Awaaz24x7-government

राजनीतिक हितों का मंच बनता धार्मिक उत्सवः ट्रांजिट कैंप सार्वजनिक श्री दुर्गा पूजा कमेटी के गठन पर उठते रहे हैं सवाल! पद की लालसा, दुर्गा पूजा समितियों में सियासी खींचतान

Religious festivals become a platform for political interests: Questions have been raised on the formation of Transit Camp Sarvajanik Shri Durga Puja Committee! Lust for power, political tussle in Du

रुद्रपुर। हर साल शारदीय नवरात्रि के आगमन के साथ ही देशभर में दुर्गा पूजा की तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो जाती हैं। यह त्योहार, विशेष रूप से बंगाली समुदाय के लिए, धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक एकता और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। लेकिन, इस पवित्र उत्सव के आयोजन के पीछे एक ऐसी सच्चाई भी छिपी है, जो धार्मिकता से परे जाकर सामाजिक और राजनीतिक के साथ निजी हितों को उजागर करती है। दुर्गा पूजा समितियों के गठन में होने वाली राजनीतिक खींचतान और सत्ता की होड़ इस त्योहार के आयोजन को जटिल बना देती है। जनपद ऊधम सिंह नगर के जिलामुख्यालय रुद्रपुर में भी यह स्थिति साफ देखी जा सकती है, जहां ट्रांजिट कैंप दुर्गा पूजा समिति,सबसे पुरानी समितियों में से एक है, और इसमें भी राजनीतिक प्रभाव और विवादों का बोलबाला है।

सार्वजनिक श्री दुर्गा पूजा का आयोजन केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है। यह एक ऐसा अवसर है, जो सामुदायिक एकता को बढ़ावा देता है और स्थानीय स्तर पर सामाजिक नेतृत्व को प्रदर्शित करने का मौका देता है। प्रत्येक वर्ष पूजा के आयोजन के लिए समितियों का गठन किया जाता है, जिसमें स्थानीय गणमान्य व्यक्तियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और व्यापारियों को शामिल किया जाता है। कमेटी का सदस्य होना न केवल सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक है, बल्कि यह स्थानीय समुदाय में प्रभाव और पहचान बढ़ाने का एक मंच भी है। लेकिन यहीं से शुरू होती है राजनीतिक दखलअंदाजी।

रुद्रपुर में ट्रांजिट कैम्प दुर्गा पूजा समिति के गठन की प्रक्रिया इसका जीवंत उदाहरण है। इस समिति का इतिहास लंबा और गौरवशाली है, लेकिन हर साल इसके गठन के दौरान होने वाले विवाद इसकी चमक को फीका करते हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े लोग इस समिति में अपने समर्थकों को शामिल करने के लिए जोर-आजमाइश करते हैं। इसका कारण केवल सामाजिक प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि वित्तीय और राजनीतिक लाभ भी हो सकता है। दुर्गा पूजा के आयोजन में भारी मात्रा में धन खर्च होता है। पंडाल सज्जा, मूर्ति निर्माण, सांस्कृतिक कार्यक्रम और अन्य व्यवस्थाओं के लिए लाखों रुपये का बजट तैयार किया जाता है। इस बड़े बजट को संभालने की जिम्मेदारी कमेटी के सदस्यों पर होती है, और यहीं से वित्तीय हितों का खेल शुरू होता है। चंदे के संग्रह, प्रायोजकों से धन प्राप्ति और खर्चों का हिसाब-किताब कमेटी के सदस्यों के लिए आकर्षण का केंद्र होता है। कुछ लोग इस अवसर का उपयोग अपने व्यापारिक और निजी हितों को बढ़ाने के लिए करते हैं, तो कुछ इसे सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने के लिए एक मंच के रूप में देखते हैं।

रुद्रपुर में ट्रांजिट कैम्प के सार्वजनिक श्री दुर्गा पूजा समिति के गठन के दौरान यह देखा गया है कि विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि अपने-अपने समर्थकों को कमेटी में शामिल करने के लिए खुलकर लॉबिंग करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि कई बार योग्य और समर्पित व्यक्तियों के बजाय राजनीतिक रूप से प्रभावशाली लोग कमेटी में स्थान पा लेते हैं। इससे न केवल आयोजन की गुणवत्ता प्रभावित होती है, बल्कि सामुदायिक एकता भी कमजोर पड़ती है। दुर्गा पूजा समितियों में राजनीतिक दलों का प्रभाव कोई नई बात नहीं है। विभिन्न दलों के नेता इस अवसर को अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने और मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए उपयोग करते हैं। रुद्रपुर जैसे क्षेत्रों में, जहां बंगाली समुदाय की आबादी उल्लेखनीय है, दुर्गा पूजा एक ऐसा मंच बन जाता है, जहां राजनीतिक दल अपनी ताकत का प्रदर्शन करते हैं। पंडालों में नेताओं की उपस्थिति, उनके भाषण और उनके द्वारा प्रायोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम इस बात का स्पष्ट संकेत हैं कि पूजा का आयोजन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि एक राजनीतिक मंच भी है।

