उत्तराखण्ड हाईकोर्ट का बड़ा फैसलाः माफ की डॉक्टर की सजा! पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने का लगा था आरोप, जानें कोर्ट ने क्या कहा?

उत्तराखंड हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला लेते हुए एक डॉक्टर की सजा को माफ कर दिया है। कोर्ट का तर्क है कि राष्ट्रीय हित में इनकी जरूरत है। वैक्सीन बनाने वाले साइंटिस्ट को पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में दोषी साबित किए जाने के फैसले को पलटते हुए नैनीताल हाईकोर्ट ने राहत दी है। यह पूरा मामला साल 2015 का है, जब वैज्ञानिक की पत्नी ने खुदकुशी कर ली थी। इसके बाद सेशन कोर्ट ने दोषी करार देते हुए 5 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। वहीं इस मामले पर हाईकोर्ट के जज रवींद्र मैठाणी ने सुनवाई करते हुए डॉ. आकाश यादव को उनकी अपील लंबित रहने के दौरान राहत प्रदान करते हुए कहा कि उनकी भूमिका “निस्संदेह जन स्वास्थ्य और राष्ट्रीय हित के लिए आवश्यक” थी और उनकी दोषसिद्धि ने उन्हें वैक्सीन कार्यक्रमों में योगदान जारी रखने के लिए अयोग्य बना दिया था। डॉ. आकाश इंडियन इम्यूनोलॉजिकिल्स लिमिटेड में वरिष्ठ प्रबंधक के पोस्ट पर काम कर रहे थे, जहां मानव और पशुओं के लिए वैक्सीन तैयार होता है। अदालत ने डॉ. आकाश यादव को आईआईएल में कार्यभार संभालने की अनुमति दी है। यादव को सेशन कोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत दोषी ठहराया था, लेकिन धारा 304-बी (दहेज हत्या) और दहेज निषेध अधिनियम के तहत बरी कर दिया था।
साल 2015 में की थी खुदकुशी
आकाश का विवाह 7 मई, 2015 को हुआ था। उनकी पत्नी, जो पंतनगर विश्वविद्यालय में कार्यरत थीं, उनको उनके भाई 4 जुलाई, 2015 में मायके ले गए थे, जबकि यादव हैदराबाद में कार्यरत थे। वह अपनी ड्यूटी पर लौट आईं, लेकिन 14 दिसंबर, 2015 को आत्महत्या कर ली। अपने सुसाइड नोट में उन्होंने लिखा था कि उनकी मौत के लिए उनके पति ज़िम्मेदार होंगे। यादव को 11 मई, 2017 को गिरफ्तार किया गया था और तीन महीने से ज़्यादा जेल में बिताने के बाद, उन्हें 28 अगस्त को ज़मानत मिली। इसी साल 21 जनवरी को, रुद्रपुर के सत्र न्यायाधीश ने उन्हें धारा 306 के तहत पाँच साल की सश्रम कारावास और 20,000 रुपये के जुर्माने की सज़ा सुनाई। जमानत मिलने के बाद, यादव ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389(1) के तहत एक अंतरिम आवेदन दायर कर अपनी दोषसिद्धि को निलंबित करने की मांग की।