Awaaz24x7-government

नैनीताल:इतिहास के पन्नो से!नैनीताल में सिनेमा और थियेटर की शुरुआत की रोचक जानकारी,जब 4 ही सिनेमाघर नैनीताल में थे,सिर्फ एक ही सिनेमा हॉल में आम हिंदुस्तानियों को थी फ़िल्म देखने की अनुमति!क्या था पारसी थियेटर? असेंबली हॉल जलने के बाद कौनसा सिनेमाघर बना?

Nainital: From the pages of history! Interesting information about the beginning of cinema and theater in Nainital, when there were only 4 cinema halls in Nainital, Indians were allowed to watch film

भारत में थियेटर का इतिहास लगभग 5,000 साल पुराना है। ऐसा माना जाता है कि नाट्यकला का विकास पहले भारत में ही हुआ था। ऋग्वेद के सूत्रों में यम और यमी, पुरुरवा और उर्वशी आदि के कुछ संवाद हैं,कहा जाता है कि इन्हीं संवादों से प्रेरणा लेकर लोगों ने नाट्यकला को विकसित किया,और आगे जाकर इसी नाट्यकला ने थिएटर का रूप ले लिया। भारत के पहले थिएटर का नाम चैपलिन सिनेमा था, जिसे कोलकाता में जमशेदजी फ्रामजी मदन ने 1907 में बनवाया था। हालांकि 1980 के आसपास इसकी स्थिति काफी खराब हो गई और इसे बंद करना पड़ा।

आइये अब जानते है उत्तराखंड की सरोवर नगरी नैनीताल में थियेटर और सिनेमा की शुरुआत कब और कैसे हुई।

नैनीताल में थियेटर और सिनेमा कब और कैसे आये?

सरोवर नगरी नैनीताल में थियेटर,नाटक और सिनेमाघरों का बेहद दिलचस्प इतिहास रहा है। आज़ादी से पहले नैनीताल में 4 सिनेमाघर हुआ करते थे। इनमें अशोक टॉकीज(गाड़ी पड़ाव मल्लीताल),कैपिटल सिनेमा हॉल(डीएस ग्राउंड),रॉक्सी सिनेमा हॉल जो बाद में लक्ष्मी सिनेमा हॉल बना फिर होटल बन गया,और नॉवेल्टी सिनेमा हॉल मॉलरोड (वर्तमान जिला सूचना कार्यालय)थे।

 

इन चारों सिनेमाघरों में केवल अशोक टॉकीज ही एकमात्र सिनेमाघर था जहां आम हिंदुस्तानियों को प्रवेश की अनुमति थी। 

 

नैनीताल में थियेटर और सिनेमाघरों के इतिहास के बारे में प्रसिद्ध इतिहासकार और पर्यावरणविद प्रो अजय रावत बताते है कि 1856 में कुमाऊं कमिश्नरी की स्थापना हो गयी थी 1862 में नैनीताल समर कैपिटल ग्रीष्म राजधानी (नार्थ वेस्टर्न प्रोवेंसीज एंड अवध की राजधानी) बन गयी, तब 6 महीने के लिए सेक्रेटेरिएट नैनीताल में रहा करता था। उस दौरान टूरिस्ट के साथ साथ अंग्रेज अधिकारी भी नैनीताल बहुत ज्यादा आया करते थे,गवर्नर भी नैनीताल को खास पसन्द करते थे,इसीलिए गर्मियों में वो यही रहते थे।

उस दौर में मनोरंजन के ज़्यादा साधन नही थे,धीरे धीरे अंग्रेजों ने यहां अंग्रेजी थियेटर प्रारंभ किया। इसके लिए उन्होंने "असेंबली हॉल" की स्थापना नैनीझील के किनारे की,जो आज "कैपिटल सिनेमा हॉल" के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजी थियेटर के शोज सबसे पहले इसी असेंबली हॉल में आयोजित हुआ करते थे। बाद में असेंबली हॉल एक्सिडेंटली जल गया, जिसके बाद असेंबली हॉल की जगह सिनेमा थियेटर बनाया गया। थियेटर के साथ साथ सिनेमा की शुरुआत की गई जो बहुत पॉपुलर हुआ। शुरुआत में सिर्फ अंग्रेजी सिनेमा ही हुआ करते थे।


केपिटल सिनेमा हॉल में अंग्रेजी सिनेमा केवल अंग्रेजी दर्शकों के लिए ही चलाये जाते थे। यहां थियेटर सिनेमा देखने की अनुमति अंग्रेजों के अलावा सिर्फ राज परिवार के हिंदुस्तानी, नवाबो,और अमीरों को ही दी जाती थी,आम लोग अशोक सिनेमाहॉल जाया करते थे।

