Success Story Of IAS: नैनीताल की नई जिलाधिकारी वंदना सिंह चौहान कैसे निकली थी गांव की रूढ़िवादी सोच से आगे! IAS बनने की जुनून में कमरे में नही लगवाया था कूलर, Self study से पहली ही बार ऑल इंडिया में ले आई थी 8वीं रैंक

रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा था कि मानव जब ज़ोर लगाता है पत्थर भी पानी बन जाता है। ये पंक्तियां बेहद प्रेरणादायक साबित रही है। अगर इंसान कुछ करने की ठान ले तो उसके लिए धरती क्या और आसमान क्या पूरा ब्रह्मांड उस का ही है।
नैनीताल जिले में ऐसी ही कर्मठ और आसमान में भी सुराख कर देने की ललक लिए नई डीएम जल्द ही नैनीताल अपना पदभार संभालने आएंगी। नैनीताल की नई डीएम की कहानी न केवल महिला सशक्तिकरण की एक मिसाल है बल्कि उनकी कहानी हर इंसान के लिए भी प्रेरणादायक है।
देश की सबसे कठिन परीक्षा यानि संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission, UPSC) की परीक्षा पास करना लोहे के चने चबाने जैसा है। नैनीताल की नई जिलाधिकारी वंदना सिंह चौहान ने कैसे कठिन परिस्थितियों में ये लोहे के चने चबाकर IAS बनने तक का सफर तय किया आइये जानते है।
Success Story of IAS Vandana Singh Chauhan
नैनीताल की नई डीएम वंदना सिंह चौहान बिना कोचिंग के सेल्फ़ स्टडी के दम पर हिंदी मीडियम से पहले ही प्रयास में AIR8 ले आई थी। जी हां! बिना कोचिंग के ही। ये वाकई हैरान करने की बात है जब ज़्यादातर लोग IAS और PCS की परीक्षा देने से पहले कोचिंग लेते है और कोचिंग के बावजूद भी उनकी रैंक UNDER 10 नही आ पाती,वही IAS वंदना सिंह चौहान की बिना कोचिंग के ही 8वी रैंक ले आना वो भी अपने दम पर हिंदी मीडियम से पहले ही अटैम्प में ये काबिले तारीफ़ है।
वंदना का जन्म 4 अप्रैल 1989 को हरियाणा के नसरूल्लागड़ में हुआ था। परिवार बेहद साधारण रहा,जहाँ बेटियों की शिक्षा में गौर नही किया जाता था। छोटे से गांव की रूढ़िवादी सोच और ग्रामीणों के बनाये पिछड़े नियमो की बेड़ियों में गांव की हर बेटी बंधी थी। उसी सोच से वंदना के घर के बुजुर्ग भी जकड़े रहे,घर के बुजुर्ग नही चाहते थे कि वंदना कही बाहर जाकर पढ़ाई करें। उधर गांव में कोई अच्छा स्कूल भी नही था,और वंदना के सपने ऊंची उड़ान भरने वाले थे। मन मे ज़िद,आंखों में उज्वल भविष्य की आस,और दिमाग मे देश के लिए आईएएस बनकर कुछ करने का जोश भरा पड़ा था।
वंदना के पिता महिपाल सिंह ने अपने बेटों को गांव से बाहर भेज दिया पढ़ाई लिखाई के लिए,लेकिन वंदना घर पर रह गयी। वंदना भी बाहर जाकर पढ़ना चाहती थी लेकिन परिवार में कुछ सदस्यों की रूढ़िवादी सोच के कारण बस अपने पिता से ही शिकायत कर पाती थी।
महिपाल सिंह ने कई बार मीडिया में खुद बताया है कि वंदना उनसे एक ही सवाल पूछा करती थी कि मुझे कब बाहर भेजोगे? मुझे पढ़ाई करने के लिए अच्छे स्कूल कब भेजोगे? पहले तो पिता ने वंदना की आवाज़ को अनसुना कर दिया लेकिन एक दिन वंदना के सब्र का बांध टूट गया, वंदना ने अपने पिता से पूछ ही दिया, 'मैं लड़की हूं इसलिए मुझे पढ़ने नहीं भेज रहे ?' ये बात महिपाल सिंह के दिल पर लगी और उन्होंने ठान लिया कि वंदना के पढ़ाई के सपने को टूटने नहीं देंगे,रूढ़िवादी सोच की जकड़न को तोड़ कर अपनी बेटी को भी बाहर पढ़ने भेजेंगे। उन्हें भी यकीन हो चला था कि बेटी में कुछ तो बात है वरना गांव में तो और भी लड़कियां थी उन्होंने ऐसी ज़िद नही की।
वंदना के पिता ने उन्हें मुरादाबाद कन्या गुरुकुल में पढ़ने के लिए भेजा. महिपाल सिंह के इस निर्णय के वंदना के दादा, ताऊ और चाचा ने विरोध किया लेकिन पिता ने बेटी के सपने को पूरा करने का मन बना लिया था। उनके लिए भी घर के बुजुर्गों के खिलाफ जाकर बेटी को बाहर भेजना आसान नही था,उन्होंने भी घर के बुजुर्गों की नाराज़गी सहन की। वंदना भी पिता के अटूट विश्वास को बनाये रखना चाहती थी इसीलिए उन्होंने जी तोड़ मेहनत की।
12वीं की पढ़ाई के बाद वंदना ने वकालत की पढ़ाई की, वंदना को उनके भाई का भी समर्थन मिला. घर पर रहकर ही उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी की. इसके साथ ही UPSC की तैयारी भी शुरू कर दी. एक इंटरव्यू के दौरान वंदना ने बताया कि गुरुकुल में जो अनुशासन का पाठ पढ़ा था वो UPSC की तैयारी में मददगार साबित हुआ।वंदना ने अपने कमरे में कूलर तक नहीं लगवाया. वो कहती थी कि ठंडक से नींद आती है. वो दिन में 18-20 घंटों तक खुद को कमरे में बंद करके सिर्फ़ पढ़ाई करती. इस मेहनत का फल भी वंदना को मिला. वंदना ने साल 2012 में ऑल इंडिया में 8वीं रैंक हासिल कर आईएएस अफसर (IAS Officer) बनने का सपना पूरा किया।
गांव और घर के रूढ़िवादी लोग जो वंदना को ज़्यादा पढ़ाने के खिलाफ थे आज वंदना के डीएम बनने के सफर को जब सुनते होंगे तो बगले ही झांकते होंगे। वंदना की सफलता की कहानी हर लड़की के लिए प्रेरणादायक है।