"मोदी की 'मेड इन इंडिया' चिप: वैश्विक तकनीक में भारत की उड़ान, लेकिन कितनी ऊंची?

"मोदी की 'मेड इन इंडिया' चिप: वैश्विक तकनीक में भारत की उड़ान, लेकिन कितनी ऊंची?
विश्लेषण : सुनील मेहता
2 सितंबर 2025 को नई दिल्ली में आयोजित सेमिकॉन इंडिया 2025 सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की पहली स्वदेशी सेमीकंडक्टर चिप 'विक्रम' का अनावरण किया। इस 32-बिट माइक्रोप्रोसेसर को इसरो की सेमीकंडक्टर लैब (एससीएल), चंडीगढ़ ने विकसित किया है, जो अंतरिक्ष यान की कठिन परिस्थितियों के लिए डिज़ाइन किया गया है। मोदी ने इसे "डिजिटल डायमंड" करार देते हुए दावा किया कि "भारत की सबसे छोटी चिप दुनिया में सबसे बड़ा बदलाव लाएगी।" लेकिन इस उपलब्धि को वैश्विक संदर्भ में देखते हुए कई सवाल उठते हैं: भारत इस क्षेत्र में कहां खड़ा है, और क्या समाचार पत्रों में मोदी का महिमामंडन उचित है?
वैश्विक संदर्भ में सेमीकंडक्टर तकनीक
वर्तमान में सेमीकंडक्टर उद्योग में ताइवान, दक्षिण कोरिया, और संयुक्त राज्य अमेरिका अग्रणी हैं। ताइवान की टीएसएमसी (Taiwan Semiconductor Manufacturing Company) दुनिया की 60% से अधिक सेमीकंडक्टर चिप्स बनाती है, जिसमें 90% अति-उन्नत चिप्स (3-नैनोमीटर और उससे नीचे) शामिल हैं। दक्षिण कोरिया की सैमसंग और एसके हाइनिक्स 7-नैनोमीटर और उससे बेहतर चिप्स का उत्पादन करते हैं, जो स्मार्टफोन, एआई, और डेटा सेंटर्स में उपयोग होते हैं। अमेरिका की इंटेल और क्वालकॉम जैसी कंपनियां डिज़ाइन में अग्रणी हैं, जबकि जापान और नीदरलैंड्स उपकरण और सामग्री में योगदान देते हैं। ये देश अपनी चिप्स को वैश्विक स्तर पर निर्यात करते हैं, जिसमें अमेरिका, चीन, यूरोप, और जापान प्रमुख बाजार हैं। भारत की 'विक्रम' चिप, जो 32-बिट और 180-नैनोमीटर प्रक्रिया पर आधारित है, अंतरिक्ष अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त है, लेकिन यह ताइवान और दक्षिण कोरिया की 3-5 नैनोमीटर चिप्स से तकनीकी रूप से पीछे है।
भारत का रैंक और स्थिति
वैश्विक सेमीकंडक्टर उत्पादन में भारत अभी शीर्ष 10 देशों में शामिल नहीं है। ताइवान, दक्षिण कोरिया, अमेरिका, चीन, जापान, नीदरलैंड्स, और जर्मनी शीर्ष सात देशों में हैं। भारत की सेमीकंडक्टर मार्केट 2023 में 38 अरब डॉलर थी, जो 2024-25 में 45-50 अरब डॉलर तक पहुंची, और 2030 तक 100-110 अरब डॉलर होने की उम्मीद है। भारत सरकार ने इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (आईएसएम) के तहत 1.6 लाख करोड़ रुपये के 10 प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी है, जिसमें टाटा-पीएसएमसी और माइक्रोन जैसे निवेश शामिल हैं। फिर भी, भारत का फोकस अभी डिज़ाइन और असेंबली-टेस्टिंग पर है, न कि अति-उन्नत लॉजिक चिप्स पर, जो वैश्विक मांग का मुख्य हिस्सा हैं। अगले पांच वर्षों में भारत के शीर्ष सात उत्पादक देशों में शामिल होने की संभावना है, जैसा कि केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दावा किया है।
आर्थिक लाभ और भविष्य
2030 तक वैश्विक सेमीकंडक्टर बाजार 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी 100-110 अरब डॉलर हो सकती है। अगले पांच वर्षों में भारत को 2,000 से अधिक प्रत्यक्ष और लाखों अप्रत्यक्ष नौकरियां मिल सकती हैं। स्वदेशी चिप्स से रक्षा, अंतरिक्ष, ऑटोमोटिव, और टेलीकॉम जैसे क्षेत्रों में आयात पर निर्भरता कम होगी, जिससे व्यापार घाटा घटेगा। उदाहरण के लिए, अप्रैल 2024 में ऐपल ने भारत से 10,000 करोड़ रुपये के आईफोन निर्यात किए, जो स्वदेशी चिप्स के उपयोग से और बढ़ सकता है। हालांकि, अति-उन्नत चिप्स में निवेश और विशेषज्ञता की कमी भारत को ताइवान और दक्षिण कोरिया से पीछे रख सकती है।
मोदी का महिमामंडन: सही या गलत?
