नैनीतालः जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव! एक वोट को ओवर राइटिंग कर बदलने का आरोप, हाईकोर्ट ने डीएम को सीसीटीवी फुटेज और वीडियोग्राफी दिखाने के दिए निर्देश, कल फिर होगी सुनवाई

नैनीताल। जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के वोट को लेकर मामला हाईकोर्ट पहुंचा है। आरोप है कि रात में काउंटिंग के दौरान कैमरा ऑफ करके एक वोट को ओवर राइटिंग कर बदला गया है। जिसकी फॉरेंसिक जांच की मांग की जा रही है। इस मामले में निर्वाचित प्रतिनिधि को शपथ से रोकने की मांग की गई है। वहीं हाईकोर्ट ने प्रारंभिक सुनवाई में इलेक्शन कमीशन जाने की सलाह दी है। वही काउंटिंग के दौरान बैलेट पेपर में गड़बड़ी और छेड़छाड़ मामले में कोर्ट ने जिलाधिकारी को काउंटिंग वाले दिन की सीसीटीवी फुटेज और वीडियोग्राफी याचिकाकर्ता इत्यादि को दिखाने को कहा है ताकि बैलेट पेपर से छेड़छाड़ का मामला स्पष्ट हो सके। सुनवाई में वर्चुअली शामिल हुई डीएम नैनीताल ने कोर्ट के पूछने पर वोट को रद्द करने की प्रकिया भी बताई। साथ ही कहा कि काउंटिंग उनकी निगरानी में हुई थी।
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और जस्टिस सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने पूनम बिष्ट और पुष्पा नेगी की याचिकाओं पर सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि 14 अगस्त को देर रात हुई मतगणना के दौरान कैमरा बंद करके एक वोट में हेरफेर किया गया। कोर्ट में इस मतपत्र की तस्वीर भी पेश की गई। याचिका में चुनाव रद्द करने, निर्वाचित प्रतिनिधि को शपथ ग्रहण से रोकने और वोट की फोरेंसिक जांच की मांग की गई।
याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता डी.डी. कामत ने तर्क दिया कि चुनाव में परिणाम से ज्यादा प्रक्रिया की पारदर्शिता और शुचिता महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि जब पांच सदस्यों को कथित तौर पर जबरन ले जाया गया, तो यह अपने आप में चुनाव रद्द करने का पर्याप्त आधार है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब शिकायत चुनाव आयोग के खिलाफ हो, तो याचिकाकर्ता आयोग के पास क्यों जाएं। इस पर कोर्ट ने कहा कि संबंधित सदस्यों ने स्वेच्छा से जाने की बात कही है।
वहीं, सरकार की ओर से महाधिवक्ता एस.एन. बाबुलकर और अन्य अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि इस तरह की शिकायतें चुनाव आयोग के समक्ष या चुनाव याचिका के माध्यम से उठाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ट्रायल कोर्ट नहीं है, इसलिए यह याचिका विचारणीय नहीं है। याचिकाकर्ता ने मतगणना में कई अनियमितताओं का आरोप लगाया, जिसमें कैमरा बंद करना, मतपत्र में '1' को '2' में बदलना, और प्रत्याशी को मतगणना स्थल की सूचना देर से देना शामिल है। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उनके हल्द्वानी स्थित आवास पर रात 2:23 बजे नोटिस चस्पा कर उन्हें 1:30 बजे उपस्थित होने को कहा गया, जो असंभव था।
रिटर्निंग ऑफिसर और जिलाधिकारी वंदना सिंह ने ऑनलाइन कोर्ट को बताया कि सभी प्रत्याशियों और उनके एजेंटों को मतगणना से पहले फोन और व्हाट्सएप के जरिए सूचना दी गई थी, जिसे उन्होंने देख भी लिया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि एक वोट अमान्य इसलिए हुआ क्योंकि मतदाता ने पहली प्राथमिकता का वोट नहीं दिया, केवल दूसरी प्राथमिकता का वोट दिया गया, जो नियमों के खिलाफ है। एक अन्य मतपत्र खाली था। डीएम ने कहा कि सभी प्रत्याशियों को मतपत्रों के निरीक्षण के लिए दो बार अवसर दिया गया, लेकिन दूसरी प्रत्याशी निरीक्षण के लिए नहीं पहुंची। उस समय आपत्ति दर्ज कर पुनर्मतदान की मांग की जा सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
जिलाधिकारी ने यह भी बताया कि पूरी मतगणना प्रक्रिया सीसीटीवी और वीडियोग्राफी के जरिए स्वतंत्र पर्यवेक्षक की मौजूदगी में रिकॉर्ड की गई थी, जिसे जरूरत पड़ने पर कोर्ट में पेश किया जा सकता है।
कोर्ट ने डीएम वंदना सिंह और एसपी जगदीश चंद्रा को वीडियो रिकॉर्डिंग दिखाने के दौरान सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने और केवल अधिकृत व्यक्तियों को ही कक्ष में प्रवेश की अनुमति देने का निर्देश दिया।
यह मामला जिला पंचायत चुनाव में पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर गंभीर सवाल उठाता है। आज डीएम कार्यालय में होने वाली वीडियो जांच से इस मामले में नई जानकारी सामने आ सकती है।