पूरा देश होली के रंगों में डूबा हुआ है हर तरफ होली की धूम मची हुई है। उत्तराखंड में भी जगह जगह होलियार लोकगीतों के साथ होली गाते हुए रैलियां निकाल रहे है खड़ी और बैठकी होली का आयोजन किया जा रहा है घर घर मे गुजिया और तमाम तरह के पकवान बनाये जा रहे हैं। देवभूमि उत्तराखंड में रंग गुलाल, पिचकारी, ढोल मंजीरे,हर जगह दिखाई दे रहे है। लेकिन क्या आपको पता है कि उत्तराखंड के कई गांव ऐसे है जहाँ होली नही मनाई जाती है।इन गांवों में होली न मानने की परंपरा आज भी कायम है,जबकि इन गांवों से सटे दूसरे गांवों में होली पर कोई पाबंदी नही है वहा हर्षोल्लास के साथ होली मनाई जाती है।
आखिर क्यों उत्तराखंड के कुछ गांवों में होली पर है बैन?
सीमांत पिथौरागढ़ जिले और रुद्रप्रयाग में कुछ गांवों में होली नही मनाई जाती है। इन गांवों में होली मनाना अपशकुन माना जाता है,यहां होली खेलने और मनाने लोग डरते है कि कहीं कोई अनहोनी न हो जाय।
पिथौरागढ़ जिले के तहसील धारचूला, मुनस्यारी, और डीडीहाट के करीब सौ गांवों में होली बैन है। यहां पूर्वजों के समय से चली आ रही परंपरा जो कि मिथक के तौर पर देखी जाती है आज भी समाप्त नही हुई है।यहां ये आशंका रहती है कि होली मनाने से कोई बड़ी अनहोनी हो जाएगी।
धारचूला के बुजुर्गों की माने तो उन्होंने अपने पूरे जीवन काल मे यहां किसी को होली मनाते नही देखा। रांथी, जुम्मा,खेला,स्यांकुरी, खेत,ज्मकू, गलाती, गर्गुवा सहित कई गांव छिपलाकेदार में स्थित है जहां होली पर कोई उल्लास नही होता,रंगों से परहेज होता है।
वही मुनस्यारी के चौना, पापड़ी, मालूपाती, हरकोट, मल्ला घोरपट्टा, तल्ला घोरपट्टा, माणीटुंडी, पैकुटी, फाफा, वादनी सहित कई गांवों में होली नहीं मनाई जाती है। चौना के बुजुर्ग बाला सिंह चिराल बताते हैं कि पूर्वजों के अनुसार एक बार होल्यार देवी के प्रसिद्ध भराड़ी मंदिर में होली खेलने जा रहे थे। तब सांपों ने उनका रास्ता रोक दिया। इसके बाद जो भी होली का महंत बनता था या फिर होली गाता था तो उसके परिवार में कुछ न कुछ अनहोनी हो जाती थी। जिसे देखते हुए होली मनाना बंद हो गया। बुजुर्ग बताते है कि यहाँ कई पीढियां गुजर गई लेकिन होली नहीं मनाई गई।
इसी तरह डीडीहाट के दूनकोट क्षेत्र के ग्रामीण बताते हैं कि अतीत में गांवों में होली मनाने पर कई प्रकार के अपशकुन हुए। पूर्वजों ने उन अपशकुनों को होली से जोड़कर देखा। तब से होली न मनाना परंपरा की तरह हो गया। आज भी ग्रामीण आसपास के गांवों में मनाई जाने वाली होली में शामिल तक नहीं होते हैं।
रुद्रप्रयाग में भी कुछ गांव ऐसे है जहाँ होली प्रतिबंधित है।इसके पीछे इष्टदेवी की पूजा से जुड़ी कुछ परंपराएं है।यहां तीन गांव ऐसे है जो होली महोत्सव से दूर रहते है,ये न तो रंग एक दूसरे पर डालते है न ही बाहरी गांवों से कोई होलियार यहां आता है।
रुद्रप्रयाग के क्विलि,क़ुर्झण, और जौंदला ये तीन गांव होली से कोसों दूर है। ये तीन गांव एक दूसरे से सटे हुए है। अगस्त्यमुनि विकास खण्ड के दशज्यूला पट्टी में अलकनंदा घाटी में ये तीनो गांवों बसे है। लोकेशन की बात करे तो ये तीनो गांवों बद्रीनाथ नेशनल हाईवे पर रुद्रप्रयाग से कुछ ही दूरी पर स्थित घोलतीर कस्बे के ठीक सामने दाईं ओर बसे है। यहां ज़्यादातर अनुसूचित जाति और राजपूत समाज के लोग रहते है. इनका मानना है कि गांव की इष्टदेवी मां त्रिपुरा सुंदरी को होली पर हुड़दंग पसन्द नही है। इसीलिए होली प्रतिबंधित है। कुछ साल पहले किसी ने नियम तोड़ने की कोशिश की थी उसी साल यहां महामारी फैल गयी थी,मां देवी त्रिपुरा सुंदरी के नाराज़ होने से लोग डरते है। ऐसा कई बार हुआ जब यहां होली खेलने की कोशिश हुई और उसी साल कुछ न कुछ अनहोनी हुई। इसी डर से यहां होली नही खेली जाती।