छठ पर्व का दूसरा दिन ‘खरना’ शुद्धता, आत्मसंयम और श्रद्धा का प्रतीक
लोक आस्था के महापर्व छठ का दूसरा दिन ‘खरना’ के नाम से जाना जाता है, जो व्रती के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र दिन माना जाता है। खरना के दिन से ही सूर्य उपासना के इस कठिन व्रत की औपचारिक शुरुआत होती है। इस दिन व्रती सुबह से निर्जल उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के बाद पूजा-अर्चना कर प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसी प्रसाद को बाद में पूरे परिवार और समाज के साथ साझा किया जाता है।
‘खरना’ शब्द का अर्थ होता है शुद्धिकरण और आत्मसंयम। पंडित प्रेमसागर पांडे के अनुसार, यह दिन आत्मबल, भक्ति और अनुशासन की परीक्षा का प्रतीक है। व्रती दिनभर अन्न और जल का त्याग करते हैं और सूर्यास्त के समय स्नान के बाद नए वस्त्र धारण कर भगवान सूर्य और छठी मइया की आराधना करते हैं। पूजा के दौरान घर में मिट्टी या पीतल के चूल्हे पर सात्विक प्रसाद तैयार किया जाता है। इसमें गुड़ की खीर, रोटी और केले का भोग शामिल होता है, जिसे “खरना प्रसाद” कहा जाता है। पूजा के बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करते हैं और फिर इसे परिवार, पड़ोसी और श्रद्धालुओं के बीच बांटते हैं। यह परंपरा लोक एकता, भाईचारे और साझा आस्था की प्रतीक मानी जाती है। इस दिन घर और पूजा स्थल की पूर्ण शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। प्रसाद में नमक, मसाले या तेल का प्रयोग नहीं किया जाता, जिससे भोजन सात्विक और पवित्र बना रहता है।
पंडितो के अनुसार खरना केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि आत्मबल, सहनशक्ति और अनुशासन की साधना भी है। व्रती पूरे दिन तपस्या की भांति उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के बाद जब पहला निवाला ग्रहण करते हैं, तो उसे ईश्वर के प्रति अटूट समर्पण का प्रतीक माना जाता है। यह व्रत मन, शरीर और आत्मा तीनों के शुद्धिकरण का माध्यम है। खरना का दिन छठ व्रत के सबसे अनुशासित चरणों में से एक होता है। व्रती के लिए यह तप और श्रद्धा की अग्निपरीक्षा के समान होता है। दिनभर निर्जल रहने के बाद सूर्यास्त के समय जब व्रती पूजा करते हैं, तो वातावरण भक्ति और आस्था से सराबोर हो जाता है। व्रती अपने व्रत से परिवार और समाज के कल्याण की कामना करते हैं। खरना के अगले दिन से व्रती सूर्य उपासना के अगले चरणों की तैयारी शुरू कर देते हैं। घाटों की सफाई, सजावट और अर्घ्य की तैयारियां इसी रात से शुरू होती हैं। संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य छठ पर्व के मुख्य चरण माने जाते हैं। खरना के बाद व्रती लगातार 36 घंटे का निर्जल उपवास रखते हैं, जो छठ की सबसे कठिन साधना मानी जाती है। इस प्रकार, खरना न केवल छठ व्रत का आरंभिक पड़ाव है, बल्कि यह आत्मसंयम, शुद्धता और भक्ति का गहन प्रतीक भी है। यह दिन हमें यह सिखाता है कि श्रद्धा, अनुशासन और समर्पण के माध्यम से जीवन को शुद्ध और संतुलित बनाया जा सकता है।