आवाज विशेषः बापू और शास्त्री जयंती! सादगी और सत्यनिष्ठा के प्रेरक प्रतीक
आज 2 अक्टूबर को देशभर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री की जयंती मनाई जा रही है। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत बनाने में महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री का योगदान अविस्मरणीय है। गांधीजी को ‘राष्ट्रपिता’ और शास्त्रीजी को ‘सत्यनिष्ठ नेतृत्व के आदर्श’ के रूप में आज भी याद किया जाता है। उनकी सादगी, त्याग और देश के प्रति अटूट निष्ठा नई पीढ़ियों को सतत प्रेरित करती है।
महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा को अपने जीवन और संघर्ष का मूल मंत्र बनाया। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को जनांदोलन का रूप दिया। सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे प्रयासों के माध्यम से उन्होंने जनता को यह सिखाया कि बिना हिंसा के भी अन्याय और अत्याचार का विरोध किया जा सकता है। गांधीजी ने न केवल राजनीतिक आज़ादी का सपना देखा, बल्कि सामाजिक बुराइयों जैसे छुआछूत, असमानता और अस्पृश्यता को भी समाप्त करने का प्रयास किया। उनके लिए स्वराज का अर्थ केवल अंग्रेजों से मुक्ति नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर और नैतिक समाज का निर्माण था।
वहीं लाल बहादुर शास्त्री का व्यक्तित्व भी गांधीजी की विचारधारा से गहराई से प्रभावित था। वे सादगी और ईमानदारी के प्रतीक माने जाते थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने देश को न केवल मजबूत नेतृत्व दिया, बल्कि कठिन परिस्थितियों में आत्मनिर्भरता की राह भी दिखाई। 1965 के भारत-पाक युद्ध के समय शास्त्रीजी का दिया गया नारा ‘जय जवान, जय किसान’ आज भी देशवासियों को ऊर्जा और प्रेरणा देता है। इस नारे ने सैनिकों को सीमा पर लड़ने का साहस और किसानों को खेतों में अन्न उत्पादन की शक्ति दी। शास्त्रीजी का जीवन अत्यंत सादा था। वे सत्ता में आने के बाद भी आम आदमी की तरह जीते रहे। उनका मानना था कि नेता को वही करना चाहिए, जो वह जनता से अपेक्षा करता है। उनकी विनम्रता और सत्यनिष्ठा ने उन्हें देश के करोड़ों लोगों के दिलों में अमर कर दिया।
गांधीजी और शास्त्रीजी दोनों ने ही भारतीय समाज को यह संदेश दिया कि बड़े बदलाव के लिए विलासिता या शक्ति की आवश्यकता नहीं, बल्कि ईमानदारी, सादगी और निष्ठा चाहिए। एक ने विदेशी सत्ता से मुक्ति दिलाई, तो दूसरे ने स्वतंत्र भारत को आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बनाने की राह दिखाई। आज जब देश विकास और प्रगति की ओर अग्रसर है, तब इन दोनों महान विभूतियों की जयंती हमें यह याद दिलाती है कि राष्ट्रनिर्माण में सच्चाई, नैतिकता और जनहित सर्वोपरि होना चाहिए। गांधीजी का स्वच्छता और ग्रामोद्योग पर जोर तथा शास्त्रीजी का किसानों और सैनिकों पर विश्वास आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उनके जीवनकाल में था। इसलिए 2 अक्तूबर केवल एक स्मृति दिवस नहीं, बल्कि प्रेरणा का पर्व है। यह दिन हमें यह संकल्प लेने के लिए प्रेरित करता है कि हम भी अपने जीवन में सादगी, ईमानदारी और देशभक्ति को सर्वोच्च स्थान देंगे। यही इन दोनों महान नेताओं को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।