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बड़ी उपलब्धिः एमपीयूएटी ने रिसर्च और पेटेंट के क्षेत्र में किए उल्लेखनीय कार्य! नवाचारों से बढ़ा कुलपति प्रो. कर्नाटक का कद, उत्तराखण्ड में भी दे चुके हैं सेवाएं

A major achievement: MPUAT has accomplished remarkable work in the fields of research and patents! Vice-Chancellor Professor Karnatak has grown in stature through innovations, having also served in U

उदयपुर। महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमपीयूएटी) ने हाल के वर्षों में रिसर्च और पेटेंट के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है, जिसका श्रेय विवि के कुलपति प्रो. अजीत कुमार कर्नाटक को जाता है। पिछले कुछ सालों में कई अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों से एमओयू हुए और विद्यार्थियों-शोधकर्ताओं को विदेशी संस्थानों में प्रशिक्षण का अवसर मिला। इसी कारण एनआईआरएफ रैंकिंग में एमपीयूएटी राज्य वित्त पोषित विश्वविद्यालयों की श्रेणी में शीर्ष पर रहा। अनुसंधान के लिए तैयार इंडेक्स में एमपीयूएटी की रैंक 83वीं रही। यही नहीं पिछले तीन साल में विवि ने 40 से ज्यादा शोध कार्य किए और 45 पेंटेंट दर्ज कराए। साथ ही देश-विदेश के संस्थानों के साथ 33 एमओयू पर हस्ताक्षर हुए। बाजरा को बढ़ावा देने के लिए ‘मिलेट कॉफी टेबल बुक’ और ‘द मिलेट स्टोरी’ जैसे प्रकाशन सामने आए। गांव हिंटा में देश का पहला वाटर कोऑपरेटिव शुरू किया गया। विवि परिसर में सौर ऊर्जा का उपयोग कर हरित ऊर्जा को बढ़ावा दिया गया। 

बता दें कि प्रो. अजीत कुमार कर्नाटक अक्टूबर 2022 से एमपीयूएटी के कुलपति के रूप में कार्यरत हैं, साथ ही फरवरी 2025 से जय नारायण व्यास विवि, जोधपुर व हाल ही में उदयपुर का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा गया। इससे पूर्व प्रो. कर्नाटक वीसीएसजी उत्तराखण्ड बागवानी एवं वानिकी विवि तथा दून विवि का नेतृत्व कर चुके हैं। 9 जुलाई 1959 को उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा में जन्मे प्रो. कर्नाटक के पास शैक्षणिक, अनुसंधान तथा प्रशासनिक कार्य का 40 वर्षों से अधिक का अनुभव है। उन्होंने पंतनगर विवि में भी लंबी अवधि तक अपनी सेवाएं दी हैं। उन्हें सर्वश्रेष्ठ कुलपति पुरस्कार, कई लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्डस, डॉ. आरएस परोडा अवार्ड, डॉ. एसएल मिश्रा मेडल, सीएचएआई ऑनरेरी फैलो तथा अमित प्रभुध मनीषी अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। 

प्रमुख उपलब्धियां
नवाचार एवं बौद्धिक संपदा:
अपने 2 वर्ष 11 माह के कार्यकाल में, एमपीयूएटी ने 45 पेटेंट दर्ज किए, जिससे वैज्ञानिकों और विद्यार्थियों में नवाचार, सृजनात्मकता एवं उद्यमिता की सशक्त संस्कृति विकसित हुई।
रणनीतिक सहयोग: देश-विदेश के विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों और उद्योगों के साथ 33 एमओयू किए गए, जिससे संयुक्त अनुसंधान, शैक्षणिक आदान-प्रदान एवं तकनीकी हस्तांतरण को बढ़ावा मिला।
नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग: विश्वविद्यालय ने पिछले 2 वर्ष 11 माह में ₹1.46 करोड़ मूल्य की सौर ऊर्जा का उत्पादन कर विद्युत व्यय में उल्लेखनीय कमी की तथा परिसर में हरित ऊर्जा को प्रोत्साहित किया।

अंतरराष्ट्रीय exposure एवं क्षमता निर्माण: आईसीएआर की NAHEP परियोजना के अंतर्गत 71 विद्यार्थियों एवं 11 प्राध्यापकों को प्रतिष्ठित विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रशिक्षण एवं सहयोग के माध्यम से वैश्विक exposure प्रदान किया गया।
जल प्रबंधन मॉडल: गाँव हिंटा में देश का पहला वाटर कोऑपरेटिव स्थापित किया गया, जो समुदाय-आधारित जल संसाधन प्रबंधन एवं ग्रामीण स्थिरता की दिशा में अग्रणी कदम है।
बाजरा मिशन एवं प्रकाशन: “मिलेट कॉफी टेबल बुक” और “द मिलेट स्टोरी” जैसे महत्त्वपूर्ण प्रकाशनों के माध्यम से भारत के मिलेट आंदोलन को बल मिला और संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष 2023 में वैश्विक पहचान प्राप्त हुई।
स्मार्ट विलेज एवं ग्रामीण विकास: स्मार्ट विलेज इनिशिएटिव के अंतर्गत एमपीयूएटी को अनेक मान्यताएँ मिलीं, जिससे सतत कृषि, नवाचार और आजीविका संवर्द्धन के माध्यम से ग्रामीण समुदाय सशक्त हुए।
अनुसंधान एवं शैक्षणिक उत्कृष्टता: विश्वविद्यालय ने अनुसंधान दृश्यता में रिकॉर्ड स्तर प्राप्त किया – Scopus h-index: 83 और Google Scholar h-index: 97, जो शैक्षणिक गुणवत्ता एवं प्रभाव को दर्शाता है।
गुणवत्ता आश्वासन एवं आधुनिक सुविधाएँ: एमपीयूएटी के सभी कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs) को ISO प्रमाणन प्राप्त हुआ, जिससे विस्तार सेवाओं में वैश्विक गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित किया गया। विश्वविद्यालय की कई प्रयोगशालाओं को उन्नत एवं प्रमाणित किया गया, जो कृषि विज्ञान में अत्याधुनिक तकनीकों और अनुसंधान उपलब्धियों को दर्शाता है।
राष्ट्रीय नेतृत्व: मई 2025 में इंडियन एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटीज़ एसोसिएशन (IAUA) का अध्यक्ष निर्वाचित हुआ, जिससे एमपीयूएटी को राष्ट्रीय कृषि शिक्षा एवं नीतिगत निर्णयों में सशक्त आवाज़ मिली।
विस्तार एवं किसानों से जुड़ाव: कृषि विज्ञान केंद्रों एवं नवोन्मेषी विस्तार मॉडलों के माध्यम से किसानोन्मुख कार्यक्रमों को मज़बूत किया गया, जिससे तकनीकी अपनाव और किसानों को प्रत्यक्ष लाभ सुनिश्चित हुआ। 9 किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) की स्थापना कर किसानों को सामूहिक विपणन, मूल्य संवर्द्धन और बेहतर मूल्य प्राप्ति में सहयोग दिया गया।