नैनीताल:इतिहास के पन्नों से!फांसी गदेरा समेटे है ब्रिटिशकालीन राज!स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हल्द्वानी में किसने किया था आक्रमण?कौन हुआ था पराजित?किसे दी गयी थी फांसी?मृतकों की सुरंग का क्या है पूरा सच?

Nainital: From the pages of history! Fansi Gadera holds British rule! Who attacked Haldwani during the freedom struggle? Who was defeated? What is the whole truth about the tunnel of the dead?

जो लोग उत्तराखंड में बरसों से रह रहे है उनको गदेरा का अर्थ बखूबी पता होगा। गदेरा ढलान वाली जगह और नदी नालों को कहा जाता है। योगेश वत्स ने तो गदेरा नामक फ़िल्म तक बनाई थी जो कुमाऊँ और गढ़वाल की ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित है। गोरखाओं के काल से लेकर ब्रिटिश औपनिवेशिक काल की प्रसिद्ध कहानियों और घटनाओं तक को इस फ़िल्म में दिखाया गया। लेकिन "फांसी गदेरा" ये शब्द शायद उत्तराखंड के भी कई लोगो को अटपटा लग सकता है। फांसी गदेरा अपने आप मे एक इतिहास छुपाए हुए है। ये फांसी गदेरा नैनीताल में आज भी स्थित है,जो अंग्रेजी हुकूमत के उस अध्याय को दर्शाता है,जिसकी वजह से हल्द्वानी को बचाया जा सका था।

 

क्या है फांसी गदेरा का इतिहास?


 जैसा कि फांसी शब्द से आप समझ ही गए होंगे कि यहां अवश्य किसी को फांसी दी गयी होगी। तो चलिए जानते है कि फांसी किसे, कब और क्यों दी गयी?


नैनीताल के प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो अजय रावत ने इतिहास के पन्नो में दर्ज उस अध्याय के बारे में बताया जिससे आज भी नैनीताल के कई लोग अंजान है।

प्रो.अजय रावत बताते है कि नैनीताल की बसासत 1841 में शुरू हुई थी, इसके बाद से 1850 तक नैनीताल को अंग्रेजों ने हेल्थ रिजॉर्ट के रूप में विकसित किया था। धीरे धीरे नैनीताल टूरिस्ट सेंटर के रूप में उभरने लगा। 1856 में कुमाऊं कमिश्नरी जिसका हैडक्वार्टर अल्मोड़ा हुआ करता था,उसे नैनीताल शिफ्ट कर दिया गया और ये ब्रिटिश कुमाऊं का एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक केंद्र के रूप में भी जाना जाने लगा। 1857 में जब स्वतंत्रता संग्राम/विद्रोह हुआ तब कुमाऊं इस क्रांति से लगभग अछूता ही रहा। केवल काली कुमाऊं चंपावत/लोहाघाट वहां असर हुआ। तब अंग्रेजों का विरोध किया गया,हल्द्वानी में भी क्रांति का असर पड़ा और बरेली के रोहिला लोगो हल्द्वानी पर आक्रमण किया इनका उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्ति से अलग लूटपाट करना था।

सर हैनरी रैमजे (कमिश्नर) ने अंग्रेजी सेना और गोरखा को हल्द्वानी में रोहिलाओ के खिलाफ भेजा। रोहिला पराजित हुए और हल्द्वानी को अंग्रेजी सेना के द्वारा बचाया गया। पराजित हुए जिन लोगो को कैद किया गया उन्हें आज के फांसी गदेरा के ऊपर आर्मी का बंगला जहा पर है वहा फांसी दी गयी तभी से इस क्षेत्र को फांसी गदेरा कहा गया। जिस जगह फांसी दी गयी,उसको अंग्रेजी में Hanghman bay कहते थे।फांसी गदेरा में कितने लोगों को फांसी दी गयी इसके बारे में कोई पुख्ता रिकॉर्ड नही है। हालांकि कुछ जगह 40 लोगो को फांसी दिए जाने की बात भी लिखी गयी है।
 

तल्लीताल से पश्चिमी दिशा में फांसी गदेरा क्षेत्र करीब एक किमी वर्ग में फैला हुआ है वर्तमान में यहां लोनिवि गेस्ट हाउस, पुराने विशाल टॉकेज सिनेमा हॉल की जगह अब एक नई बिल्डिंग स्थित है,और लंघम होस्टल भी यही है।  

 


इस जगह में कभी घना जंगल हुआ करता था जंगली जानवरों खासतौर पर बाघ यहां रहा करते थे। स्थानीय लोग इस जगह को बाघों के गढ़ भी कहते थे।

इस जगह को लेकर एक और खबर भी सामने आई थी कि यहां मृतकों की सुरंग भी है। इस खबर के मुताबिक MES मिलिट्री इंजीनियर सर्विसेज के निरीक्षण में एक बंगला जो कि 200 साल पुरानी इमारत है के मरम्मत कार्य के दौरान एक गुप्त सुरंग मिली थी। निरीक्षण के दौरान खुदाई की गई और वहाँ एक जेल भी मिली जिसके पास एक फंदा लटका मिला। निरीक्षण में अंदाजा लगाया गया कि यहां फांसी देकर मृतक को सुरंग में डाल दिया जाता होगा। निरीक्षण में पता चला कि ये सुरंग नैनीझील में खुलती है। इस बारे में प्रो अजय रावत बताते है कि ये बिल्कुल भ्रामक खबर है ऐसा कुछ यहां नही मिला।