चिपको आंदोलन:आज ही के दिन उत्तराखंड की बहादुर महिलाओं ने पेड़ो को कटने से बचाया था,पेड़ो से चिपक कर वन विभाग के अधिकारियों,ठेकेदारों को झुकने पर किया था मजबूर,लिंक में पढ़िए पूरी स्टोरी

Chipko Andolan: On this day, brave women of Uttarakhand saved trees from being cut, by clinging to trees, forcing forest department officials, contractors to bow down

देवभूमि उत्तराखंड में आज ही के दिन 26 मार्च 1974 को यहाँ की बहादुर महिलाओं द्वारा चिपको आंदोलन की शुरुआत की गई थी। आज चिपको आंदोलन की 49 वीं वर्षगांठ है। पर्यावरण को बचाने के लिए अपनी जान तक परवाह किए बग़ैर 26 मार्च 1974 को गौरा देवी और उनके साथ 27 महिलाओं ने रेणी के जंगल को बचाने के लिए जो असाधारण साहस दिखाया। उसके चलते नन्दादेवी नेशनल पार्क के मुहाने स्थित जंगल में हजारों पेड़ों का विनाश रुक गया था। जी हां अदम्य साहस का परिचय देते हुए 27 महिलाएं पेड़ो से चिपक गयी थी,ठेकेदारों,वन अधिकारियों और तमाम पुलिसकर्मियों के विरोध में 27 महिलाओं ने मोर्चा खोला और पेड़ो को कटने से बचाया। उस दिन क्या कुछ हुआ आइये जानते है।

26 मार्च 1974 के दिन उत्तराखंड के चमोली जिले के रेणी गांव में दिन के करीब बारह बजे थे,एक छोटी सी बच्ची जंगल मे गाय चरा रही थी कि तभी उसने जंगल मे कुछ अपरिचित लोगो को देखा, उसने इसकी सूचना तुरंत गांव की महिलाओं को दी। सूचना मिलते ही रेणी गांव की अधेड़ उम्र की महिला गौरा देवी और साथ मे करीब 26 महिलाएं जंगल की ओर निकल गयी कि आखिर अजनबी लोग जंगल क्यो आये?रास्ते मे इन महिलाओं को कुछ मजदूर दिखे  महिलाओं ने उन्हें ऊपर की ओर ना जाने का अनुरोध किया क्योंकि ये महिलाएं जंगल को अपना घर मानती थी तो भला घर मे किसी अजनबी को कैसे घुसने देती? कुछ किमी आगे जंगल मे एक गुफा की ओट में भल्ला कम्पनी के ठेकेदार ,वन विभाग के कर्मचारी और ठेकेदार के एजेंट आराम फरमा रहे थे। सामने पेड़ो को काटने आये मजदूर अपनी कुल्हाड़ी इत्यादि तैयार करने में लगे थे। महिलाओं का झुंड देखकर वनकर्मी स्तब्ध हो गए,महिलाओं ने उन्हें वापस जाने को कहा लेकिन वनकर्मियों और ठेकेदार ने पेड़ो को बचाने आयी महिलाओं को अपशब्द कहे अभद्रता की,लेकिन महिलाओं ने इन सबकी परवाह किये बगैर पेड़ो को हर हाल में बचाने का प्रण लिया और पेड़ो को घेर कर खड़ी हो गयी। ठेकेदार ने सोचा अभी डर जाएंगी ये, अगर कुल्हाड़ी से पेड़ो को काटने को कहूंगा,वनकर्मियों और ठेकेदारों ने मजदूरों को पेड़ो को काटने का ऑर्डर दिया। महिलाओं ने और ज़ोर से पेड़ो को पकड़ लिया।

 

ये महिलाएं 27 थी और वनकर्मियों ठेकेदारों और एजेंटों को मिलाकर कुल 60 से ऊपर लोग थे। महिलाओं ने उन सबसे कहा कि ये जंगल ऋषिमुनियों और देवताओं का है और ये भूमि पेड़ सभी हमारे पालनहार है,ये जंगल हमारा घर है किसी भी कीमत पर पेड़ो को नही काटने देंगे। महिलाओं ने उन्हें उनके परिवार का भी हवाला दिया,साथ ही ये भी कहा कि अगर तुम पेड़ काटने की कोशिश करोगे तो हम पेड़ो से चिपककर कुल्हाड़ी और पेड़ो के बीच दीवार खड़ी कर देंगे। इसके बाद वहां से ठेकेदार और वनकर्मी सभी वापस चले गए।लेकिन ठेकेदारों के एजेंटो ने महिलाओं को बंदूक से गोली मारने की धमकी दी। महिलाओं को हर खूब खरी खोटी सुनाकर बेइज्जत किया और कहा गया कि हम तो जंगल से पालकी में बैठकर ही जायेंगे। महिलाओं ने डंडों पर रस्सियां बांधकर पालकी भी तैयार की। महिलाओं की ज़िद के आगे उन्हें झुकना पड़ा। सबके जाने के बाद महिलाओं में से कुछ महिलाएं आधे रास्ते मे ही रुक गयी कि कही ये वापस आकर पेड़ न काट दें। देर रात तक महिलाएं वहां पहरा देती रही।
इस घटना का इतना व्यापक असर हुआ रेणी गांव चिपको आंदोलन का कर्मक्षेत्र बन गया और न सिर्फ उत्तराखंड में बल्कि पूरे भारत मे ये आंदोलन प्रसिद्ध हो गया। बड़ी संख्या में वनों के संरक्षण के लिए योजनाएं बनाई गई। 


चिपको आंदोलन की मांगों पर उप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नन्दन बहुगुणा ने वनस्पति विज्ञानी डॉ. वीरेन्द्र कुमार की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया, जिसमें वन अधिकारियों, विज्ञानियों और विधायकों के साथ चिपको आंदोलन के चण्डी प्रसाद भट्ट और ब्लाक प्रमुख गोविन्द सिंह रावत को भी सदस्य बनाया गया। कमेटी के गठन की घोषणा के बाद रेणी से भल्ला कंपनी के मजदूर और राशन की बोरियों समेत रेणी से वापस लौट गए।ये आंदोलन देशभर में फैल गया और 15 साल तक पेड़ो के कटान पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया। चिपको आंदोलन की सूत्रधार चिपको वुमन गौरा देवी औऱ सुरदलाल बहुगुणा को अमेरिका ने भी सम्मानित किया।
आज उत्तराखंड के जंगलो की जो हालत होती जा रही है उसे देखते हुए समय की मांग है कि जंगलों को बचाने के लिए एक और आंदोलन हो जो हमारे पर्यावरण की रक्षा करे हमारे जल जंगल को बचाने में मदद कर सके।