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अगर परिभाषा अखंड वीरता की कहना तो काकोरी कांड को ज़रूर याद करना! कौन थे क्रांतिकारी राजेन्द्र लाहिड़ी? जिन्होंने फांसी से पहले जेल में कसरत करते हुए जेलर को दिया था रोंगटे खड़े कर देने वाला जवाब

Remember the famous Kakori kand? Who was Rajendra lahiri?He gave goosebumps replies to the Jailer just before hanging

अगर परिभाषा अखंड वीरता की कहना, तो काकोरी कांड की उस रात का एक्शन सम्पूर्ण तथा प्रथम श्रेणी में कहना। क्योंकि सत्य तो यह है कि जब-जब काकोरी के वीरों का पाठ दोहराया जाएगा एक नाम निरंतर रूप से याद आएगा। एक नाम हमेशा हमेशा के लिए निडर, निर्भीक और स्वतंत्रता से पुकारा जायेगा। वह नाम है- राजेंद्र लाहिड़ी का।

भारत की आज़ादी के लिए सैकड़ों क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया था. लेकिन आज की पीढ़ी इन क्रांतिकारियों को भूल सी गयी है. स्वाधीनता आंदोलन के कुछ नामचीन क्रांतिकारियों भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्र शेखर आज़ाद, राम प्रसाद बिस्मिल, उधम सिंह, अशफ़ाक़उल्ला ख़ान और खुदीराम बोस को छोड़ दें तो हमें बाकियों के नाम तक याद नहीं हैं. ये क्रांतिकारी भी हमें इसलिए याद रह गये क्योंकि इतिहास की किताबों में इनके बारे में काफ़ी कुछ लिखा गया है, इसका मतलब ये नहीं है कि जिनके बारे में नहीं लिखा गया उनका योगदान कम था. आज भी ‘स्वाधीनता आंदोलन’ के कई ऐसे गुमनाम हीरोज़ हैं, जिनका ज़िक्र करना बेहद ज़रूरी है.राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी भारत के उन अमर शहीद क्रांतिकारियों में से एक हैं जिन्होंने जीते-जी देश की सेवा की और उसी देश के लिए एक दिन मात्र 26 साल की उम्र में कुर्बान भी हो गये.

क्रांतिकारियों पर शोध कर रहे डीएसबी कॉलेज नैनीताल के छात्र शुभांकर वर्मा ने राजेन्द्र लाहिड़ी पर कुछ लिखा है जो आपके सामने इस लेख के माध्यम से प्रस्तुत है।

शुभांकर कहते है कि जीवन में हमेशा एक ऐसा अवसर आता है जब सब कुछ आपके नजदीक होता है और उसे उपयोग में लाते ही एक ऐसी चिंगारी को जाग्रत किया जा सकता है जिसकी किसी ने कल्पना भी न की हो। शायद, कुछ ऐसी ही एक अग्नि एक ज्वाला उत्पन्न हुई थी, शुरुआती उन्नीसवीं शादाब्दी में, जब राजेंद्र लाहिड़ी भारत के कुछ वीर क्रांतिकारियों से मिले।तब एक ऐसी नीव का आरंभ हुआ जो समाजवाद के विचारो को सबसे ऊपर रख सका। ब्रितानी सरकार के दमन को पूर्ण रूप से हिला डाला! जी हां! इतिहास साक्षी है, कि एक क्रांतिकारी पर भी अंग्रेजो के कितने ही मुखबिर लगाए जाते थे, तब जाकर यह पता लगता था कि आखिर उनका असली नाम क्या है! 

 

परंतु एक दुखद सत्य तो यह भी है कि, इसी माटी के कुछ धूर्त अथवा गद्दार साथियों के कारणवश ही हमने अपने क्रांतिकारी परिवार से कितने ही साथी खो दिए जिनको हम आज भी याद करते है और उनके लिए आज हमारा तन और मन समर्पित है। उदाहरण के तौर पर पंडित चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह व उनके साथियों को स्मृति में लाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। 

खैर राजेंद्र लाहिड़ी पर वापिस आते है। उनका का एक अद्भुत रोचक किस्सा है। गोंडा जेल में उनकी फांसी के कुछ क्षण पहले ( लगभग 3 दिन पहले ) जब वह अपने जेल कक्ष में कसरत ( दंड बैठक ) कर रहे थे, उनको कसरत करते देख जेलर अचम्भित था, जेलर ने राजेंद्र से प्रश्न करा, यह तुम क्या कर रहे हो?

जेलर ने राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी से सवाल किया कि ‘पूजा-पाठ तो ठीक हैं, लेकिन ये कसरत क्यों करते हो तुम्हे फांसी होने वाली है!
फांसी से पहले कसरत करने का क्या आश्रय?
क्या इसका कुछ अभिप्राय निकलेगा? 

राजेंद्र लाहिड़ी का उत्तर सुन, शायद वह जेलर तो क्या, अगर अंग्रेजो को भारत की भाषा समझ आती तो निश्चित रूप से अपनी आधी विद्या जिसका सिद्धांत होता ' वीर भोग्या वसुंधरा ' उसी दिन तत्पर ज्ञात हो जाता। 
राजेंद्र ने जेलर से कहा, जेलर साहब!
‘अपने स्वास्थ के लिए कसरत करना मेरा रोज़ का नियम हैं और मैं मौत के डर से अपना नियम क्यों छोड़ दूं? मैं कसरत इसलिए भी करता हूं क्योंकि मुझे दूसरे जन्म में विश्वास है और मुझे दूसरे जन्म में भी भारत की गौरवशाली धरती पर जन्म मिले और बलिष्ठ शरीर मिले ताकि ब्रिटिश साम्राज्य को मिट्टी में मिला सकूं।

इस उत्तर से न केवल राजेंद्र लाहिड़ी ने शासन को चेतावनी के साथ ये बतलाया कि इस जन्म में ही नही बल्कि अगले जन्म भी वो भारत माँ की सेवा ही करेंगे साथ ही साथ उन्होंने भविष्य के जन को उदाहरण स्वरूप धर्म का पालन करना भी समझाया। एक धर्म जिसका सार है अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करना,अपने देश के लिए बलिदान देने में भी रत्ती भर न झिझकना।


जन्म बंगाल के पाबना ज़िले के भड़गा नामक गांव में 23 जून, 1901 को हुआ था. इनके पिता का नाम क्षिति मोहन शर्मा और मां का नाम बसंत कुमारी था. लाहिड़ी के जन्म के समय उनके पिता बंगाल में चल रही ‘अनुशीलन दल’ की गुप्त गतिविधियों में योगदान देने के आरोप में कारावास में कैद थे. साल 1909 में राजेन्द्र को पढ़ाई के लिए उनके मामा के यहां वाराणसी भेज दिया गया. यहीं पर उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई, लेकिन देशभक्ति और निडरता तो राजेन्द्र को पिता से विरासत में मिली थी. राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी जब ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ से इतिहास की पढ़ाई कर रहे रहे थे तब उनकी मुलाकात बंगाल के क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल से हुई थी।
इस बहादुर क्रांतिकारी राजेंद्र लाहिड़ी को 17 दिसंबर 1927 को गोंडा जेल में काकोरी केस के तहत वीरगति प्राप्त हुई थी

- शुभांकर वर्मा