विशेष: जी रया जागी रया...! सुख, समृद्धि और हरियाली का उत्सव है हरेला, कराता है प्रकृति और पर्यावरण के महत्व का बोध

उत्तराखण्ड में आज हरेला पर्व आस्था और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। "हरेला" पर्व "हरियाला" से जुड़ा है और हमें पर्यावरण संरक्षण का सन्देश देता है। ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति उत्तराखण्ड के कुमाऊं क्षेत्र में हुई थी। हालांकि हरेला उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के कुछ इलाकों में मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व है। यह मुख्य रूप से कुमाऊं क्षेत्र में लोकप्रिय है और इसे बहुत उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है। हरेला पर्व हरियाली, कृषि, पर्यावरण संरक्षण और सामुदायिक एकता का प्रतीक है। इस दिन पौधारोपण, भगवान शिव-पार्वती की पूजा और पारंपरिक लोकगीतों के साथ समृद्धि की कामना की जाती है। बता दें कि हरेला श्रावण-मास के पहले दिन पड़ता है, जो मॉनसून के मौसम और नई फसलों के रोपाई का प्रतीक है। शांति, समृद्धि और हरियाली का त्योहार हरेला पर्व परंपराओं से भरा हुआ है और इसका सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्व बहुत अधिक है। यह भगवान शिव और पार्वती के विवाह के औपचारिक पालन के साथ-साथ ईश्वर से भरपूर फसल और समृद्धि की कामना करने वाले लोगों की आस्था और प्रार्थना का प्रतीक है। इस दिन पांच से सात प्रकार की फसलों- मक्का, तिल, उड़द, सरसों, जौं के बीज त्यौहार से नौ दिन पहले पत्तों से बने कटोरे, रिंगाल या पहाड़ी बांस की टोकरियों में बो दिए जाते हैं। नौवें दिन इन्हें काटा जाता है और पड़ोसियों, दोस्तों और रिश्तेदारों में बांटा जाता है। फसलों का फलना-फूलना आने वाले साल में समृद्धि का प्रतीक है। खीर, पुवा, पूरी, रायता, छोले और अन्य व्यंजन उत्सव के रूप में तैयार किए जाते हैं। त्यौहार के दिन स्थानीय लोग कुमाऊंनी भाषा में निम्नलिखित पंक्तियां गाते हैं-
जी रया जागी रया, यो दिन यो बार भेंटने रया।
दुब जस फैल जाया, बेरी जस फली जाया।
हिमाल में ह्युं छन तक, गंगा ज्यूं में पाणी छन तक, यो दिन और यो मास भेंटने रया।
अकास जस उच्च है जे, धरती जस चकोव है जे। स्याव जसि बुद्धि है जो, स्यू जस तराण है जो।
जी राये जागी रया। यो दिन यो बार भेंटने रया।
यानी जीते रहो, तुम्हारी उम्र लंबी हो। इस दिन हर साल तुमसे मिलना होता रहे। दूब यानी दूर्वा की तरह आपकी प्रतिष्ठा और समृद्धि बढ़ती जाए। बेरी के पौधों की तरफ आप हर हालात में आगे बढ़ते जाएं। जब तक हिमालय में बर्फ रहेगी, गंगा जी में पानी रहेगा तब तक इस दिन मिलना होता रहे। आपका कद आसमान की तरह ऊंचा हो और आप धरती की तरह फलो फूलो, सियार की तरह आपकी बुद्धि तेज हो और शरीर में चीते जैसी ताकत और फुर्ती हो। आप जीते रहें और इस दिन मिलते रहें।
हरेले का महत्व
हालांकि कुमाऊं भर में भी अलग-अलग जगह हरेला बोने की विधि में थोड़ा बदलाव हो सकता है। लेकिन कमोबेश इसी तरह हरेले का त्योहार मनाया जाता है। इसके साथ ही हरेला मनाने के बाद इसके प्रसाद (पैंड़ा) परिवार में बांटा जाता है। इसके साथ ही घर से दूर रहने वालों को चिट्ठी में आशीर्वाद के रूप में हरेले के तिनके भेजे जाते हैं। हरेले का पर्व बच्चों को प्रकृति और पर्यावरण के महत्व का बोध कराता है। पौधे लगाने और उनकी रक्षा करने की प्रेरणा देने वाला यह पर्व एक जीवंत लोक-संस्कृति है।