अनूठी शादीः एक दुल्हन दो दूल्हे! 2 भाइयों ने एक ही दुल्हन से रचाई शादी, तीनों ने एक साथ लिए 7 फेरे! जानें क्या है हट्टी समुदाय की परंपरा?

नई दिल्ली। हिमाचल प्रदेश से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने हर किसी का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया है। यहां शिलाई गांव में हट्टी जनजाति के दो भाई एक महिला से विवाह बंधन में बंध गए। यह शादी किसी से छिपी नहीं थी, बल्कि पूरे धूमधाम से, तीन दिनों तक चली रस्मों-रिवाजों के साथ हुई। दुल्हन सुनीता चौहान और दूल्हे प्रदीप और कपिल नेगी ने कहा कि उन्होंने बिना किसी दबाव के यह फैसला लिया। तीनों ने इस बात का दावा किया है कि उन्होंने पुरानी परंपरा का पालन किया है। सिरमौर जिले के ट्रांस गिरी क्षेत्र में 12 जुलाई से शुरू हुए और तीन दिनों तक चले इस समारोह में स्थानीय लोकगीतों ने रंग भर दिया। हिमाचल प्रदेश के रेवेन्यू लॉ इस परंपरा को मान्यता देते हैं। ट्रांस-गिरी के बधाना गांव में पिछले 6 सालों में ऐसी पांच शादियां हो चुकी हैं। यह शादी हट्टी समुदाय की एक पुरानी परंपरा उजला पक्ष यानी जोड़ीदारा के तहत हुई है। इसमें एक महिला दो या दो से ज्यादा भाइयों से शादी करती है।कुन्हाट गांव की रहने वाली सुनीता ने कहा कि उन्हें इस परंपरा की जानकारी थी और उन्होंने बिना किसी दबाव के यह फैसला लिया। उन्होंने यह भी कहा कि वह अपने बीच बने बंधन का सम्मान करती हैं। शिलाई गांव के प्रदीप एक सरकारी विभाग में काम करते हैं, जबकि उनके छोटे भाई कपिल विदेश में नौकरी करते हैं। प्रदीप ने कहा कि हमने इस परंपरा का सार्वजनिक रूप से पालन किया, क्योंकि हमें इस पर गर्व है। कपिल ने कहा कि वह भले ही विदेश में रहते हों, लेकिन इस शादी के जरिये हम एक संयुक्त परिवार के रूप में अपनी पत्नी के लिए समर्थन, स्थिरता और प्यार सुनिश्चित कर रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि हमने हमेशा पारदर्शिता में भरोसा किया है।
क्या है जोड़ीदार यानी बहुपति प्रथा?
हट्टी हिमाचल प्रदेश-उत्तराखंड बॉर्डर पर मौजूद एक घनिष्ठ समुदाय है और इसे तीन साल पहले अनुसूचित जनजाति घोषित किया गया था। इस जनजाति में सदियों से बहुपतित्व प्रथा प्रचलित थी, लेकिन महिलाओं में बढ़ती साक्षरता और क्षेत्र में समुदायों के आर्थिक उत्थान की वजह से बहुपतित्व के मामले सामने नहीं आए। इस प्रथा को आसान भाषा में समझा जाए तो बहुपति प्रथा में एक महिला द्वारा एक से ज्यादा पतियों से शादी करने की प्रथा है। इस प्रथा को जोड़ीदारा या उजला पक्ष के नाम से भी जाना जाता है। इसमें ज्यादातर सगे भाई ही शामिल होते हैं। हालांकि, कई रिपोर्ट्स में ऐसा भी दावा किया गया है कि इस प्रथा का संबंध महाभारत काल से है।
क्या है इस परंपरा के पीछे का कारण?
गांव के बुजुर्गों ने बताया कि इस तरह की शादियां गुप्त तरीके से की जाती थीं और समाज की तरफ से इनको स्वीकार भी किया जाता था। हालांकि ऐसे मामले कम हैं। एक्सपर्ट के मुताबिक इस परंपरा के पीछे एक सबसे अहम वजह यह थी कि पैतृक जमीन का बंटवारा न हो, जबकि पैतृक संपत्ति में आदिवासी महिलाओं का हिस्सा अभी भी एक मुख्य मुद्दा है। सिरमौर जिले के ट्रांस गिरि क्षेत्र के लगभग 450 गांवों में हट्टी समुदाय के लगभग तीन लाख लोग रहते हैं और कुछ गांवों में बहुपति प्रथा आज भी प्रचलित है। यह उत्तराखंड के आदिवासी क्षेत्र जौनसार बाबर और हिमाचल प्रदेश के आदिवासी जिले किन्नौर में भी प्रचलित थी। खबरों के मुताबिक यह परंपरा हजारों साल पहले एक परिवार की खेती वाली जमीन को और भी ज्यादा बंटवारे से बचाने के लिए शुरू की गई थी। बताया जाता है कि एक कारण जॉइंट फैमिली में भाईचारे और आपसी समझ को बढ़ावा देना भी था। तीसरा कारण सुरक्षा की भावना है।