जिम्मेदार कौन ? आपदा के महीनों में तीर्थ यात्रा का मुहूर्त बढ़ा रहा है मौतों का आंकड़ा
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8 जुलाई 2022 शुक्रवार का दिन ! अमरनाथ की पवित्र गुफा के दर्शन के लिए लगभग 5000 श्रद्धालु गुफा के पास ही मौजूद थे कि अचानक बादल फटता है और तबाही आ जाती है जिसकी वजह से अभी तक 16 लोगों की मौत हो चुकी है 65 लोग घायल है जिनका उपचार अस्पताल में चल रहा है और 40 से ज़्यादा लोग लापता है ।
सभी जानते है कि पर्वतीय इलाकों में स्थित तीर्थस्थलों में बिजली गिरना, तेज बारिश का होना, भू–स्खलन होना तथा बादल का फटना पहाड़ी एवं हिमालयी क्षेत्रों के लिए कोई नई बात नहीं है लेकिन अगर ये नई बात नही है तो इन्हीं दिनों तीर्थ यात्राएं क्यों की जाती है जबकि हर साल प्राकृतिक प्रकोप की मार तीर्थ यात्रियों को झेलनी पड़ती है। कुछ तीर्थस्थल ऐसे है जहाँ आपदा नही आई लेकिन भारी संख्या की भीड़ के बीच भगदड़ मच गई और हज़ारो लोग मारे गए।
ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि तीर्थ यात्राओं को लेकर क्या सरकार की तैयारियों में हर साल ही कोई न कोई कमी रह जाती है जिसकी वजह से कई लोगो की जान आपदा या भगदड़ की भेंट चढ़ जाती है। शायद अब समय आ गया है जब तीर्थ यात्राओं से पहले धर्माचार्यों, मौसम वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों,स्वास्थ्य विशेषज्ञों, शासन प्रशासन एक साथ मिलकर विचार विमर्श करे ताकि आपदा और भगदड़ से तीर्थयात्रियों की जान बचाई जा सके।
एक नजर डालें तो अमरनाथ में पहली बार आपदा नही आई इससे पहले भी यहां कई बार आपदा आ चुकी है।
जुलाई 1969
अमरनाथ यात्रा के दौरान सबसे पहला बड़ा हादसा साल 1969 में हुआ था। इस साल जुलाई महीने में भी बादल फटने से करीब 100 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। यह घटना अमरनाथ यात्रा के इतिहास की पहली बड़ी घटना भी मानी जाती है।
16 जुलाई, 2017
अमरनाथ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं से भरी एक बस जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाइवे पर रामबन जिले के पास एक गहरी खाई में गिर गई थी। इस हादसे में 17 श्रद्धालुओं की मौत हो गई और 19 से ज्यादा घायल हो गए।
12 जुलाई, 2018
बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए जा रहे तीर्थयात्रियों का वाहन जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर खड़े एक ट्रक से जा टकराया। इस दौरान 13 तीर्थयात्री गंभीर रूप से घायल हो गए थे।
26 जुलाई, 2019
अमरनाथ यात्रा के दौरान 1 से 26 जुलाई के बीच 30 श्रद्धालुओं की जान गई थी। इन मौतों की वजह श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड द्वारा यात्रा शुरू करने से दो महीने पहले तक श्रद्धालुओं को इस कठिन यात्रा के बारे में जागरूक न करना बताया गया।
8 जुलाई 2022
अमरनाथ की पवित्र गुफा के करीब बादल फटने के कारण आई आपदा में करीब 16 लोगों की मौत हो गई है जबकि कई लोग अब भी लापता हैं. एनडीआरएफ और आईटीबीपी के जवान अभी भी रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटे हैं ।
यहां समझने वाली बात ये है कि जून जुलाई अगस्त इन तीनो महीनों में प्राकृतिक आपदा जैसी घटनाएं होती ही है जिन्हें रोकना मुश्किल है। मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो पिछले चार महीनों में उत्तराखंड में 500 से ज़्यादा सड़क हादसे भूस्खलन और मूसलाधार बारिश की वजह से हुए । हिमालय से उठने वाली यह सुनामी सिर्फ केदारनाथ तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि कई अन्य क्षेत्रों में भी बादल फटने तथा लगातार बारिश के रूप में कहर बनकर टूटी। इसका सर्वाधिक प्रकोप उत्तराखंड के चार पहाड़ी जिलों रूद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी तथा पिथौरागढ़ को झेलना पड़ा। इन क्षेत्रों से निकलने वाली भागीरथी, मंदाकिनी, अलकनंदा, धौलीगंगा, नंदाकिनी, भिलंगना, बिरही, पिण्डर, रामगंगा इत्यादि नदियों के कहर से इनके आस–पास बसे दर्जनों गांवों, कस्बों तथा शहरों का बड़ा रिहायशी भू–भाग जल–प्रलय में समा गया। उत्तरकाशी, हेमकुंड, गोविंदघाट, श्रीनगर गढ़वाल, अगस्त्यमुनि, कर्णप्रयाग, रूद्रप्रयाग, नंदप्रयाग, देवप्रयाग तथा चिन्यालीसौड़ इत्यादि शहरों का एक–तिहाई भाग जल समाधि ले चुका है। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में लगातार बारिश तथा बादल फटने की घटनाएं अभी भी जारी हैं, राज्य के 43 फीसदी भू–भाग पर बसी तकरीबन 22 प्रतिशत आबादी इस आपदा से प्रभावित है। लगभग 5000 से अधिक घर तथा 1000 से अधिक सरकारी तथा व्यावसायिक इमारतें आपदा की भेंट चढ़ चुकी हैं, 10 लाख से अधिक लोगों का आशियाना उजड़ चुका है और अधिकाँश प्रभावित क्षेत्र सड़क–परिवहन–संचार तथा विद्युत जैसी बुनियादी सुविधाओं से कटे हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र हर साल प्राकृतिक आपदा से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पढ़ने वाले प्रभाव को लेकर एक रिपोर्ट जारी करता है। प्राकृतिक आपदा से आर्थिक नुकसान झेलने में इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत का शीर्ष दस देशों में से चौथे नम्बर पर स्थान है।
अब एक नजर डालते है साल 2000 के बाद धार्मिक स्थलों में हुई प्रमुख घटनाओं पर जब लोगो की मौत हुई।
27 अगस्त, 2003: महाराष्ट्र के नासिक जिले में कुंभ मेले में पवित्र स्नान के दौरान मची भगदड़ में 39 लोग मारे गए थे और लगभग 140 अन्य घायल हो गए थे ।
25 जनवरी, 2005: महाराष्ट्र के सतारा जिले के मंधारदेवी मंदिर में एक वार्षिक तीर्थयात्रा के दौरान 340 से अधिक श्रद्धालुओं की कुचल कर मौत हो गई और सैकड़ों अन्य घायल हो गए । यह हादसा उस समय हुआ जब श्रद्धालुओं द्वारा नारियल तोड़ने से सीढ़ियों पर फिसलन हो गई थी, जिसमें कुछ लोग फिसलकर गिर गए ।
3 अगस्त, 2008: हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के नैना देवी मंदिर में भूस्खलन की अफवाह के कारण मची भगदड़ में 162 लोगों की मौत हो गई, 47 अन्य घायल हो गए ।
30 सितंबर, 2008: राजस्थान के जोधपुर शहर में चामुंडा देवी मंदिर में बम विस्फोट की अफवाहों के कारण मची भगदड़ में लगभग 250 भक्तों की मौत हो गई और 60 से अधिक घायल हो गए ।
4 मार्च, 2010: उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में कृपालु महाराज के राम जानकी मंदिर में मची भगदड़ में लगभग 63 लोगों की मौत हो गई थी । ये लोग वहां मुफ्त कपड़े और भोजन लेने के लिए एकत्रित हुए थे ।
वर्ष 2010 के बाद हुई प्रमुख घटनाएं
4 मार्च 2010: उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में स्थि कृपालजु महराज आश्रम में प्रसाद वितरण के दौरान गेट गिरने के कारण मची भगदड़ के कारण 63 लोग मारे गए ।
14 जनवरी 2011: केरल के इडुक्की जिले में स्थित प्रशिद्ध शबरीमाला नजदीक पुल्मेदू में मची भगदड़ के दौरान 100 से ज्यादा श्रद्धालु मारे गए ।
8 नवंबर, 2011: उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में गंगा नदी के किनारे हर-की-पौड़ी घाट पर मची भगदड़ में कम से कम 20 लोगों की मौत हो गई ।
24 सितंबर 2012 : झारखंड के देवघर में अनुकूल चंद आश्रम में ठाकुर अनुकूल चंद की 125 वीं जयंती के उपलक्ष्य पर प्रवेश के दौरान मची भगदड़ में 12 लोगों की कुचलने और दम घुटने से मौत हो गयी ।
19 नवंबर, 2012: बिहार के पटना जिले में गंगा नदी के किनारे अदालत घाट पर छठ पूजा के दौरान एक अस्थायी पुल के ढह जाने से लगभग 20 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए ।
10 फरवरी 2013 : उत्तर प्रदेश के इलाहबाद में रेलवे स्टेशन पर महाकुंभ स्नान को आए श्रद्धालुओं में भगदड़ मच गयी और 36 लोग मारे गए ।
16 जून 2013: उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ धाम में बादल फटने की वजह से लगभग 5000 से ज्यादा श्रद्धालुओं की मौत हो गयी थी और आज भी 3000 से ज्यादा लोग लापता है ।
13 अक्टूबर, 2013: मध्य प्रदेश के दतिया जिले में रतनगढ़ मंदिर के पास नवरात्रि उत्सव के दौरान मची भगदड़ में 115 लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक घायल हो गए. भगदड़ इस अफवाह से शुरू हुई थी कि श्रद्धालु जिस नदी पुल को पार कर रहे हैं, वह ढहने वाला है ।