जानकारी के अनुसार,ट्रांजिट कैम्प दुर्गा पूजा समिति में हर साल कुछ लोग, चाहे उनका सामाजिक वर्चस्व हो या न हो, पद की लालसा में जुट जाते हैं। यह आकांक्षा केवल सामाजिक सम्मान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें वित्तीय और राजनीतिक हित भी शामिल हैं। हैरानी की बात यह है कि कुछ लोग, जिन्हें उनके कार्यों के लिए सम्मानित कर समिति से विदाई दी जा चुकी है, हर बार नए सिरे से कमेटी में स्थान पाने के लिए राजनीतिक जोड़-तोड़ शुरू कर देते हैं। मीटिंग से पहले ही गोटियां सेट की जाती हैं, ताकि उनके समर्थक या स्वयं वे समिति में शामिल हो सकें। ऐसे में सवाल उठता है कि जिन लोगों को उनके योगदान के लिए सम्मानित कर विदाई दी गई, वे बार-बार समिति में पद क्यों हासिल करना चाहते हैं? क्या यह सामाजिक सेवा की भावना है, या फिर सत्ता और प्रभाव के साथ निजी हितों की भूख? यह स्थिति न केवल समिति के गठन की पारदर्शिता पर सवाल उठाती है, बल्कि पूजा के सामुदायिक स्वरूप को भी प्रभावित करती है। ट्रांजिट कैंप में यह देखा गया है कि कुछ गिने-चुने लोग हर साल समिति की संरचना से लेकर पूजा के समापन तक आयोजन पर अपनी पकड़ बनाए रखते हैं। यह स्थिति इस कदर हावी हो चुकी है कि ट्रांजिट कैंप की सार्वजनिक दुर्गा पूजा अब कुछ लोगों के निजी आयोजन जैसी प्रतीत होने लगी है। समुदाय के अन्य लोग, विशेष रूप से युवा और महिलाएं, इस प्रक्रिया में हाशिए पर धकेल दिए जाते हैं।

दुर्गा पूजा एक ऐसा त्योहार है, जो मां दुर्गा की शक्ति और भक्ति का प्रतीक है। यह समुदाय को एकजुट करने और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करता है। लेकिन जब इस आयोजन में राजनीति और सत्ता की होड़ के साथ निजी हित हावी हो जाती है, तो इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व कमजोर पड़ने लगता है। कई लोग इस बात से चिंतित हैं कि ट्रांजिट कैंप दुर्गा पूजा समिति जैसे संगठनों में राजनीतिक प्रभाव के कारण सामुदायिक एकता को नुकसान पहुंच रहा है। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और युवाओं का मानना है कि दुर्गा पूजा समितियों को राजनीति और निजी हित से मुक्त रखने की जरूरत है। उनका कहना है कि कमेटी के गठन में योग्यता, समर्पण और सामुदायिक हितों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, न कि राजनीतिक निष्ठा को। इसके लिए कुछ लोग पारदर्शी और लोकतांत्रिक तरीके से कमेटी के गठन की वकालत करते हैं, ताकि सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व हो और विवादों से बचा जा सके। दुर्गा पूजा केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। लेकिन जब यह सत्ता और स्वार्थ की राजनीति का शिकार बन जाता है, तो इसका मूल उद्देश्य धूमिल हो जाता है। रुद्रपुर की ट्रांजिट कैंप दुर्गा पूजा समिति को इस चुनौती से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। यदि हम इस त्योहार को उसके शुद्ध और समावेशी स्वरूप में बनाए रखना चाहते हैं, तो सामुदायिक सहयोग, पारदर्शिता और समर्पण को प्राथमिकता देनी होगी। तभी मां दुर्गा की यह पूजा वास्तव में समुदाय को एकजुट कर आध्यात्मिक और सामाजिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करेगी।