Awaaz24x7-government

उत्तराखंडः खतड़वा पर्व आज! पशुओं को बीमारियों से दूर रखने की मनोकामना करने वाला ये त्यौहार पूरे विश्व में है अनोखा, जानें और क्या है खास महत्व?

Uttarakhand: Khatadwa festival is today! This festival, which promises to keep animals free from diseases, is unique in the world. Learn about its special significance.

"भैल्लो जी भैल्लो, भैल्लो खतड़वा
गै की जीत,खतड़वे की हार
भाग खतड़वा भाग
अर्थात गाय की जीत हो और खतड़वा यानी पशुधन को लगने वाली बीमारियों की हार हो।"

देवभूमि उत्तराखंड की संस्कृति, परंपरा और यहाँ की पवित्र विरासत पूरे भारत मे प्रसिद्ध है। यहां कुल देवताओं, स्थान देवताओं, पशु देवताओं, और वन देवता सहित न जाने कितनी पूजाओं को करने की परंपरा है। शायद इसीलिए पूरे भारत मे सिर्फ उत्तराखंड को ही देवभूमि के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड वासी प्रकृति के बेहद करीब होते है। यहाँ सालभर में न जाने कितने त्यौहार ऐसे मनाए जाते है जो पर्यावरण संरक्षण के लिए होते है। इन्ही में से एक त्यौहार है "खतड़वा"। इस त्यौहार में उत्तराखंड के लोग पशुओं की मंगलकामना करते है।पशुओं में लगने वाली बीमारियों को दूर करने के लिए खतड़वा मनाया जाता है। ये त्यौहार शायद पूरी दुनिया मे अनोखा त्यौहार होगा जो इंसान द्वारा जानवरों के लिए मनाया जाता है। ये त्यौहार हमे ये सिखाता है कि हम इंसानो का अस्तित्व बिना प्रकृति और पशुओं के कुछ भी नही है।खतड़वा के दिन लोग अपने गली मोहल्ले में एक जगह घास के पुतले को बनाते है उस पुतले को खूब सजाया जाता है और मक्का, ककड़ी, अखरोट, शक्कर, इत्यादि अर्पित की जाती है। फिर उस पुतले में आग लगाकर ककड़ी प्रसाद स्वरूप बांटी जाती है। इसके बाद गौशालाओं और गोठ यानी पशुओं के रहने की जगह को साफ किया जाता है कीटनाशक छिड़कर पशुओं को सुरक्षित किया जाता है। साथ ही जलाए गए खतड़वे के पुतले की एक मशाल को लेकर गोठ और गौशाला में घुमाया जाता है और ईश्वर से प्रार्थना की जाती है हमारे सभी पशुओं को बीमारियों से दूर रखना। पशुओं के लिए साफ सुथरी हरी घास ज़मीन पर बिछाई जाती जाती है ताकि पशुओं को ठंड न लगे और अच्छी नींद आये। अगले दिन सभी पशुओं को नहला धुला कर उन्हें हरी घास और पकवान खिलाए जाते है।

उत्तराखंड में खतड़वा के दिन अलग ही रौनक दिखाई देती है जैसे मानो नया साल मनाया जा रहा हो।

आइये अब खतड़वा का शब्दिक अर्थ भी जान लेते हैं। खतड़वा शब्द की उत्पत्ति ख़ातड़ यानी खातड़ि शब्द से हुई है। इसका अर्थ गर्म कपड़े या रजाई से लिया जाता है। चूंकि खतड़वा भाद्रपद के शुरुआत में ही आता है इसीलिए इस दिन से जाड़ो की शुरुआत मानी जाती है। लोगो के घरों में आज से रजाई कम्बल, गर्म कपड़े इत्यादि निकल जाते है। संदूको, अलमारियों और बैगों में रखे गर्म कपड़ों को धूप में सुखाते है। खतड़वा शीत ऋतु का परिचायक समझा जाता है।