शहीद भगत सिंह जन्मदिन विशेष : मैं ऐसा पागल हूँ कि जेल में भी आज़ाद हूँ, मरकर भी मेरे दिल से वतन की उल्फ़त नही निकलेगी, मेरी मिट्टी से भी वतन की खुशबू आएगी

भारत:28/9/2022
शहीद भगत सिंह का नाम सुनते ही रगों में देशभक्ति की भावना दौड़ने लगती है,देश की आज़ादी के लिए शहीद भगत सिंह ने हंसते हंसते अपनी जान न्यौछावर कर दी थी आज उन्ही शहीद भगतसिंह का जन्मदिन है।भगतसिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था,आज उनकी जयंती है।भगतसिंह का बचपना देश की आज़ादी से लड़ने वालों को देखकर बिता,उनके बाल हृदय पर जलियांवाला बाग हत्याकांड का बड़ा गहरा असर पड़ा,14 वर्ष की आयु में उन्होंने सरकारी स्कूलों की किताबें और कपड़े तक जला डाले थे क्योंकि उन्हें उन सब चीज़ों में विदेशी बू आती थी।महात्मा गांधी ने जब 1922 में चौरीचौरा कांड के बाद असहयोग आंदोलन को खत्म करने की घोषणा की तो भगत सिंह का अहिंसावादी विचारधारा से मोहभंग हो गया,उन्होंने 1926 में देश की आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की। भगतसिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसम्बर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेजी अधिकारी जेपी सांडर्स को हिंदुस्तानी लोगो पर अत्याचार करने की वजह से मार डाला था,भगतसिंह क्रांतिकारी देशभक्त ही नही थे बल्कि वो लिखते भी बहुत अच्छा थे,वो अध्ययन शील विचारक,शब्दों के बादशाह, दार्शनिक, चिंतक,लेखक,पत्रकार भी थे।उन्होंने तत्कालीन फ्रांस, आयरलैंड, और रूस की क्रांति के बारे में गहन अध्ययन किया था।उन्होंने अकाली और कीर्ति नामक दो अखबारों के संपादक भी किया था।जेल में रहकर भी वो खूब लिखते थे जेल में उन्होंने अपने परिजनों को खूब पत्र लिखे थे,जेल में रहते हुए उनका सबसे चर्चित लेख "मैं नास्तिक क्यों हूँ"खूब प्रसिद्ध हुआ।यह लेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था और यह 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार 'द पीपल' में प्रकाशित हुआ। इस लेख में भगत सिंह ने ईश्वर की उपस्थिति पर अनेक तर्कपूर्ण सवाल खड़े किये हैं और इस संसार के निर्माण, मनुष्य के जन्म, मनुष्य के मन में ईश्वर की कल्पना के साथ साथ संसार में मनुष्य की दीनता, उसके शोषण, दुनिया में व्याप्त अराजकता और वर्गभेद की स्थितियों का भी विश्लेषण किया है,यह भगत सिंह के लेखन के सबसे चर्चित हिस्सों में रहा है।
स्वतंत्रता सेनानी बाबा रणधीर सिंह 1930-31 के बीच लाहौर के सेन्ट्रल जेल में कैद थे। वे एक धार्मिक व्यक्ति थे जिन्हें यह जान कर बहुत कष्ट हुआ कि भगतसिंह का ईश्वर पर विश्वास नहीं है। वे किसी तरह भगत सिंह की काल कोठरी में पहुँचने में सफल हुए और उन्हें ईश्वर के अस्तित्व पर यकीन दिलाने की कोशिश की।असफल होने पर बाबा ने नाराज होकर कहा, “प्रसिद्धि से तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है और तुम अहंकारी बन गए हो जो कि एक काले पर्दे के तरह तुम्हारे और ईश्वर के बीच खड़ी है,इस टिप्पणी के जवाब में ही भगतसिंह ने यह लेख लिखा।
परिजनों ने जब उनकी शादी करनी चाही तो वह घर छोड़कर कानपुर भाग गए, अपने पीछे जो खत छोड़ गए उसमें उन्होंने लिखा कि उन्होंने अपना जीवन देश को आजाद कराने के महान काम के लिए समर्पित कर दिया है। लाहौर षड़यंत्र केस में उनको राजगुरू और सुखदेव के साथ फांसी की सजा हुई और 24 मई 1931 को फांसी देने की तारीख नियत हुई,लेकिन नियत तारीख से 11 घंटे पहले ही 23 मार्च 1931 को उनको शाम साढ़े सात बजे फांसी दे दी गई।
शहीद भगत सिंह के कुछ अनमोल वचन जानकर आप भी देशभक्ति से ओतप्रोत हो जाएंगे।
क्रांति मानव जाति का एक अविभाज्य अधिकार है। स्वतंत्रता सभी का एक अविनाशी जन्म अधिकार है"
'वे मुझे मार सकते हैं, लेकिन वे मेरे विचारों को नहीं मार सकते। वे मेरे शरीर को कुचल सकते हैं, लेकिन वे मेरी आत्मा को कुचल नहीं पाएंगे"''मेरा धर्म मेरे देश की सेवा करना है।''
'जिंदा रहने की हसरत मेरी भी है लेकिन मैं कैद रहकर अपना जीवन नहीं बिताना चाहता।''
"मैं ऐसा पागल हूं कि जेल में भी आजाद हूं।''
मरकर भी मेरे दिल से वतन की उल्फत नहीं निकलेगी, मेरी मिट्टी से भी वतन की ही खुशबू आएगी।''
'आज जो मै आगाज लिख रहा हूं, उसका अंजाम कल आएगा। मेरे खून का एक-एक कतरा कभी तो इंकलाब लाएगा।''
मैं महत्वाकांक्षा और आशा और जीवन के आकर्षण से भरा हूं। लेकिन जरूरत के समय मैं सब कुछ त्याग सकता हूं''
-"बम और पिस्तौल से क्रांति नहीं होती। क्रांति की तलवार विचारों के पत्थर पर तेज होती है"
-"लोग स्थापित चीजों के आदी हो जाते हैं इसलिए परिवर्तन के विचार से कांपते हैं। इस सुस्ती की भावना को क्रांतिकारी भावना द्वारा प्रतिस्थापित करने की आवश्यकता है"