राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर विशेषः स्वतंत्र मीडिया की भूमिका और चुनौतियां?

Special on National Press Day: Role and challenges of independent media?

आज 16 नवंबर को देशभर में राष्ट्रीय प्रेस दिवस उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। यह दिवस प्रेस की स्वतंत्रता, जिम्मेदारी और समाज में उसकी भूमिका की याद दिलाता है। इसकी शुरुआत 1966 में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) के गठन के साथ हुई, जो प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा और पत्रकारिता के मानकों को बनाए रखने के लिए स्थापित की गई थी। प्रेस काउंसिल का पहला अध्यक्ष न्यायमूर्ति जेआर मुद्गल थे और इस दिवस को मनाने का उद्देश्य प्रेस को एक जिम्मेदार संस्था के रूप में मजबूत करना है। आज के डिजिटल युग में, जब सूचना का प्रवाह तेज और विविध हो गया है, राष्ट्रीय प्रेस दिवस की प्रासंगिकता और बढ़ गई है। भारत में प्रेस की जड़ें स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी हैं। 1780 में जेम्स ऑगस्टस हिकी द्वारा प्रकाशित ‘बंगाल गजट’ भारत का पहला समाचार पत्र था, जिसने ब्रिटिश शासन की आलोचना की। राजा राममोहन राय, बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी जैसे नेताओं ने समाचार पत्रों को जनजागरण का हथियार बनाया। तिलक का ‘केसरी’ और गांधी का ‘हरिजन’ ने स्वतंत्रता आंदोलन को गति दी।

स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार बनाया, जिसमें प्रेस की स्वतंत्रता शामिल है। आपातकाल के दौरान प्रेस पर सेंसरशिप लगाई गई, लेकिन जयप्रकाश नारायण और अन्य पत्रकारों के संघर्ष ने इसे बहाल किया। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया इसी संदर्भ में बनी, जो प्रेस की स्वायत्तता सुनिश्चित करती है। इतिहास बताता है कि प्रेस लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, जो सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करता है। आज भारत में प्रेस विविध और शक्तिशाली है। रजिस्ट्रार ऑफ न्यूजपेपर्स फॉर इंडिया (आरएनआई) के अनुसार 2023 तक देश में 1,18,000 से अधिक पंजीकृत समाचार पत्र और पत्रिकाएं हैं, जो 17 से अधिक भाषाओं में प्रकाशित होती हैं। डिजिटल मीडिया ने क्रांति ला दी है, ऑनलाइन पोर्टल्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने सूचना को त्वरित बनाया। प्रेस ने कई भ्रष्टाचार उजागर किए। हालांकि प्रेस स्वतंत्रता खतरे में है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) की 2024 वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत 159वें स्थान पर है, जो 2023 के 161 से सुधार तो दिखाता है, लेकिन अभी भी चिंताजनक है। फेक न्यूज का प्रसार सोशल मीडिया पर बढ़ा है। कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) के अनुसार 2014 से अब तक 50 से अधिक पत्रकार मारे गए।

राष्ट्रीय प्रेस दिवस हमें प्रेस को मजबूत बनाने का अवसर देता है। सरकार को प्रेस सुरक्षा कानून बनाना चाहिए, जैसे पत्रकार सुरक्षा अधिनियम। मीडिया संस्थानों को फैक्ट-चेकिंग यूनिट्स स्थापित करनी चाहिए। शिक्षा में पत्रकारिता पाठ्यक्रम को मजबूत करें, ताकि नैतिकता सिखाई जाए। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर एआई आधारित मॉडरेशन और मीडिया साक्षरता अभियान चलाएं। प्रेस काउंसिल को अधिक अधिकार दें, जैसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी कवर करना। नागरिकों की भूमिका महत्वपूर्ण है, वे जिम्मेदार मीडिया का समर्थन करें और फेक न्यूज को रिपोर्ट करें। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को प्रेस स्वतंत्रता संधियों का पालन करना चाहिए। राष्ट्रीय प्रेस दिवस केवल उत्सव नहीं, बल्कि आत्ममंथन का दिन है। प्रेस लोकतंत्र की रीढ़ है, बिना स्वतंत्र प्रेस के लोकतंत्र अधूरा है। महात्मा गांधी ने कहा था कि प्रेस की स्वतंत्रता लोकतंत्र की स्वतंत्रता है। आज के दौर में जब सूचना युद्ध का हथियार बन गई है, प्रेस को सत्य का प्रहरी बनना होगा। सरकार, मीडिया और समाज मिलकर प्रेस की रक्षा करें। इस दिवस पर संकल्प लें कि हम एक निष्पक्ष, साहसी और जिम्मेदार प्रेस का निर्माण करेंगे, जो भारत को मजबूत लोकतंत्र बनाए।