देहरादून की पहचान बन चुका भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का कार्यालय देहरादून से होगा शिफ्ट

देहरादून की पहचान बन चुके भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के कार्यालय को 30 नवंबर तक देहरादून से ग्रेटर नोएड़ा शिफ्ट किये जाने के आदेश एएसआइ के मुख्यालय ने सितंबर माह में ही जारी कर दिए थे। तब से संस्थान के कार्मिक परेशान हैं और वह नहीं चाहते की इस ऐतिहासिक कार्यालय को यहां से शिफ्ट किया जाए। देहरादून अपनी अनेकों खासियतों के लिए जाना जाता है, इसे शिक्षा के हब के तौर पर भी देखा जाता है, यहाँ अच्छे स्कूलों की एक लम्बी श्रृंखला मौजूद है। देश के कई जाने माने संस्थान यहाँ मौजूद हैं, जिनमें एएसआई, एफआरआई, सर्वे ऑफ़ इंडिया, ओएनजीसी जैसे कई महत्वपूर्ण संस्थान यहाँ वर्षों से कार्य कर रहे हैं, मगर इनमें से कुछ संस्थानों को अब धीरे-धीरे यहाँ से बिना कारण बताये अन्यत्र शिफ्ट किया जा रहा है।
इनमें से ही एक महत्वपूर्ण संस्थान है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई ) की विज्ञान शाखा जो करीब सौ वर्षों से देश और विदेशों की तमाम धरोहरों की केमिकल ट्रीटमेंट का कार्य करती रही है,वह भी अब दून से विदा होने की तैयारी में है। देहरादून के हाथीबड़कला क्षेत्र में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विज्ञान शाखा का कार्यालय और प्रयोगशाला है, मुख्यत: यहाँ से देश के राष्ट्रीय स्मारकों के कार्यों पर निगरानी रखी जाती है, जिनमें उत्तराखण्ड़ के 44 स्मारकों सहित अन्य क्षेत्रों में स्थित स्मारकों एंव लेह-लदाख के भित्तीचित्रों का रासायनिक परीक्षणों का कार्य किया जाता है।
2013 में केदारनाथ में आयी भयंकर आपदा के बाद केदारनाथ मंदिर में कैमिकल ट्रीटमेंट का कार्य कर इसकी सूरत संवारने का कार्य भी इस शाखा ने किया था। इसी प्रकार एएसआई देश की विभिन्न धरोहरों की देख-रेख करता रहा है। रामजन्म भूमि के अवशेषों की रिपोर्ट भी यहीं तैयार हुई इसी शाखा के विशेषज्ञों ने अयोध्या में राम जन्म भूमि में मिले अवशेषों का परीक्षण व उनका केमिकल ट्रीटमेंट किया और उसकी रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष भी प्रस्तुत की।
सितंबर माह में मुख्यालय से मिले आदेश के बाद इस कार्यालय को शिफ्ट करने की कवायद तेज हो गई है, हालांकि पहले केवल यहाँ से प्रयोगशाला को स्थानांतरण करने की बात की जा रही थी, मगर बाद में पूरे कार्यालय को ग्रेटर नोएडा शिफ्ट करने का निर्णय लिया गया है।संस्थान के इस निर्णय के बाद कार्यालय के दृत्य और तृत्य क्रमिक सकते में हैं, वे परेशान नज़र आ रहे हैं वो खुलकर सामने तो नहीं आते मगर दबी जुबान से इस निर्णय की खिलाफत करते नज़र आ रहे हैं, वे नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि हमें संस्थान को शिफ्ट करने का कारण भी नहीं बताया जा रहा है, हमारे साथ-साथ हमारा पूरा परिवार मानसिक तौर पर टूट गया है, हमें समझ नहीं आ रहा कि इस परेशानी से कैसे निपटेंगे ? उनका कहना है की ऐसी मानसिक परेशानी में हमारे बीच का एक साथी भी हमसें जुदा हो गया है। शिफ्टिंग के इस निर्णय पर संस्थान के प्रभारी निदेशक (विज्ञान) रामजी निगम भी कुछ भी बोलने से बचते नजर आए उनका कहना है कि, हमारे कार्यालय का मुख्यालय दिल्ली में है वहीं से आपको कारण पता चल सकेगा, हम तो सरकारी अधिकारी हैं जो हमें आदेश होगा वो हम करेंगे। बहरहाल देहरादून की पहचान बन चुके ऐसे महत्वपूर्ण संस्थानों का देहरादून से विदा होना प्रत्येक दूनवासी के लिए दुखदायी खबर है, उन्हें अब भी आशा है कि शायद संस्थान इस निर्णय पर पुनः विचार करे और दून को उसकी पुरानी पहचान वापस मिल जाये।