3 अक्टूबर, 2014: बिहार के पटना जिले में गांधी मैदान में दशहरा समारोह समाप्त होने के तुरंत बाद मची भगदड़ में 32 लोगों की मौत हो गई थी और 26 अन्य घायल हो गए थे ।
14 जुलाई, 2015: आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी में गोदावरी नदी के तट पर एक प्रमुख स्नान स्थल पर मची भगदड़ में 27 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई और 20 अन्य घायल हो गए, वहां ‘पुष्करम’ उत्सव की शुरुआत के दिन भक्तों की भारी भीड़ जमा थी।
11 अगस्त 2021 : हिमांचल प्रदेश के किन्नौर जिले में एक बस और अन्य वाहनों के भू स्खनल होने के चलते 10 लोगों की मौत हो गयी थी ।
उत्तराखंड की बात करें तो ऐसी आपदा केदारनाथ में साल 2013 में आई थी,जिसमे 5000 से ज़्यादा तीर्थयात्रियों की मौत हो गयी थी और आज भी 3000 से ज्यादा लोग लापता है। हालांकि 2013 की आपदा के बाद राज्य सरकार ने केदारनाथ धाम को तीन दीवारों के सुरक्षा कवच से घेरने के लिए योजना बनाई। मोदी सरकार ने 750 करोड़ रुपए की पुनर्निर्माण योजना को हरी झंडी भी दिखाई,जिसके तहत केदारनाथ धाम को अंग्रेजी वर्णमाला के U अक्षर के आकार की तीन दीवारों से घेर कर फ़िलहाल धाम को सुरक्षित किया गया । इस साल केदारनाथ धाम में 150 से ज्यादा यात्रियों की फिर मौत हुई लेकिन इस बार वजह आपदा नही बल्कि हृदयघात और सांस फूलने जैसे स्वास्थ्य कारण रहे ।
ये आंकड़े न सिर्फ हैरान करने वाले है बल्कि ये मौत के आंकड़े कई सवाल खड़े करने वाले है। इतनी मौतों का जिम्मेदार किसे ठहराया जाए? क्या केवल शासन प्रशासन ही इन मौतों के लिए ज़िम्मेदार है? प्रशासन तब ज़िम्मेदार है जब तीर्थ स्थलों में व्यवस्थाओं में कोई कमी हो,स्वास्थ्य व्यवस्थाएं लचर हो,आपदा से निबटने के लिए कोई पूर्व तैयारी न हो,रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए पर्याप्त टीम का इंतज़ाम न हो,खाने पीने की व्यवस्था न हो,लेकिन लोगो मे अनुशासन की कमी के लिए कोई सरकार ज़िम्मेदार नही हो सकती। अनुशासन की कमी ही तीर्थ स्थलों में मचने वाली भगदड़ का मुख्य कारण है।
धार्मिक स्थलों मे बड़े हादसे का शिकार होने की कोई गारंटी नही यानी आप पैसा खर्च करके,बकायदा रजिस्ट्रेशन करके धार्मिक स्थलों में जा तो रहे है लेकिन आपके ज़िंदा घर लौटने की कोई गारंटी नही है। इसका सीधा और साफ मतलब हुआ कि कुछ तो अनुशासन और संयम आपको भी बनाना है ,सामाजिक स्तर पर भी यात्रियों को धैर्य बनाये रखने में दिक्कत महसूस नही होनी चाहिए। दूसरा सरकार को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए कि धार्मिक स्थलों में वीआइपी दर्शन भी माहौल बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाते है। घण्टो लाइन में लगने के बाद जब आम श्रद्धालु को भगवान के दर्शन नही हो पाते तो लोग अपना आपा खो देते है और कई बार ऐसी स्थिति भगदड़ मचाने वाली बन जाती है जो मौत का सबब बन जाती है।
अगर आप आंकड़ों पर गौर करें तो अधिकतर आंकड़े जून जुलाई के है जब मानसून शुरू हो चुका होता है पहाड़ी क्षेत्रों पर भू स्खनल बारिश आदि शुरू हो चुकी होती है हालांकि तीर्थ स्थलों पर सरकार के द्वारा राहत व बचाव कार्य के लिए प्रशासन की व्यवस्था चौक चौबन्द कराई जाती है लेकिन प्राकृतिक आपदा को कौन रोक सकता है इसलिए अब समय आ चुका है कि धार्मिक अनुष्ठानों और तीर्थ यात्रा के लिए तय मुहूर्त के समय में परिवर्तन लाया जाये और उस वक़्त यात्राओं की अनुमति दी जाये जब आपदा आने की संभावनाए कम हो ताकि जान माल की हानि रोकी जा सके । साथ ही कुछ आंकड़े कहते है कि अत्यधिक भीड़ में अफवाह के चलते भगदड़ होने के कारण हादसे हो गए और कई बार श्रद्धालुओं की लापरवाही से भी हादसे हुए है जिसके लिए धार्मिक स्थल पर वीआईपी कल्चर को बढ़ावा देना श्रद्धालुओं में अनुशासन का पालन न करना और अत्यधिक भीड़ का इकट्ठा होना जैसे कारक जिम्मेदार है इन पर भी सरकार को गौर करने की आवश्यकता है ।