धराली आपदा के बाद उठे सवाल: कब जागेगा शासन-प्रशासन! खतरे की ज़द में नैनीताल, चारों तरफ भूस्खलन का खतरा, हर पल डर के साए में रहते हैं ऊंचे क्षेत्रों में बसे लोग

नैनीताल।उत्तरकाशी के धराली में बादल फटने से आई भयंकर आपदा ने पहाड़ी इलाकों में बसे लोगों को चिंता में डाल दिया है। सरोवर नगरी नैनीताल की बात करे तो यहां के चार्टन लॉज क्षेत्र सितंबर 2023 में हुए भूस्खलन के बाद से ही अति संवेदनशील बना हुआ है। इधर इन दिनों भारी बारिश के बाद भी विभाग सुरक्षा कार्य नहीं कर पा रहा है,जबकि पूर्व में भू वैज्ञानिकों ने स्थायी ट्रीटमेंट के कार्य में लेट लतीफी को खतरनाक बताया था। यहां पूरा क्षेत्र तिरपाल के भरोसे पर टिका हुआ है,पूर्व में ही सुरक्षा के लिए बनाई गई जियो बैग की अस्थाई दीवार भी टूट गई।
सिर्फ चार्टन लॉज ही नहीं बल्कि नैनीताल चारों ओर से लैंडस्लाइड के खतरे से जूझ रहा है। पूर्व में नैनीताल की सबसे ऊंची चोटी चाइना पीक में भी भूस्खलन हुआ था,वहां भी अस्थाई ट्रीटमेंट कर दिया गया था लेकिन चाइना पीक की तलहटी में रहने वाले लोगों पर खतरा आज भी बना हुआ है क्योंकि रुक- रुककर विशालकाय चट्टानें चाइना पीक से नीचे की तरफ गिरती रहती है।
ऐसा नहीं है कि नैनीताल पर अचानक ही भूस्खलन का खतरा मंडराने लगा है। नैनीताल के अल्मा हिल में 18 सितंबर 1880 के दिन एक विनाशकारी भूस्खलन आया था, जिसकी वजह से न सिर्फ इस शहर का भूगोल बदल गया बल्कि ब्रिटिश और भारतीयों को मिलाकर करीब 151 लोगों की जान भी गई थी। नैनीताल तीन ओर से ऊंची पहाड़ियों से घिरा है और झील की ओर नीचे बालियानाला है जिसे शहर की नींव के रूप में देखा जाता है। ये नींव पहले ही डगमगा चुकी है।नाले में साल 1867 में सबसे पहले भूस्खलन का रिकॉर्ड उपलब्ध है, इसके बाद यहां अक्सर ही मलबा आने की घटनाएं होती रही। बलियानाला क्षेत्र में 1972 में बड़ा भूस्खलन हुआ,तब से लगातार यहां भूस्खलन हो रहा है,बालियानाला से होकर जाने वाला विरभट्टी का रास्ता क्षतिग्रस्त हो चुका है। एक्सपर्ट्स की माने तो बलियानाला हर साल 60 सेंटीमीटर से एक मीटर खिसक रहा है,और जिस दिन ये पूरा धंस जाएगा वो दिन नैनीताल के लिए प्रलय साबित होगी।
बलियानाला के साथ साथ अब शहर की तीनों पहाड़ियों में भी भूस्खलन होने लगा है जो नैनीताल के लिए एक बड़ी चेतावनी है। कुछ साल पहले डीएसबी कॉलेज के पास भी भूस्खलन हो चुका है जिसका अस्थाई ट्रीटमेंट तो होता है लेकिन बारिश के दिनों में फिर से डीएसबी कॉलेज के केपी और एसआर महिला छात्रावास पर खतरा मंडराने लगता है। यहां भूस्खलन का बड़ा कारण वहां की फॉल्ट लाइन बताया जाता है।
