आपातकालः वो काला अध्याय जिसने कुचले थे करोड़ों भारतीयों के मौलिक अधिकार! मीडिया पर भी चला था चाबुक, जानें क्या हुआ था तब?

Emergency: The dark chapter that crushed the fundamental rights of crores of Indians! Media was also cracked down on, know what happened then?

नई दिल्ली। भारत में 25 जून 1975 को लगाए गए आपातकाल की आज 50वीं वर्षगांठ है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी आज के दिन को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मना रही है। बता दें कि भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार की तरफ से लगाई गई इमरजेंसी को एक काला अध्याय के रूप में देखा जाता है। दरअसल इसी दिन करोड़ों भारतीयों के मौलिक अधिकारों को कुचलने की कोशिश की गई थी।

आपातकाल के आदेश पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने दस्तखत किए थे। आपातकाल के दौरान भारत में मीडिया पर भी कई तरह की पाबंदियां लगा दी गई थीं। अखबारों और पत्रिकाओं में खबरें प्रकाशित करने से पहले अधिकारियों से इजाजत लेनी पड़ती थी। इसका भारत की मीडिया ने डटकर मुकाबला किया था। पूरे आपातकाल के दौरान देश में दो सौ से अधिक पत्रकारों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था।

खबरों के मुताबिक आपातकाल की घोषणा होते ही पुलिस और प्रशासनिक अमला सक्रिय हो गया था। बताया जाता है कि आपातकाल से जुड़ी खबरें सामने न आने पाए, इसके लिए इंदिरा गांधी की सरकार ने कई तरह के उपाए किए थे। इनमें से एक अखबारों की बिजली काट देना। इसके पीछे की सोच यह थी कि जब बिजली ही नहीं रहेगी तो मशीने नहीं चल पाएंगी। जब मशीनें नहीं चल पाएंगी तो अखबार कैसे छपेगा।

दिल्ली में बहादुर शाह जफर रोड पर अधिकांश अखबारों के दफ्तर होते थे। ऐसे में दिल्ली में सरकार ने इस रोड पर स्थिति अखबारों के दफ्तरों की बिजली काट दी थी। इसके अलावा सरकार ने अखबारों और पत्रिकाओं को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाने के लिए उनको मिलने वाले सरकारी विज्ञापनों पर रोक लगा दी थी। सरकार की ओर से दिए गए आदेश के मुताबिक काम करने से मना करने पर पत्रकारों को जेल में भेजा जाने लगा था।

देश और दुनिया की खबरों को पाठकों तक पहुंचाने में समाचार एजेंसियों की बड़ी भूमिका होती थी। इसी को ध्यान में रखते हुए इंदिरा गांधी की सरकार ने देश की चार प्रमुख एजेंसियों का विलय कर दिया था। सरकार ने जिन एजेंसियों का विलय किया था, वो थीं प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान समाचार और समाचार भारती।

इन चारों एजेंसियों के विलय के बाद ‘समाचार’ नाम की एक नई एजेंसी का गठन किया गया था। इस एजेंसी की खबरों पर निगरानी रखने के लिए सरकार ने प्रेस इनफारमेशन ब्यूरो (पीआईबी) के एक अधिकारी को तैनात कर दिया था। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना था कि अखबारों में केवल सरकार के पक्ष वाली खबरें ही पहुंचें।

आपातकाल के दौरान 1976 में 80 लाख से अधिक पुरुषों की नसबंदी कर दी गई थी। इनमें से अधिकांश लोगों की नसबंदी जबरदस्ती करवाई गई थी। नसबंदी अभियान को इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी के दिमाग की उपज माना जाता है। इमरजेंसी के दौरान पत्रकारों को संजय गांधी और नसबंदी से जुड़े उनके परिवार नियोजन कार्यक्रम की प्रशंसा करने और विपक्ष की खबरों को कम करके छापने के लिए कहा गया था। इसके अलावा अखबारों को अगले दिन का संस्करण छापने के लिए सरकार ने मंजूरी भी लेनी होती थी।