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जन्माष्टमी विशेष: संस्कृति और जीवन मूल्यों का उत्सव! मध्यरात्रि में कान्हा का जन्म... जब देवकी की कोख से अवतरित हुए भगवान, जगमगा उठी धरा! शाश्वत एवं प्रभावी सृष्टि के संचालक हैं श्रीकृष्ण

Janmashtami Special: A celebration of culture and life values! Kanha was born at midnight... When God was born from Devaki's womb, the earth lit up! Shri Krishna is the director of the eternal and ef

आज 16 अगस्त को देशभर में कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार आस्था और उत्साह के साथ मनाया जाएगा। जन्माष्टमी को लेकर भक्तों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। सभी मंदिरों को बेहद खूबसूरत और भव्य तरीके से सजाया गया है। आज सुबह से ही मंदिरों में आस्था का सैलाब उमड़ रहा है। मंदिरों के साथ-साथ लोगों ने अपने घरों में भी कृष्ण जन्माष्टमी की झांकी सजाई है। कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष की अष्टमी तारीख को मनाई जाती है। मान्यता है कि मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी ने इसी दिन अपने आठवें पुत्र रूप में भगवान श्रीकृष्ण को जन्म दिया था। यह पर्व भारतीय संस्कृति, धर्म, दर्शन और जीवन मूल्यों का जीवंत उत्सव है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म केवल एक ऐतिहासिक या धार्मिक घटना नहीं बल्कि मानव जीवन के लिए गहन संदेश और आदर्श जीवन का प्रारूप है। उनके बाल्यकाल से लेकर जीवन के प्रत्येक क्षण में लीलाओं का अद्भुत श्रृंगार दिखाई देता है। उन्होंने अपने बड़े भाई बलराम का घमंड तोड़ने के लिए हनुमान जी का आव्हान किया, जिन्होंने बलराम की वाटिका में जाकर उनका घमंड चूर कर दिया। श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक असुर के कारागार से 16,100 बंदी महिलाओं को मुक्त कराया, जिन्हें समाज ने बहिष्कृत कर दिया था। उन सभी महिलाओं को उन्होंने अपनी रानियों का दर्जा देकर सम्मानित किया। ये लीलाएं न केवल अद्भुत हैं बल्कि जीवन के नैतिक और सामाजिक संदेश भी देती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग के अंत में मथुरा में अग्रसेन नामक राजा का शासन था। उनके पुत्र कंस अत्यंत क्रूर और अत्याचारी थे। कंस बलपूर्वक अपने पिता का सिंहासन छीनकर स्वयं मथुरा का राजा बन गया। उसकी बहन देवकी का विवाह वसुदेव के साथ हुआ। विवाह के समय कंस को आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र उसका संहारक बनेगा। भयभीत कंस ने देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया। पहले सात पुत्रों को कंस ने मार डाला। जब आठवें गर्भ की सूचना मिली तो कंस ने कारागार की सुरक्षा और पहरे कड़े कर दिए। अंततः वह क्षण आया, जब देवकी ने श्रीकृष्ण को जन्म दिया। उस समय मथुरा में घोर अंधकार और मूसलाधार वर्षा हो रही थी। देवकी के गर्भ से जन्म लेते ही कोठरी में अलौकिक प्रकाश फैल गया और वसुदेव ने देखा कि उनके सामने शंख, चक्र, गदा और पद्मधारी चतुर्भुज भगवान खड़े हैं। उनके दिव्य रूप के दर्शन कर वसुदेव और देवकी उनके चरणों में गिर पड़े। भगवान ने वसुदेव से कहा कि वे बालक का रूप धारण करेंगे और तुरंत गोकुल में नंद के घर पहुंचा दें, जहां एक कन्या का जन्म हुआ है। उसी कन्या को कंस को सौंप दें। उनकी माया से कारागार के सभी ताले खुल गए और पहरेदार सो रहे थे और यमुना ने मार्ग सुरक्षित कर दिया। वसुदेव ने भगवान की आज्ञा का पालन किया और शिशु कृष्ण को सिर पर उठा लिया। यमुना में प्रवेश करते ही जल उनके चरणों के स्पर्श से हिलोरें लेने लगा और जलचर उनके चरणों के दर्शन के लिए उमड़ पड़े। गोकुल पहुंचकर वसुदेव ने नंद बाबा के घर सोई हुई कन्या को उठाया और उसकी जगह श्रीकृष्ण को लिटा दिया। कारागार में लौटकर वसुदेव ने देखा कि ताले अपने आप बंद हो गए और पहरेदार जाग गए। कंस को जैसे ही कन्या के जन्म का समाचार मिला, वह तुरंत