समाचार पत्रों में मोदी की इस उपलब्धि को "ऐतिहासिक" बताकर महिमामंडन किया गया है, लेकिन यह आंशिक रूप से अतिशयोक्तिपूर्ण है। 'विक्रम' चिप एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन यह अंतरिक्ष-विशिष्ट है और स्मार्टफोन या एआई जैसे व्यावसायिक क्षेत्रों में ताइवान की तुलना में कम प्रभावी है। भारत ने सेमीकंडक्टर क्षेत्र में 50 साल पहले अवसर गंवाए, और मौजूदा प्रगति 2021 में शुरू हुए आईएसएम की देन है। समाचार पत्रों का मोदी-केंद्रित कवरेज अन्य वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के योगदान को कम आंकता है, जो गलत संदेश देता है । फिर भी, मोदी की दूरदर्शिता और नीतिगत समर्थन ने इस क्षेत्र में गति प्रदान की है, जिसे नकारा नहीं जा सकता।
निष्कर्ष
'विक्रम' चिप भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में एक मील का पत्थर है, लेकिन वैश्विक नेताओं से तकनीकी अंतर को पाटने के लिए बड़े निवेश और समय की जरूरत है । अगले पांच वर्षों में भारत सेमीकंडक्टर क्षेत्र में शीर्ष सात देशों में शामिल हो सकता है, लेकिन भारत अभी यह ताइवान और दक्षिण कोरिया से पीछे है । वर्तमान में कृषि एवं खाद्य उत्पादनों को छोड़कर अधिकतर उत्पाद भारत आयात करता है जिसमें चीन भारत का सबसे बड़ा आयात श्रोत है । 2024 -25 में चीन से 56.29 अरब डॉलर का आयात किया गया जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 11.5 % अधिक है । पिछले वर्ष 2023-24 में भारत का चीन से कुल आयात 101.75 अरब डॉलर रहा था जो कि भारत के कुल आयात का लगभग 16% था । अगर बात करें अमेरिका की तो पिछले वर्ष 2023 -24 में भारत का अमेरिका से आयात 40.78 अरब डॉलर का रहा था जो कि भारत के कुल आयात का 7 % तक रहा । पीएम मोदी के द्वारा दिया गया मेक इन इंडिया नारा फिलहाल तो सार्थका होता हुआ नहीं दिख रहा है क्योंकि कृषि के क्षेत्र में भारत सबसे ज्यादा उत्पादन करता है लेकिन कृषि उपकाराओं में एक छोटा सा यंत्र भी चीन से आयात करना पड़ता है । जहां भारत एक तरफ 'विक्रम' सेमीकंडक्टर चिप बनाने में महारथ हासिल कर रहा है वहीं दूसरी तरफ कृषि और अन्य उत्पादों को भी स्वदेशी तकनीक के जरिये निर्माण करना होगा जब तक अधिकतर उत्पादों के आयात में अमेरिका और चीन जैसे देशों पर निर्भरता रहेगी तब तक आर्थिक रूप से भारत को मजबूती नहीं मिल सकती ।