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पत्रकारिता की हार और आत्महत्या!केविन कार्टर को जिस फ़ोटो की वजह से मिला था पुलित्ज़र अवार्ड,उसी फ़ोटो ने उन्हें मजबूर किया था आत्महत्या करने के लिए!आज भी न्यूज़ सेंस नही पत्रकारों को!इतिहास से कुछ तो सीखिए

Suicide in journalism's defeat! Kevin Carter received the Pulitzer Prize for the same photo that compelled him to commit suicide

पत्रकारिता एक बेहद ज़िम्मेदारी और संवेदनशील भरा काम होता है। क्या छापना है?क्या नही छापना है? क्या लिखना है?क्या दिखाना है? क्या सच है? क्या झूठ है ? और क्या ,जिम्मेदारी है ये सब पत्रकारिता में बेहद महत्वपूर्ण होते है। न्यूज़ सेंस यानी खबरों की समझ ही एक पत्रकार को बेहतर बनाती है। 
आज हम एक ऐसे फ़ोटो जर्नलिस्ट की बात कर रहे है जिसे जिस तस्वीर के लिए दुनिया का सबसे बड़े पुलित्ज़र अवार्ड से सम्मानित किया गया उसी तस्वीर ने उसे आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया। एक लापरवाही, गैर जिम्मेदाराना व्यहवार अगर उस दिन न होता तो शायद आज एक उम्दा फोटोग्राफर हमारे बीच ज़िंदा होता।


ये रियल कहानी साउथ अफ्रीका के फोटोजर्नलिस्ट केविन कार्टर की है जिनकी फोटोज ने दुनिया भर में तहलका मचाया। उन्हीं फोटोज में एक फोटो थी सूडान देश की। 1993 में जब सूडान में अकाल पड़ गया था तब तमाम मीडिया सूडान की स्थिति पर नज़र बनजाये हुए थी। केविन भी सूडान पहुंचे और वहाँ के हालातों का जायजा लिया। अचानक एक सुखी बंजर पड़ी जमीन पर उनकी नज़र गयी जहाँ भूख से तड़पती एक बच्ची मौत के मुंह मे जाने को तैयार थी। तेज़ चिलमिलाती गर्मी से और बुरा हाल था,वो बच्ची मौत की लकीर के बेहद ही करीब थी ज़िंदा तो थी पर बेजान और कंकाल हो गयी थी। सिर नीचे कर भूख से तड़पते हुए मौत का इंतज़ार कर रही थी,बच्ची के पीछे कुछ दूरी पर एक बड़ा सा गिद्ध बैठा था जो इंतज़ार में था कि ये मरे तो मैं इसे खा जाऊं,अपना आज का निवाला बना लूं। सूखी बंजर जमीन,तेज़ धूप,अकाल की स्थिति,भूख प्यास से तड़पती बच्ची और पीछे बैठा गिद्ध। केविन ने 20 मिनट तक इस दृश्य को देखा और अपने कैमरे में क़ैद कर लिया।


1994 तक केविन की खींची ये फोटो दुनियाभर में वायरल हो चुकी थी। न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी इस फोटो के लिए उन्हें उसी साल पत्रकारिता के क्षेत्र में मिलने वाला सबसे बड़ा अवार्ड पुलित्ज़र से नवाजा गया। 23 मई 1994 के दिन कार्टर को कोलंबिया यूनिवर्सिटी के लॉ मेमोरियल लाइब्रेरी में उन्हें पुलित्ज़र पुरस्कार से नवाज़ा गया। अवार्ड समारोह में एक रिपोर्टर ने केविन से सवाल किया था"वहाँ कितने गिद्ध थे? केविन ने जवाब दिया एक,तो रिपोर्टर ने कहा वहाँ दो गिद्ध थे,एक के हाथ मे कैमेरा था। ये सुनकर केविन ग्लानि से भर गए।

 


हज़ारो लोगो ने केविन को और अखबारों को पत्र लिखे और पूछा कि बाद में उस बच्ची का क्या हुआ। अखबारों ने कई पत्रों के जवाब दिए और कहा हमे नही पता क्या हुआ। हज़ारों लाखों लोगों ने केविन कार्टर से इस इथोपियाई बच्ची के बारे में हज़ारों सवाल किए। कईयों ने उस पर यह आरोप भी लगाए कि उसने उस समय फोटो खींचना ज्यादा उचित समझा उस रेंगती हुई बच्ची को बचाने के बजाय। 


बच्ची को न बचा पाने की आत्मग्लानि इस कदर केविन पर हावी हो गयी कि वो डिप्रेशन में जाने लगा।


