नूंह में ईद-ए-मिलाद-उन-नबी का उत्साह: जुलूस और दुआओं के साथ मनाया गया पैगंबर का जन्मदिन

नूंह: हरियाणा के नूंह जिले में ईद-ए-मिलाद-उन-नबी का पर्व पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्म और उनके उपदेशों की याद में बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया गया। मूढ़ेता, ढाणा, पिनगवां, खेड़ला सहित कई गाँवों में इस अवसर पर जुलूस निकाले गए और जश्न-ए-ईद मिलादुन्नबी का आयोजन किया गया। मूढ़ेता गाँव में आयोजित जुलूस में ग्रामीणों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। लोग नए कपड़े पहन, इत्र लगाए, और उत्साह के साथ पैगंबर के जन्मदिन के जश्न में शामिल हुए। जुलूस के दौरान देश-दुनिया की तरक्की, अमन, और भाईचारे के लिए दुआएँ माँगी गईं। मस्जिदों को रंग-बिरंगे झंडों और रोशनी से सजाया गया, जिससे उत्सव का माहौल और भी भव्य हो गया।
ईद-ए-मिलाद-उन-नबी इस्लाम धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जो पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्म की याद में मनाया जाता है। जानकारों के अनुसार, पैगंबर का जन्म 571 ईसवी में मक्का शहर में हुआ था। इस्लामी मान्यता के अनुसार, हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस्लाम के अंतिम नबी थे, और अब कयामत तक कोई अन्य नबी नहीं आएगा। यह त्योहार ईद-उल-फितर और ईद-उल-अज़हा के बाद इस्लामी जगत का तीसरा सबसे बड़ा धार्मिक पर्व माना जाता है। इस दिन नमाज़ अदा की जाती है, धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, और पैगंबर के जीवन व उपदेशों को याद किया जाता है। 'मौलिद' शब्द का अर्थ अरबी में 'जन्म' है, और 'मौलिद-उन-नबी' का मतलब है पैगंबर का जन्मदिन। मूढ़ेता में जुलूस के दौरान बूढ़े, बच्चे, और जवान सभी हाथों में झंडे थामे, 'नारा-ए-तकबीर' का उद्घोष करते हुए उत्साह के साथ शामिल हुए। आसपास के गाँवों से भी बड़ी संख्या में लोग, विशेषकर महिलाएँ और बच्चे, इस आयोजन का हिस्सा बने। मौलाना जमील ने कहा कि यह त्योहार आपसी भाईचारे और एकता को बढ़ावा देता है। उन्होंने बताया कि मस्जिदों को खूबसूरती से सजाया गया और जुलूस के माध्यम से खुशी का इजहार किया गया। मौलाना अहमद ने कहा कि इस बार जिला स्तर पर बड़े आयोजन के लिए अनुमति नहीं मिली, जिसके कारण मुस्लिम समुदाय ने गाँव स्तर पर ही यह पर्व धूमधाम से मनाया। फिर भी, उत्साह और भक्ति में कोई कमी नहीं थी। इस पर्व का इतिहास 1588 में उस्मानिया साम्राज्य से जुड़ा है, जब यह जनमानस में व्यापक रूप से प्रचलित हुआ। नूंह के गाँवों में इस अवसर पर आयोजित जुलूस और धार्मिक कार्यक्रमों ने सामाजिक समरसता और भाईचारे का संदेश दिया। यह आयोजन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि समाज में एकता और शांति को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नूंह के ग्रामीणों ने इस अवसर पर यह साबित किया कि सादगी और उत्साह के साथ मनाया गया यह पर्व समुदाय को एकजुट करने का एक सशक्त माध्यम है।