प्रो रावत कहते है कि नैनीताल में थियेटर और सिनेमा का इतिहास एक साथ जुड़ा है। प्रो रावत ने नैनीताल में थियेटर के इतिहास के  बारे में एक और दिलचस्प बात बताई कि जब यहां इंग्लिश थियेटर बहुत लोकप्रिय हो गया था। उस दौरान सेक्रेट्रिएट में ज़्यादातर लोग बाबू थे, यानी क्लेरिकल स्टॉफ ज़्यादा था और ये ज़्यादातर बंगाली लोग थे। उन्होंने यहां नाटक करने शुरू कर दिए। ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि नैनीताल में नाटकों को शुरू करने का श्रेय उन बंगालियों को जाता है,जो सेक्रेट्रिएट में काम करते थे। इसके बाद स्थानीय लोगों ने भी नाटकों में दिलचस्पी दिखाई और नाटकों में भाग लेना शुरू किया। शुरुआत में जो थियेटर नैनीताल में हुआ करते थे उन्हें "पारसी थियेटर"कहा जाता था,क्योंकि ये पारसी थियेटर से बहुत ज्यादा प्रभावित थे।

प्रो रावत बताते है कि नैनीताल के 4 सिनेमाघरों में से कैपिटल सिनेमा हाल की बड़ी विशेषता ये रही कि आजादी के बाद 1970 तक जो अंग्रेजी फिल्में कलकत्ता और बॉम्बे में आती थी वो कैपिटल सिनेमा हॉल में भी प्रदर्शित की जाती थी। प्रो रावत बताते है कि 1960,1970 में जो फिल्में बहुत प्रसिद्ध हुई वो फिल्में नैनीताल में भी देखने को मिल जाती है। इनमें उस दौर की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म  Ten Commandments, 
Sound of Music,फर्स्ट वर्ल्ड वॉर और सेकंड वर्ल्ड वॉर पर आधारित फिल्में, Knights of the round table,जैसी तमाम लोकप्रिय अंग्रेजी फ़िल्म शामिल थी। वहीं किसान आंदोलन की दुर्दशा पर बनी फिल्म "दो बीघा जमीन",शहीद,जैसी देशभक्ति फिल्में भी यहां प्रसारित की गई थी। सभी हिंदी फिल्में आजादी के बाद अशोक सिनेमा हॉल के अलावा अन्य सिनेमाघरों में भी प्रदर्शित की गई।

प्रो रावत ने बताया कि अंग्रेजों ने नैनीताल को विशेष दर्जा दिया था, इसीलिए यहाँ जनता अंग्रजों से बहुत ज़्यादा आहत नही थी, जिन आम लोगो को बाकी तीन सिनेमा हॉल में प्रवेश की अनुमति नही थी, उनके लिए अशोक टॉकीज में सारी सुविधाएं उपलब्ध थी। वही अशोक टॉकीज जो आज मल्लीताल कोतवाली के ठीक सामने पार्किंग स्थल बन चुका है। अशोक सिनेमा हॉल भी अन्य सिनेमाघरों की तरह ही आलीशान बनाया गया था। ऐसा कहा जाता है कि जब 1948 में पालिका ने अशोक सिनेमा हॉल को खरीदा तब यहाँ 250 कुर्सियां AC पंखे और अन्य सुविधाएं उपलब्ध थी।

अनुपम खेर के साथ युगमंच के कलाकार

इन चार सिनेमाघरों के अलावा तल्लीताल में एक और सिनेमाघर विशाल टॉकेज भी खोला गया था,80 के दशक में इस टॉकीज में भी खूब फिल्में लगती थी। बात करे नैनीताल में रंगमंच के विकास की तो साल 1975 में युगमंच की स्थापना की गई थी। युगमंच के सफर ने नैनीताल से मुंबई मायानगरी को तमाम बेहतरीन कलाकार दिए। युगमंच हिंदी रंगकर्म जगत में उन चुनिंदा संस्थाओं में गिना जाता था जो पूरी प्रतिबद्धता समर्पण के साथ रंगकर्म को लगातार विकसित करता रहा। युगमंच ने रंगमंच और सिनेमा को अतुलनीय योगदान दिया।

 

जहूर आलम और ललित तिवारी

 

