डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जयंतीः भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए समर्पित रहा जीवन! राष्ट्र निष्ठा, त्याग और सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है आज का दिन

Dr. Shyama Prasad Mukherjee Jayanti: Life was dedicated to the unity, integrity and sovereignty of India! Today is a symbol of national loyalty, sacrifice and commitment to principles

आज 6 जुलाई को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती है। इस मौके पर पूरा देश उन्हें नमन कर रहा है। यूं तो कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं, जो अपने विचारों, संघर्षों और बलिदानों से समय की धारा को मोड़ने का संकल्प रखते हैं। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी ऐसे ही युगपुरुष थे, जिनकी राष्ट्रभक्ति, दूरदृष्टि और दृढ़ संकल्प ने भारत की एकता-अखंडता को सुदृढ़ किया। उनका जीवन भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए समर्पित था। वे केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि शिक्षाविद, समाज सुधारक और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रबल प्रवक्ता थे। 6 जुलाई को उनका जन्मदिवस केवल एक स्मरण तिथि नहीं, बल्कि राष्ट्रनिष्ठा, त्याग और सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है। 

जब भी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का नाम आता है, तो एक हिंदूवादी नेता की छवि उभरती है। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को जनसंघ का संस्थापक माना जाता है। जोकि बाद में भारतीय जनता पार्टी बनकर उभरी थी। आज ही के दिन यानी की 6 जुलाई को श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म हुआ था। साथ ही मुखर्जी को एक देश, एक निशान, एक विधान और एक प्रधान के संकल्प के अगुवाकार के तौर पर भी जाना जाता है। भारत के विकास में श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बड़ा योगदान है। कलकत्ता के एक प्रतिष्ठित परिवार में 6 जुलाई 1901 को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम आशुतोष मुखर्जी था। वहीं साल 1917 में उन्होंने मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की और साल 1921 में बीए की डिग्री प्राप्त की। साल 1923 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने लॉ की डिग्री हासिल की। फिर वह इंग्लैंड चले गए। फिर जब वह भारत वापस आए तो वह बैरिस्टर बन चुके थे। वहीं 33 साल की उम्र में मुखर्जी कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने।

सियासी सफर की शुरूआत में श्यामा प्रसाद मुखर्जी कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे। लेकिन मतभेद होने पर वह हिंदू महासभा के सदस्य बन गए। साल 1939 में वह जब पश्चिम बंगाल के प्रवास पर गए, तो इस दौरान उनकी मुलाकात की। एक समय पर जब उनको यह एहसास हुआ कि मुस्लिम लीग भारत में अलगाव पैदा कर रही है, राजनीतिक दलों द्वारा मुस्लिमों के अधिकारों की बात की जाती है, लेकिन हिंदुओं की बात उठाने के लिए कोई राजनीतिक दल सामने नहीं आता है। साल 1947 में भारत के आजाद होने पर पहली बार सरकार का गठन किया गया और मंत्रिमंडल की स्थापना की गई। इस मंत्रिमंडल में श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उद्योग मंत्री के रूप में जगह मिली। लेकिन उस दौरान परिस्थितियों को देखते हुए मुखर्जी ने साल 1950 में अपने पद से और कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। क्योंकि वह मानते थे कि नेहरू-लियाकत पैक्ट के जरिए हिंदुओं के साथ धोखा किया गया है।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय के साथ मिलकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 21 मई 1951 को भारतीय जनसंघ की स्थापना की। डॉ. मुखर्जी को जनसंघ के अध्यक्ष और उपाध्याय महामंत्री चुने गए। साल 1952 में हुए पहली बार आम चुनाव में बंगाल से जीत हासिल कर डॉ. मुखर्जी लोकसभा पहुंचे। इस दौरान मुखर्जी सदन में मुखर होकर कांग्रेस के खिलाफ बोलते थे। वहीं जम्मू-कश्मीर को लेकर मुखर्जी का रुख यही था कि अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया जाए। वहीं जम्मू-कश्मीर को भारतीय संविधान के तहत लाया जाए। आगे जाकर जनसंघ के नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की थी। बता दें कि 23 जून 1953 हार्ट अटैक से डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का निधन हो गया।