आखिर क्या है SIR? 12 राज्यों में चल रहे SIR पर गरमाई सियासत!वोटर लिस्ट से नाम हटने, नागरिकता और दोबारा जुड़ने का क्या है सच?
देश के नौ राज्यों और तीन केंद्रशासित प्रदेशों में इन दिनों मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) की प्रक्रिया तेज़ी पर है। बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) घर-घर जाकर गणना प्रपत्र (Enumeration Form) वितरित कर रहे हैं और वोटर लिस्ट को “शुद्ध” करने के लिए व्यापक अपडेट कर रहे हैं। जो काम एक साधारण रूटीन वेरिफिकेशन माना जा रहा था, वही अब देशभर में बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनता जा रहा है। बड़े शहरों से लेकर दूर-दराज के गांवों तक, मतदाताओं के मन में यह सवाल गूंज रहा है—अगर SIR में नाम कट गया, तो क्या नागरिकता और भविष्य दोनों खतरे में पड़ जाएंगे?
सियासत में गरमाहट, सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला????
SIR प्रक्रिया पर विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है और इसे चुनावी समीकरण बदलने वाला कदम बता रहा है। विपक्षी दलों का आरोप है कि शुद्धिकरण की आड़ में कुछ खास समुदायों या समूहों के नाम बड़ी संख्या में हटाए जा सकते हैं। मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा है, जिससे पूरे देश में बहस और तेज़ हो गई है।
चुनाव आयोग ने अदालत में स्पष्ट किया कि SIR और नागरिकता—दोनों पूरी तरह अलग प्रक्रियाएं हैं। आयोग के अनुसार, मतदाता सूची से नाम कटने का मतलब किसी भी स्थिति में नागरिकता समाप्त होना नहीं है। यानी किसी भी इंसान की भारतीय नागरिकता सिर्फ इसलिए खत्म नहीं हो सकती कि उसका नाम वोटर लिस्ट में मौजूद नहीं है।
CEC का बयान—'वोटर लिस्ट को साफ करना लोकतंत्र की मजबूती के लिए जरूरी'
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने SIR को देश के लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करने वाला कदम बताया है। उनका कहना है कि दुनिया के सबसे बड़े वोटर डेटाबेस को अद्यतन रखने के लिए यह अभियान बहुत आवश्यक है। उन्होंने याद दिलाया कि इससे पहले अकेले बिहार में ऐसा विशाल शुद्धिकरण किया गया था, और जब यह प्रक्रिया 12 राज्यों के 51 करोड़ वोटरों तक पहुंचेगी, यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी।
लोगों में डर ! नाम कटा तो क्या दोबारा जुड़ पाएगा?
आम मतदाताओं में यह चिंता बढ़ रही है कि यदि SIR के दौरान उनका नाम हट जाता है, तो क्या वे भविष्य में फिर से वोटर लिस्ट में शामिल हो सकेंगे? चुनाव आयोग के वरिष्ठ अधिकारी इस भय को बेबुनियाद बताते हैं। उनका कहना है कि SIR का उद्देश्य केवल गलत या दोहराए गए नाम हटाना और योग्य नागरिकों के नाम जोड़ना है।
विशेषज्ञ भी मानते हैं कि अगर किसी का नाम इस बार सूची में नहीं आ पाया, तो वह सामान्य प्रक्रिया के तहत दस्तावेज जमा कर अपना नाम बाद में भी जुड़वा सकता है। इसके लिए वही नियम लागू होंगे जो पहले से लागू हैं।
Enumeration Form भरने के लिए सिर्फ 11 दिन—98% फॉर्म वितरित
चुनाव आयोग ने फॉर्म भरने की अंतिम तारीख 4 दिसंबर तय की है और अब केवल 11 दिन बचे हैं। आयोग का दावा है कि 98% फॉर्म घर-घर पहुंचाए जा चुके हैं और BLO अब उन्हें वापस लेने का काम कर रहे हैं।
2002–2003 की वोटर लिस्ट से नाम लिंक करने का निर्देश भी दिया गया है।
यदि किसी वोटर का नाम 2002/2003 की सूची में है, तो उसे फॉर्म के दाहिनी ओर पुरानी डिटेल भरनी होगी। यदि नाम नहीं है, तो वह अपने माता-पिता, दादा-दादी या नाना-नानी के नाम से लिंक कर सकता है और एक नई फोटो लगानी होगी। ऑनलाइन भी फॉर्म भरे जा सकते हैं और EPIC को मोबाइल नंबर से लिंक करने की सुविधा दी गई है।
2002 की लिस्ट में नाम न होने पर भी परेशान होने की जरूरत नहीं
कुछ लोगों की शिकायत है कि उनके परिवार के सदस्य 2002 या 2003 की वोटर लिस्ट में नहीं हैं। चुनाव आयोग के अनुसार यह भी कोई समस्या नहीं है। ऐसे लोग भी फॉर्म भर सकते हैं। बाद में जिला निर्वाचन कार्यालय नोटिस जारी कर सुनवाई करेगा, जहां 10 प्रमाणपत्रों में से कुछ दस्तावेज दिखाकर सत्यापन कराया जा सकता है।
ड्राफ्ट लिस्ट में नाम न मिले तो मिलेगी शिकायत का मौका
BLO द्वारा फॉर्म संग्रह पूरा होने के बाद चुनाव आयोग ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जारी करेगा। वोटर ऑनलाइन अपना नाम चेक कर सकेंगे। यदि नाम नहीं मिलता है तो एक महीने के भीतर शिकायत दर्ज की जा सकेगी।