कारागार पहुंचा। उसने कन्या को मारने का प्रयास किया, लेकिन कन्या अचानक आकाश में उठ गई और कहा कि उसका संहारक गोकुल में सुरक्षित है। कंस ने भगवान को मारने के लिए कई राक्षस भेजे, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने प्रत्येक राक्षस का वध कर कंस का अंत किया। इसके बाद उन्होंने अपने माता-पिता वसुदेव और देवकी को कारागार से मुक्त कराया। तभी से जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाने लगा। भगवान श्रीकृष्ण का जीवन न केवल लीलाओं से भरा है, बल्कि गहन जीवनदर्शन और मूल्य शिक्षा का स्रोत भी है। उनके बाल्यकाल की शरारतें, माखन चोरी, कालिया नाग का मर्दन, गोपियों के साथ रास लीला, इन सभी लीलाओं में प्रेम, साहस, न्याय और करुणा का संदेश निहित है। किशोरावस्था में उनका प्रेम और मित्रता का आदर्श और युवावस्था में उनका कूटनीतिक नेतृत्व और धर्म की रक्षा का दृष्टांत हमें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मार्गदर्शन देता है। श्रीकृष्ण की लीलाओं में करुणा और न्याय का अद्भुत मिश्रण दिखाई देता है। पूतना राक्षसी के विष से भरे स्तन का दूध पीते समय भी श्रीकृष्ण ने उसे मां का सम्मान दिया, जबकि उसकी दुष्टता के लिए उसका वध किया। नरकासुर वध और कारागार से 16,100 महिलाओं को मुक्त कर सम्मान देना इस बात का प्रमाण है कि उनका जीवन केवल व्यक्तिगत विजय का नहीं बल्कि समाज और धर्म की रक्षा का प्रतीक था। द्वारका के राजा के रूप में उन्होंने 36 वर्षों तक शासन किया। उनके जीवन में धर्म, सत्य, न्याय, प्रेम, वीरता और करुणा का संतुलन स्पष्ट दिखाई देता है। भगवान श्रीकृष्ण केवल भक्तों को अपने प्रेम और माधुर्य के बंधन में नहीं बांधते बल्कि मोह-माया के बंधनों से भी मुक्त करते हैं। उनके व्यक्तित्व में कुशल नेतृत्व, योग, साहस, नीति और दैवीय गुणों का अद्भुत संगम है। जन्माष्टमी का पर्व हमें स्मरण कराता है कि जीवन में धर्म और न्याय के मार्ग पर चलना ही सर्वोपरि है। श्रीकृष्ण के आदर्श जीवन से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि अन्याय और अधर्म के खिलाफ खड़ा होना हर युग का धर्म है। उनका व्यक्तित्व हमें सिखाता है कि प्रेम, मित्रता, भक्ति और करुणा के मार्ग पर चलना जीवन का सर्वोत्तम उद्देश्य है। भारतीय संस्कृति में श्रीकृष्ण का स्थान केवल देवता का प्रतीक नहीं बल्कि आदर्श मानव और मार्गदर्शक के रूप में भी है। उनके बाल्यकाल, किशोरावस्था और युवावस्था की लीलाओं में जीवन के प्रत्येक आयाम का दर्शन मिलता है। माखन चोरी और गोवर्धन पर्वत उठाना हमें साहस और भक्ति की शिक्षा देता है। रास-लीला और गोपियों के साथ उनके संवाद मानवीय संबंधों और प्रेम की गहनता का प्रतीक हैं। युवावस्था में युद्धभूमि में उनका नेतृत्व और न्याय की स्थापना यह दर्शाता है कि धर्म और कर्त्तव्य के मार्ग पर चलना अनिवार्य है। उनकी शिक्षाओं का सार आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना हजारों वर्ष पूर्व था। जीवन की कठिनाईयों में संतुलन बनाए रखना, मित्रता और करुणा का पालन करना, धर्म की रक्षा करना और आत्मा की उन्नति हेतु भक्ति का मार्ग अपनाना, यही श्रीकृष्ण का संदेश है। उनका जीवन हमें बताता है कि सच्ची भक्ति, अद्भुत नेतृत्व क्षमता और मानवता का संगम ही जीवन का सर्वोत्तम आदर्श है और अधर्म के खिलाफ खड़ा होना, धर्म की रक्षा करना तथा प्रेम, मित्रता और करुणा के मार्ग पर चलना प्रत्येक व्यक्ति का धर्म है। श्रीकृष्ण के आदर्शों को अपनाकर ही हम अपने जीवन और समाज को श्रेष्ठ बना सकते हैं। श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व हमें याद दिलाता है कि जीवन का सार प्रेम, भक्ति, न्याय और धर्म में है। उनके आदर्श जीवन का मार्गदर्शन हैं और उनकी लीलाओं का स्मरण हमें अपने आचरण और जीवन निर्णयों में प्रेरित करता है। भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और उनके आदर्श भारतीय जनमानस के हृदय में सदैव जीवित रहेंगे।