केविन के करीबियों ने कई बार खुलासा किया कि केविन उस सूडान की फ़ोटो के बाद नशे के लती हो गए।केविन ने कई बार आत्महत्या करने की कोशिश भी की। अंत मे वो कामयाब भी हुए। 27 जुलाई 1994 केविन की ज़िंदगी का आखिरी दिन था। 27 जुलाई, 1994, उनके जीवन का आखिरी दिन साबित हुआ, उन्होंने एक पेड़ के नीचे, जहाँ वो अक्सर बचपन में खेला करते थे, अपनी गाड़ी में कार्बन-मोनोऑक्साइड जहर से आत्महत्या कर ली। कार्टर ने अपने आखिरी ख़त में लिखा था कि वो काफी परेशान हैं. उन्हें लाशें, भुखमरी, घायल बच्चे, दर्द की तस्वीरें रह-रह कर परेशान करतीं हैं. कहा जाता है कि बाद में उन पर ज़िंदगी का यह दर्द, ख़ुशियों पर इतना हावी हो गया है कि अब कोई ख़ुशी रही ही नहीं!


केविन के मौत के बाद कई लोगो ने कहा कि केविन को तभी मर जाना चाहिए था जब उसने गिद्ध के निवाले के लिए भूख से तड़पती बच्ची को छोड़ दिया था। कई लोग केविन के बैकग्राउंड का हवाला देकर केविन का पक्ष लेने लगे। पक्ष लेने वालों की हमेशा यही दलील रही कि केविन दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग का रहने वाला था जब नेल्सन मंडेला की अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस को गैरकानूनी संगठन घोषित किया गया था। रंगभेद चरम था तो केविन के मातापिता ने भी अफ्रीका में रंगभेद को स्वीकार कर लिया था,लेकिन केविन ने इसके खिलाफ आवाज़ उठाई। अक्सर रंगभेद के खिलाफ बोलने पर केविन की लड़ाई घर पर होती थी। केविन डिफेंस फोर्स में शामिल हुए जहा रंगभेद की पराकाष्ठा थी। काले युवक का साथ देने पर केविन को काफिर कहकर पीटा भी गया। कई नौकरियों को छोड़कर केविन पत्रकारिता करने लगे। जोहान्सबर्ग संडे एक्सप्रेस में केविन वीकली स्पोर्ट्स फोटोग्राफर बन गए। 1984 में जब काले लोगो की बस्तियों को तोड़ा गया तो केविन व्हाइट फ़ोटो जर्नलिस्ट में शामिल हुए जो रंगभेद की क्रूरता को सामने ला रहे थे।

 


केविन का पक्ष लेने वाले कहते थे कि खून खराबा हर रोज देखते देखते केविन और उनके साथी नशे के आदि हो गए। केविन ने बोफ़ो तस्वाना नरसंहार को भी कवर किया जब गोलीबारी हो रही थी तब केविन के बगल से गोली निकली वो मरते मरते बचे थे।

सुडान में दम तोड़ती बच्ची को गिद्ध के पास छोड़कर चले जाने के पीछे ये दलील कितनी सार्थक है ये समझना मुश्किल है क्योंकि एक पत्रकार खुद भले ही कितनी भी मुश्किल में क्यो न हो वो अपनी ज़िम्मेदारी से भला कैसे मुँह मोड़ सकता है। केविन जो रंगभेद के खिलाफ थे उन्होंने क्या उस को बच्ची जानकार मरने के लिए छोड़ दिया था? ये रंगभेद की कैसी खिलाफत थी? हालांकि उसके बाद दुनिया इस बात को नहीं झुठला सकती कि, जब दुनिया को कोई खोज-खबर नहीं थी, तब केविन ने सूडान की इतनी भयानक तस्वीर पेश की थी। 


पत्रकारिता के क्षेत्र में भले ही केविन ने दुनियाभर में नाम कमाया हो लेकिन उसी पत्रकारिता में उनकी हार भी हुई,उनके न्यूज़ सेंस की हार हुई,उनकी इंसानियत की हार हुई। आज भी कई पत्रकार किसी एक्सीडेंट को कवर करने की होड़ में रहते है भले ही एक्सीडेंट में घायल कोई मर ही क्यो न जाये। ब्रेकिंग न्यूज़ चलाने की रेस में आज पत्रकार इंसानियत को भूल रहे है। 

केविन कार्टर स्वाभिमानी था जो बच्ची को न बचा पाने की ग्लानि से मौत को गले लगा बैठा लेकिन आज ऐसा भी स्वाभिमानी पत्रकार नही बचा। जो है भी उन्हें उनके संस्थान ब्रेकिंग पहले क्यो नही दी कहकर टर्मिनेट कर देती है।