युगमंच जैसी संस्था के गठन का विचार 1976 में तब आया जब कुमाऊँ के चन्द बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों और रंगकर्म से जुड़ी मशहूर हस्तियों ने पहाड़ के लोक साहित्य, कला व लोक रंगकर्म को सहेजने व आगे बढ़ाने के विचार से एक संस्था के निर्माण की परिकल्पना की थी।  इन महानुभावों में मोहन उप्रेती, गिरीश तिवाड़ी ‘गिर्दा, शरत चन्द्र अवस्थी, के.पी.साह,शेखर पाठक ,जहूर आलम,इदरीस मलिक,ललित तिवारी,दिवंगत कलाकार निर्मल पांडे,लेनिन पंत,तारादत्त सती,ब्रजेन्द्रलाल साह,गंगा प्रसाद साह,नप्पू काकू,भुवन चन्द्र तिवारी,भगवान लाल साह,जैसी हस्तियों का बहुत बड़ा योगदान रहा। प्रो. डी.डी. पंत, ब्रजमोहन शाह व चन्द्रलाल साह जैसे महानुभावों का युगमंच को पूर्ण संरक्षण प्राप्त था। 

 

युगमंच से प्रशिक्षित होकर कई कलाकार राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय NSD जैसे प्रतिष्ठित संस्थान के लिए चुने गए हैं,जिनमे मुख्य रूप से ललित तिवारी 1977-80, नीरज शाह 1982-85, सुदर्शन जुयाल 1983-86, ईशान त्रिवेदी, विकास महाराज 1983-86, सुनीता अवस्थी 1984-87, इद्रीस मलिक 1984-87, निर्मल पाण्डे 1986-89, सुवर्ण रावत 1986-89, योगेश पंत 1987-90, ज्ञान प्रकाश 1991-94, सुमन वैद्य 1993-96, सुनीता चन्द 1994-97, ममता भट्ट 1994-97, गोपाल तिवारी 1996-99, हेमा बिष्ट, दाऊद हुसैन 2002-05 शामिल है।

युगमंच ने लोक परम्परागत और आधुनिक शैलियों में लगभग सवा सौ से ज़्यादा नाटकों का मंचन किया है ,जिनमे अंधा युग, अंधेर नगरी, नगाड़े खामोश हैं, दाज्यू शेखर, नाटक जारी है, कबिरा खड़ा बजार में, समरथ को नहीं दोष, मेन विदाउट शैडोज, इडिपस, खड़िया का घेरा, हेमलेट, अनारो, सराय की मालकिन, एल्डरसन, पोस्टर, गिरगिट, अजुवा बफौल, जार्ज पंचम की नाक, खूबसूरत बला, दुलारी बाई, चन्द्रहास, जिन लाहौर नई देख्या(दिवंगत अभिनेता निर्मल पांडे द्वारा अभिनीत), दूसरी दुनिया, तीन कैदी, लड़ के लेंगे उत्तराखण्ड, ईदगाह, सरकार का जादू, अस्तित्व, धूप का टुकड़ा, महर ठाकुरों का गाँव, बेगार,नारदमोह, महानिर्वाण, स्वांग-99, फट जा पंचधार, अक्ल बड़ी या शेर, पोस्टमैन, एग्रीमेंट, कगार की आग, सोने की मछली, टोबा टेक सिंह, कोर्टमार्शल, हानूश, हंसी मार्किट, जयनन्दा, गोपुली बुबू मुख्य रूप से प्रदर्शित किए गए।
 

युगमंच के बाद आज कई और मंचो ने नैनीताल में थियेटर को नए नए आयाम दिए। थियेटर को जिंदा रखने के लिए बीएम शाह ओपन थियेटर गोल घर चौराहे के पास बनाया गया। थियेटर के लिए तो नैनीताल में तमाम मंच उपलब्ध है, लेकिन आज की तारीख में यहां सिनेमाघर केवल एक ही बचा है और वो है कैपिटल सिनेमा हॉल! बाकी सिनेमाघर इतिहास के पन्नो में सिमट चुके है। हालांकि अशोक टॉकीज की जगह पर नया हॉल बनाने का प्रस्ताव पालिका बोर्ड बैठक में रखा गया,लीज धारक से भूमि अधिग्रहण पालिका द्वारा यहां नए सिनेमाघर बनने की उम्मीद जगी थी जो अधर में लटकी है फ़िलहाल यहां पार्किंग ही संचालित की जा रही है।

 

 

 

 

 

 

 

 


Disclaimer:नैनीताल के इतिहासकार प्रो अजय रावत और थियेटर कलाकारों से वार्तालाप करके जानकारी एकत्रित कर खबर लिखी गयी है। कृपया कॉपी पेस्ट न करें।