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हरियाली, कृषि, पर्यावरण संरक्षण और सामुदायिक एकता का प्रतीक है ‘हरेला पर्व’! समाजसेवी सेमवाल ने उठाई राजकीय पर्व घोषित करने की मांग

'Harela festival' is a symbol of greenery, agriculture, environmental protection and community unity! Social worker Semwal raised the demand to declare it a state festival

‘हरेला’ शब्द उत्तराखंड के कुमाऊंनी शब्द ‘हरियाला’ से आया है, जिसका अर्थ है ‘हरियाली का दिन’। ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति कुमाऊं क्षेत्र में हुई थी। हरेला उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के कुछ इलाकों में मनाया जाने वाला एक त्यौहार है। यह मुख्य रूप से उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में लोकप्रिय है और इसे बहुत उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है। प्रांतीय उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य अखिलेश सेमवाल ने हरेला पर्व की महत्ता को देखते हुए इसे राजकीय पर्व घोषित किए जाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्व को देखते हुए हरेला को राजकीय पर्व घोषित करना पूरी तरह जायज़ होगा। हरेला पर्व उत्तराखंड, खासकर कुमाऊं क्षेत्र का एक प्रमुख लोकपर्व है, जो हरियाली, कृषि, पर्यावरण संरक्षण और सामुदायिक एकता का प्रतीक है। इस दिन पौधारोपण, भगवान शिव-पार्वती की पूजा और पारंपरिक लोकगीतों के साथ समृद्धि की कामना की जाती है। उन्होंने आगे ये भी कहा कि राजकीय त्योहार घोषित करने से इस पर्व को और अधिक व्यापक पहचान मिलेगी।

पर्यावरण संरक्षण और पौधारोपण को राज्य स्तर पर बढ़ावा भी मिलेगा। साथ ही कृषि और लोक संस्कृति को मजबूती भी मिलेगी। बता दें कि हरेला श्रावण-मास के पहले दिन पड़ता है, जो मॉनसून के मौसम और नई फसलों के रोपाई का प्रतीक है। शांति, समृद्धि और हरियाली का त्योहार हरेला का त्यौहार परंपराओं से भरा हुआ है और इसका सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्व बहुत अधिक है। यह भगवान शिव और पार्वती के विवाह के औपचारिक पालन के साथ-साथ ईश्वर से भरपूर फसल और समृद्धि की कामना करने वाले लोगों की आस्था और प्रार्थना का प्रतीक है। इस दिन पांच से सात प्रकार की फसलों मक्का, तिल, उड़द, सरसों, जई के बीज त्यौहार से नौ दिन पहले पत्तों से बने कटोरे, रिंगाल या पहाड़ी बांस की टोकरियों में बो दिए जाते हैं। नौवें दिन इन्हें काटा जाता है और पड़ोसियों, दोस्तों और रिश्तेदारों में बांटा जाता है। फसलों का फलना-फूलना आने वाले साल में समृद्धि का प्रतीक है। खीर, पुवा, पूरी, रायता, छोले और अन्य व्यंजन उत्सव के रूप में तैयार किए जाते हैं। 
त्यौहार के दिन स्थानीय लोग कुमाऊंनी भाषा में निम्नलिखित पंक्तियां गाते हैं...

‘लाग हरयाव, लाग दशे, लाग बगवाव।
जी रये जागी रया, यो दिन यो बार भेंटने रया।
दुब जस फैल जाए, बेरी जस फली जाया।
हिमाल में ह्युं छन तक, गंगा ज्यूं में पाणी छन तक
यो दिन और यो मास भेंटने रया।
अगाश जस उच्च है जे, धरती जस चकोव है जे।
स्याव जसि बुद्धि है जो, स्यू जस तराण है जो।
जी राये जागी रया। यो दिन यो बार भेंटने रया।