श्रीकृष्ण जन्माष्टमी:अगर कृष्ण की तालीम आम हो जाए,तो फित्नगरों का काम तमाम हो जाए मिटाएं बिरहमन शेख तफर्रुकात अपने,जमाना दोनों घर का गुलाम हो जाए! मुस्लिम कवियों के भी आराध्य रहे है श्रीकृष्ण
देशभर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की धूम मची हुई है कल मथुरावासियों ने श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया तो आज गोकुल और वृंदावन में जन्माष्टमी की धूम मची रही।
भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में सिर्फ सनातन धर्म के ही लोग शामिल नही है बल्कि मुस्लिम समुदाय के कई लोग श्रीकृष्ण की महिमा का बखान कर चुके है।
ग्यारहवीं शताब्दी के बाद इस्लाम भारत में तेजी से फैला। भारत में इस्लाम कृष्ण के प्रभाव से अछूता नहीं रह पाया। कहते हैं यह श्रीकृष्ण की चुम्बकीय शख्यिसत और उनकी नैतिकता, बुद्धिमत्ता और प्रेम प्रवृति की ऊंचाई का प्रभाव है कि मुस्लिम क्या दुनिया का कोई भी कवि मन श्रीकृष्ण से प्रभावित न हुआ हो.कवि प्रेमी होता है और धर्म, जाति जैसी किसी हद को प्रेम नहीं मानता.इसलिए कृष्ण के प्रेमियों में मुस्लिम कवियों की संख्या कम नहीं है.14वीं सदी के आसपास से हिंदुस्तान की कविता में भक्तिकाल का उदय माना जाता है. इसी के आसपास, संभवतः कुछ पहले से कविता में सूफीवाद की स्थापना होती है. सूफी कवि वास्तव में प्रेमी कवि थे और उनकी कविताओं में रहस्यवाद मुख्य था.
दुनियाभर में चर्चा में आए अमीर खुसरो। एक बार निजामुद्दीन औलिया के सपने में कृष्ण आए। औलिया ने अमीर खुसरो से कृष्ण की स्तुति में कुछ लिखने को कहा तो खुसरो ने मशहूर रंग ‘छाप तिलक सब छीनी रे से मोसे नैना मिलायके’ कृष्ण को समर्पित कर दिया।
भगवान कृष्ण के परम भक्तों में से एक हैं रसखान। उनका असली नाम सैयद इब्राहिम था, मगर कृष्ण के प्रति उनके लगाव और उनकी रचनाओं ने उन्हें रसखान नाम दिया। रसखान यानी रस की खान। कहा जाता है कि रसखान ने भागवत का अनुवाद फारसी में किया था। मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गांव के ग्वारन, रसखान की ही देन है।
आलम शेख़ रीति काल के कवि थे। उन्होंने ‘आलम केलि’, स्याम स्नेही’ और माधवानल-काम-कंदला’ नाम के ग्रंथ लिखे। ‘हिंदी साहित्य के इतिहास’ में रामचन्द्र शुक्ल लिखते हैं कि आलम हिंदू थे जो मुसलमान बन गए थे। उन्होंने कृष्ण की बाल लीलाओं को अपनी रचनाओं में उतारा था। उनकी प्रमुख रचना ‘पालने खेलत नंद-ललन छलन बलि,
गोद लै लै ललना करति मोद गान’ है।
उमर अली यह बंगाल के प्राचीन श्रीकृष्ण भक्त कवियों में से एक हैं। इनकी रचनाओं में भगवान कृष्ण में समाए हुए राधाजी के प्रति प्रेम भाव को दर्शाया गया है। इन्होंने बंगाल में वैष्णव पदावली की रचना की है।
नशीर मामूद यह भी बंगाल से ही आते हैं। इनका जो पद मिला है वह गौचारण लीला का वर्णन करता है। पद भाव रस से पूर्ण है। श्रीकृष्ण और बलराम मुरली बजाते हुए गायों के साथ खेल रहे हैं। सुदामा आदि सखागण उनके साथ हैं। इनकी रचना इस प्रकार है… धेनु संग गांठ रंगे, खेलत राम सुंदर श्याम।
दिल्ली की उठापटक से खिन्न रसखान ने वृंदावन और मथुरा को ही अपना घर इसलिए बना लिया था क्योंकि वह कृष्ण प्रेम में ही गिरफ्तार थे. उनकी कविताओं को कई आलोचक व विद्वान सूरदास की रचनाओं के समकक्ष मानते हैं.
अब्दुल रहीम खानखाना को तुलसीदास का गहरा दोस्त कहा जाता है. हालांकि रहीम अपने नीतिपरक दोहों और अन्य काव्य के लिए ज्यादा जाने गए लेकिन उन्होंने समय समय पर कृष्ण काव्य भी रचा. उनकी कृष्ण संबंधी रचनाओं के अंश देखें-
जिहि रहीम मन आपुनो, कीन्हों चतुर चकोर
निसि बासर लाग्यो रहे, कृष्ण चन्द्र की ओर.
नजीर अकबराबादी का कृष्ण प्रेम मिसाल के तौर पर दर्ज दिखता है. राधा के साथ मीरा के कृष्ण प्रेम की जिस तरह तुलना की जाती है, वैसे ही नजीर के कृष्ण काव्य की तुलना रसखान से किए जाने की गुंजाइशें निकाली जाती हैं. उनकी एक प्रसिद्ध कृष्ण प्रेम रचना देखें -
तू सबका खुदा, सब तुझ पे फिदा, अल्ला हो गनी, अल्ला हो गनी
है कृष्ण कन्हैया, नंद लला, अल्ला हो गनी, अल्ला हो गनी
तालिब है तेरी रहमत का, बन्दए नाचीज़ नजीर तेरा
तू बहरे करम है नंदलाला, ऐ सल्ले अला, अल्ला हो गनी, अल्ला हो गनी
कुछ महत्वपूर्ण कवि चिंतक, कवि, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और राजनेता रहे मौलाना हसरत मोहानी हों या उर्दू के मशहूर व सम्मानित शायर अली सरदार जाफरी, कृष्ण प्रेम और कृष्ण के दर्शन को मुस्लिम कवियों में मान्यता हर समय में मिलती रही. जाफरी का लिखा है-
अगर कृष्ण की तालीम आम हो जाए
तो फित्नगरों का काम तमाम हो जाए
मिटाएं बिरहमन शेख तफर्रुकात अपने
जमाना दोनों घर का गुलाम हो जाए.