2018 में लोवर मॉल रोड का एक बड़ा भाग धंस गया था,और झील में समा गया था, ट्रीटमेंट तो हुआ लेकिन तब से लेकर आज तक अपर मॉल रोड और लोअर मॉल रोड दोनों में जगह जगह दरारें दिखाई देती है।
नैनीताल की सबसे खूबसूरत जगह टिफिन टॉप दो साल पहले ही टूट गई , यहां पिकनिक स्पॉट डोरोथी सीट रात के अंधेरे में पूरी तरह नष्ट हो गई। ये पहाड़ी भी भूस्खलन की जद में आ चुकी है।
बता दें कि अंग्रेजों ने नैनीताल में तीन जोन बनाए थे सुरक्षित (सेफ) जोन जिसमें मल्लीताल बाजार क्षेत्र, तल्लीताल का रिक्शा स्टैंड क्षेत्र,बाजार क्षेत्र ,सेंट जोसेफ कॉलेज क्षेत्र, जिला न्यायालय, कलेक्ट्रेट शामिल है। दूसरा असुरक्षित (अनसेफ) जोन जिसमें चाइना पीक के नीचे का क्षेत्र,अयारपाटा पहाड़ी में कुछ इलाके,तल्लीताल में लॉन्ग व्यू स्कूल क्षेत्र, मेल रोज कंपाउंड।
और तीसरा निषिद्ध यानी (Prohibited) जोन जिसमें अल्मा हिल पहाड़ी, चार्टन लॉज, शेर का डांडा,बलियानाला, मनोरा पीक शामिल है। तब केवल सुरक्षित क्षेत्र में निर्माण की अनुमति थी। असुरक्षित क्षेत्र में व्यक्ति अपने जोखिम पर हल्का निर्माण कर सकता था, लेकिन प्राकृतिक आपदा से हुए नुकसान की स्थिति में सरकार कोई जिम्मेदारी नहीं लेती थी, न मुआवजा देती थी, न ही पुनर्वास। निषिद्ध जोन में किसी भी निर्माण की मनाही थी। वर्तमान में नैनीताल में 90% निर्माण निषिद्ध जोन में हो रहा है, जबकि 10% असुरक्षित जोन में किया जा रहा है। नैनीताल में ज्यादातर पहाड़ी चूना मिट्टी की है। जिनमें बड़ी बड़ी दरारें है एक्सपर्ट मानते है कि बरसात का पानी इन दरारों में घुस जाता है,और इन पहाड़ियों के टूट कर गिरने और भूस्खलन का कारण बनता है। इतिहासकार प्रो अजय रावत बताते हैं कि 1880 तक जो मकान बन गए सो बन गए उसके बाद यहां निर्माण पर रोक लगा दी गई थी। इतिहासकार प्रो अजय रावत बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल में बहुमंजिला इमारत बनाने पर रोक लगाई है, यहां ग्रुप हाउसिंग पूरी तरह से प्रतिबंधित है. डॉ. अजय रावत बनाम यूनियन ऑफ इंडिया 674/1993 और इसमें यह निर्णय हुआ था कि नैनीताल में बहुमंजिला बिल्डिंग नहीं बनेंगी। पर नैनीताल में अब भी उनका निर्माण जारी है। डॉ. रावत कहते हैं यह सारी बहुमंजिला इमारतें टूटनी चाहिए।
भूवैज्ञानिक भी कई बार चेता चुके है कि अगर यहां किसी भी तरह का निर्माण पूरी तरह से नहीं रोका गया तो शहर धंस जाएगा। उत्तराखंड शासन ने उत्तराखंड भूस्खलन शमन एवं प्रबंधन केंद्र (यूएलएमएमसी) के माध्यम से वैज्ञानिक सर्वेक्षण कराने का निर्णय लिया था हालांकि सर्वेक्षण हुआ भी लेकिन उसके बाद शहर में ऐसा कोई कार्य नहीं हुआ जिसे ये कहा जा सके कि शहर पर खतरा नहीं रहा।