कार्रवाई सिर्फ हवा-हवाई

When will the education department wake up: Hundreds of schools do not have recognition but admissions are still going on! The future of the innocent is being played with, action is just a formality

विद्यालय को शिक्षा का मंदिर कहा जाता है और वहां पढ़ाने वाले शिक्षकों को भाग्य विधाता,लेकिन जब इसी शिक्षा के मंदिर पर प्रश्न उठना शुरु हो जाए तो आप अंदाजा लगा सकते हैं की बच्चों का भविष्य किस तरफ़ जा रहा है। मामला रुद्रपुर का है, जहां पर सैकड़ों ऐसे विद्यालय हैं जो बिना मान्यता संचालित हो रहे हैं। अर्थात पूरी तरह से फर्जी विद्यालय,ऐसे बिना मान्यता वाले विद्यालयों पर कठोर कार्रवाई का शासन का आदेश है। लेकिन यह आदेश जनपद ऊधम सिंह नगर के जिलामुख्यालय पर हवा-हवाई साबित हो रहा है। बिना मान्यता के चल रहे विद्यालयों पर प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पा रही है। आवाज 24x7 न्यूज पोर्टल की पड़ताल में पता चला कि जनपद में अभी भी सैकड़ों स्कूल बगैर मानक पूरा किए बेरोकटोक संचालित हो रहे हैं।

जनपद ऊधम सिंह नगर के रुद्रपुर में सैकड़ों स्कूलों के पास मान्यता नहीं है,फिर भी बच्चों को दाखिला दे रहे हैं। स्कूल की कॉपी किताब यूनिफार्म बचे रहे हैं। और शिक्षा विभाग अनजान बना हुआ है। बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वाले इन स्कूलों पर कार्रवाई नहीं की जा रही है। इस कारण क्षेत्रों में लगातार अवैध स्कूलों की तादाद बढ़ती जा रही है। शिक्षा विभाग के पोर्टल पर लगभग 1000 से अधिक निजी स्कूल पंजीकृत हैं,जबकि सैकड़ों स्कूलों की जानकारी विभाग के पास नहीं है। उन निजी स्कूलों के पास मान्यता नहीं है। बिना मान्यता के कक्षा एक से आठ तक और हाईस्कूल से इंटर के स्कूलों का संचालन किया जा रहा है। इन सभी स्कूलों में एक अप्रैल से शुरू होने वाले नए सत्र की पूरी तैयारी कर ली गई है। बच्चों के दाखिले की प्रक्रिया चल रही है। स्कूलों के पास मान्यता नहीं है, उसके बाद भी वो अपनी यूनिफार्म बच्चों को बेच रहे है। किताबों के लिए भी वेंडर निर्धारित कर रखे हैं। शिक्षा विभाग ने बिना मान्यता के चल रहे स्कूलों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है। इस कारण ऐसे स्कूलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। बिना मान्यता के चल रहे काफी निजी स्कूल मान्यता के लिए आवेदन कर चुके हैं। आवेदन करने के साथ ही स्कूल मान्यता मिलना पक्का मान लेते हैं और स्कूल का संचालन शुरू कर देते हैं, लेकिन कागजात पूरा नहीं होने के कारण मान्यता नहीं दी जा सकती है। विभाग इन स्कूलों को बंद भी नहीं करा रहा है।

शिक्षा के विस्तारीकरण के नाम पर लम्बे समय से सरकारी एवं गैर सरकारी मान्यताप्राप्त स्कूलों के साथ-साथ “अवैध स्कूलों” की बाढ़ सी आ गयी है। कोई किराये के कमरे में तो कोई अपने घर में ही स्कूल चला रहे हैं। जिस तरह झोला छाप डाक्टर गली गली दवाखाना चला रहे हैं उसी तरह बिना मान्यता प्राप्त स्कूल रूपी दूकान चला रहे हैं। इन बिना मान्यता प्राप्त स्कूलों के बच्चों की वजह से शैक्षणिक घोटाले होते हैं क्योंकि इन बच्चों के नाम किसी न किसी सरकारी अथवा मान्यताप्राप्त स्कूलों में पंजीकृत कराये जाते हैं और वहीं से परीक्षा दिलवाकर सार्टिफिकेट भी दिलवा दिये जाते हैं। फर्जी दाखिले के नाम पर एक मोटी रकम वसूली जाती है और नकल की सुविधा उपलब्ध कराकर बढ़िया परीक्षाफल दिलवाया जाता है। इन नकली स्कूलों की वजह से असली स्कूलों का वजूद ही खतरे में नहीं पड़ता जा रहा है बल्कि शिक्षा के स्तर में गिरावट आ रही है। शिक्षा के नाम दूकानें चलाकर शिक्षा को नीलाम करने का दौर शुरू हो गया है और इस कार्य में मान्यताप्राप्त तथा बिना मान्यताप्राप्त दोनों जुटे हुये हैं।

रुद्रपुर में कुकुरमुत्तों की तरह गली-गली चलने वाले दूकाननुमा इन स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने वाले खुद शिक्षक प्रायः जूनियर हाईस्कूल से लेकर इंटर तक ही पढ़े होते हैं और उन्हें ढंग से पढ़ाने का तरीका नहीं होता है। गलियों कस्बों में बिना मान्यता स्कूलों के खुलने का एक सिलसिला लगातार चल रहा है। गाँव गली मोहल्लों में खुलने वाले कुछ स्कूल तो चलते हैं तो कुछ साल दो चार साल बाद हो जाते हैं। इन बिना मान्यताप्राप्त स्कूलों में ऐसा कोई नहीं है जो कि चोरी से चलता हैं। बल्कि सभी खुलेआम विभागीय शह पर चलते हैं। इन फर्जी स्कूलों को बंद कराने की मुहिम सरकार हर साल शिक्षा सत्र शुरू होने पर सिर्फ कागजों पर चलाती है और हर साल नोटिस देकर कागज पर ही इन अपंजीकृत स्कूलों को बंद करवा दिया जाता है। दरअसल स्कूल खोलना बुरी बात नहीं है बल्कि एक समय में स्कूल चलाने वाले का समाज में बहुत सम्मान किया जाता था क्योंकि शिक्षा दान को सर्वोत्तम दान और शिक्षा देने वाले को दानवीर कहा जाता है। यह सही है कि सरकारी शिक्षा की चरमराती व्यवस्था में इन गैर सरकारी स्कूलों खासतौर पर मालिन बस्तियों में स्कूलों का बहुत महत्व है। इन गैर सरकारी विद्यालयों से शिक्षा का स्तर एवं लोगों की अभिरूचि बढ़ी है। फलस्वरूप आज नब्बे फीसदी परिवारों के बच्चे इन गैर सरकारी स्कूलों में पढ़ने जा रहे हैं। अभिभावक को सिर्फ पढ़ाई से मतलब होता है विद्यालय मान्यता प्राप्त है या नही। लेकिन बिना मान्यता के स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों को आगे चलकर परेशानी उठानी पड़ सकती है। वही इन अवैध स्कूल के संचालन में किसी रसूखदार, सत्ताधारी नेता और शिक्षा विभाग के अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त हैं। इसी कारण इन पर नोटिस का कोई असर नही होता है,वही शिक्षा विभाग भी सिर्फ दिखावे के लिए कागजों में ही अपनी कार्रवाई करता नजर आता हैं, धरातल पर कोई कार्रवाई होती नजर नही आती हैं।