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बॉलीवुड झरोखा: बेटे के वियोग में बनाया गीत, बन गया था प्रेमियों का सबसे अमर गाना! हैरानी की बात गाना हिट होते ही बेटा भी लौट आया

Bollywood Jharokha: Song made in separation of son, became the most immortal song of lovers! Surprisingly, the son also returned as soon as the song became a hit.

बॉलीवुड। साल था 1957 फ़िल्म "जनम जनम के फेरे" रिलीज हुई। यह म्यूजिकल हिट साबित हुई । इस फ़िल्म के एक गाने "जरा सामने तो आओ छलिये" ने तो जैसे उस दौर में तहलका मचा दिया।  यह गाना इतना सुपरहिट साबित हुआ कि उस साल की 'बिनाका गीत माला" का यह नम्बर 1 गीत बन गया। इस गाने का अनोखा किस्सा है । इस गाने को लिखा था पंडित भरत व्यास ने।

 तो हुआ यों था कि पंडित भरत व्यास के एक बेटा था श्याम सुंदर व्यास ! श्याम सुंदर बहुत संवेदनशील था। एक दिन भरत से किसी बात पर नाराज़ होकर बेटा श्याम सुंदर घर छोड़ कर चला गया।

भरत ने उसे लाख ढूंढा,रेडियो और अख़बार में विज्ञापन दिया, गली गली दीवारों पर पोस्टर चिपकाए। धरती, आकाश और पाताल सब एक कर दिया।ज्योतिषियों, नजूमियों से पूछा।  मज़ारों, गुरद्वारे, चर्च और मंदिरों में मत्था टेका। लेकिन वो नही मिला। ज़मीन खा गई या आसमां निगल गया। आख़िर हो कहां पुत्र? तेरी सारी इच्छाएं और हसरतें सर आंखों पर। तू लौट तो आ।,बहुत निराश हो गए भरत व्यास।

उस समय भरत व्यास कैरियर के बेहतरीन दौर से गुज़र रहे थे। ऐसे में बेटे के अचानक चले जाने से ज़िंदगी ठहर सी गई। किसी काम में मन नहीं लगता। निराशा से भरे ऐसे दौर में एक निर्माता भरत  से मिलने आया और उन्हें अपनी फिल्म में गाने लिखने के लिए निवेदन किया। भरत ने पुत्र वियोग में उस निर्माता को अपने घर से निकल जाने को कह दिया । लेकिन उसी समय भरत की धर्मपत्नी वहां आ गई ।उन्होंने उस निर्माता से क्षमा मांगते हुए यह निवेदन किया कि वह अगले दिन सुबह दोबारा भरत से मिलने आए ,और निर्माता मान गए। इसके बाद उनकी धर्मपत्नी में भरत जी से यह निवेदन किया कि पुत्र की याद में ही सही उन्हें इस फिल्म के गीत अवश्य लिखना चाहिए । ना मालूम क्या हुआ कि पंडित भरत व्यास ने अपनी धर्मपत्नी कि इस आग्रह को स्वीकार करते हुए गाने लिखना स्वीकार कर लिया ।

उन्होंने गीत लिखा - "ज़रा सामने तो छलिये, छुप-छुप छलने में क्या राज़ है, यूँ छुप न सकेगा परमात्मा, मेरी आत्मा की यह आवाज़ है " । इसे 'जन्म जन्म के फेरे' (1957 ) फ़िल्म में शामिल किया गया। रफ़ी और लता मंगेशकर ने इसे बड़ी तबियत से , दर्द भरे गले से गाया था। बहुत मशहूर हुआ यह गीत। लेकिन अफ़सोस कि बेटा फिर भी न लौटा। 

मगर व्यास ने हिम्मत नहीं हारी। फ़िल्म 'रानी रूपमती' (1959 ) में उन्होंने एक और दर्द भरा गीत लिखा - "आ लौट के आजा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं, मेरा सूना पड़ा संगीत तुझे मेरे गीत बुलाते हैं।  इस गीत में भी बहुत दर्द था, और कशिश थी। इस बार व्यास की दुआ काम कर गई। बेटा घर लौट आया। लेकिन आश्चर्य देखिये कि वियोग के यह गाने उस दौर के युवा प्रेमियों के सर चढ़कर बोलते थे ।यह पंडित व्यास की कलम का ही जादू था ।

पंडित भरत व्यास राजस्थान के चुरू इलाके से 1943 में पहले पूना आये और फिर बंबई। बहुत संघर्ष किया। बेशुमार सुपर हिट गीत लिखे। हिंदी सिनेमा को उनकी देन का कोई मुक़ाबला नहीं। एक से बढ़ कर एक बढ़िया गीत उनकी कलम से निकले।

आधा है चंद्रमा रात आधी.… तू छुपी है कहां मैं तपड़ता यहां…(नवरंग)…निर्बल की लड़ाई भगवान से, यह कहानी है दिए और तूफ़ान की.… (तूफ़ान और दिया).…सारंगा तेरी याद में (सारंगा)तुम गगन के चंद्रमा हो मैं धरा की धूल हूं.(सती सावित्री)…ज्योत से ज्योत जलाते चलो.…(संत ज्ञानेश्वर)…हरी भरी वसुंधरा पे नीला नीला यह गगन, यह कौन चित्रकार है.…(बूँद जो बन गई मोती)…ऐ मालिक तेरे बंदे हम.…सैयां झूठों का बड़ा सरताज़ निकला…(दो आंखें बारह हाथ)…दीप जल रहा मगर रोशनी कहां…(अंधेर नगरी चौपट राजा)दिल का खिलौना हाय टूट गया,कह दो कोई न करे यहां प्यार,तेरे सुर और मेरे गीत(गूँज उठी शहनाई)क़ैद में है बुलबुल, सैय्याद मुस्कुराय(बेदर्द ज़माना क्या जाने?) आदि। यह अमर नग्मे आज भी गुनगुनाए जाते हैं। गोल्डन इरा के शौकीनों के अल्बम इन गानों के बिना अधूरे हैं। 

व्यास का यह गीत - ऐ मालिक तेरे बंदे हम,महाराष्ट्र के कई स्कूलों में सालों तक सुबह की प्रार्थना सभाओं का गीत बना रहा।पचास का दशक भरत व्यास के फ़िल्मी जीवन का सर्वश्रेष्ठ दौर था। 
5 जुलाई को भरत व्यास की पुण्यतिथि थी। पंडित भरत व्यास का जन्म 6 जनवरी, 1918 को बीकानेर में हुआ था। वे जाति से पुष्करना ब्राह्मण थे। वे मूल रूप से चूरू के थे।  बचपन से ही इनमें कवि प्रतिभा देखने लगी थी ।  मजबूत कद काठी के धनी भरत व्यास डूंगर कॉलेज बीकानेर में अध्ययन के दौरान वॉलीबॉल टीम के कप्तान भी रह चुके थे।