संपादकीय : कृषि कानून बिल क्या खोया और क्या पाया हठधर्मिता से लेकर अहिंसा जो आज भी है जिंदा

सोमवार 29 नवंबर 2021 : आज संसद में शीतकालीन सत्र के पहले दिन लोकसभा ने विपक्ष के हंगामे के साथ तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने को बिना चर्चा के ही मंजूरी दे दी गयी । लोक सभा की कार्यवाही शुरू होने पर अध्यक्ष ओम बिरला ने पटल पर कृषि कानूनों से जुड़े दस्तावेज़ रखवाए जिसके बाद कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने संबंधी विधेयक 2021 पेश किया । इसके तुरंत बाद कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने विधेयक पर चर्चा कराने की मांग शुरू की जिसे अध्यक्ष ओम बिरला ने सदन में पूर्ण संख्या और व्यवस्था न होने का हवाला देते हुए खारिज कर दिया । कृषि कानून बिल जिसे लेकर पूरे देश में किसानों का आंदोलन जारी है आज निरस्त हो गया लेकिन कुछ ज्वलंत सवाल आज भी खड़े है जिसे लेकर पक्ष विपक्ष और देश की जनता और मीडिया के अलग अलग मत सामने आ रहे है ।
सिलसिलेवार एक नजर डालते है कृषि कानूनों और आंदोलन के बारे में मीटिंग में बोले दिल्ली के डिप्टी सीएम सिसोदिया, पहले से काफी बेहतर स्थिति में हैं हम
14 सितंबर 2020: संसद में कृषि क़ानूनों को लेकर अध्यादेश लाया गया ।
17 सितंबर 2020: अध्यादेश को लोकसभा से मंजूरी मिली ।
20 सितंबर 2020: राज्यसभा में भी यह ध्वनिमत से पारित किया गया ।
24 सितंबर 2020: पंजाब के किसानों ने तीन दिन के लिए रेल रोको आंदोलन किया ।
25 सितंबर 2020: अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले किसानों का विरोध प्रदर्शन शुरू ।
27 सितंबर 2020: कृषि कानूनों पर राष्ट्रपति ने मुहर लगाई और इसे गजट में शामिल किया गया ।
25 नवंबर 2020: किसानों द्वारा राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू किया गया जिसमें किसानों ने दिल्ली चलो का नारा दिया ।
26 नवंबर, 2020: दिल्ली की ओर मार्च कर रहे किसानों को पानी की बौछारों, आंसू गैस का सामना करना पड़ा क्योंकि पुलिस ने उन्हें हरियाणा के अंबाला जिले में तितर-बितर करने की कोशिश की । बाद में पुलिस ने उन्हें उत्तर-पश्चिम दिल्ली के निरंकारी मैदान में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के लिए दिल्ली में प्रवेश करने की अनुमति दी ।
28 नवंबर 2020: गृहमंत्री अमित शाह ने दिल्ली की सीमाओं को खाली करने के बदले किसानों को बातचीत का निमंत्रण दिया ।
29 नवंबर 2020: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में इन कानूनों का बचाव करते हुए सरकार को कृषि व किसानों का सच्चा हितैषी बताया ।
3 दिसंबर 2020: पहली बार सरकार और किसानों के बीच बैठक जो बेनतीजा रही।
5 दिसंबर 2020: दूसरी बार की बैठक भी बेनतीजा रही।
8 दिसंबर 2020: किसानों ने भारत बंद का आयोजन किया।
11 दिसंबर 2020: भारतीय किसान यूनियन ने कृषि कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी ।
13 दिसंबर 2020: केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने किसान आंदोलन के पीछे टुकड़े-टुकड़े गैंग की साजिश करार दिया ।
21 दिसंबर, 2020: किसानों ने सभी आंदोलन प्रदर्शन स्थान पर एक दिन की भूख हड़ताल की ।
30 दिसंबर 2020: सरकार और किसान नेताओं के बीच छठे दौर की बैठक में कुछ प्रगति हुई क्योंकि केंद्र ने किसानों को पराली जलाने के जुर्माने से छूट देने और बिजली संशोधन विधेयक, 2020 में बदलाव को छोड़ने पर सहमति जताई ।
4 जनवरी 2021: सरकार और किसान नेताओं के बीच सातवीं बैठक की बातचीत भी बेनतीजा रही क्योंकि सरकार कृषि कानूनों को निरस्त करने के पक्ष में नहीं थी ।
7 जनवरी 2021: सुप्रीम कोर्ट 11 जनवरी को कृषि कानूनों के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए सहमत हुआ ।
11 जनवरी 2021: सुप्रीम कोर्ट ने किसानों के विरोध से निपटने के लिए केंद्र सरकार को फटकार लगाई । शीर्ष अदालत ने सरकार से कहा कि बिल से उपजी समस्या को सुलझाने के लिए भारत के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करे ।
12 जनवरी 2021: सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि कानूनों के लागू होने पर रोक लगा दी और सभी याचिककर्ताओं को सुनने के बाद कानूनों पर पक्ष रखने के लिए चार सदस्यीय समिति का गठन किया ।
26 जनवरी 2021: गणतंत्र दिवस पर, कानूनों को निरस्त करने की मांग को लेकर 26 जनवरी को किसान संघों द्वारा बुलाई गई ट्रैक्टर परेड के दौरान रास्ता न दिये जाने के कारण प्रदर्शनकारी पुलिस से भिड़ गए । सिंघू और गाजीपुर के कई प्रदर्शनकारियों द्वारा अपना मार्ग बदलने के बाद, उन्होंने मध्य दिल्ली के आईटीओ और लाल किले की ओर मार्च किया, जहां पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे और लाठीचार्ज किया, जिसकी प्रतिक्रिया में कुछ किसानों ने सार्वजनिक संपत्ति में तोड़फोड़ की और पुलिस कर्मियों पर हमला किया । लाल किले पर, प्रदर्शनकारियों का एक वर्ग खंभों और दीवारों पर चढ़ गया और निशान साहिब का झंडा फहराया । हंगामे में एक प्रदर्शनकारी की मौत हो गई ।
03 अक्टूबर 2021 उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में शांति के साथ प्रदर्शन कर रहे किसानों गाड़ी चढ़ा दी गयी थी जिससे 4 किसानों एक पत्रकार समेत 8 लोगों की मौत हो गयी थी आरोप है कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी का बेटा आशीष मिश्रा उस वक़्त गाड़ी में मौजूद था और या उसके इशारे पर किया गया था ।
19 नवंबर 2021: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की बात कही ।
29 नवंबर 2021: संसद के निचले सदन लोक सभा में कृषि क़ानूनों को निरस्त करने कि मंजूरी मिली ।
कृषि कानूनों के विरोध में 25 नवंबर 2020 से शुरू हुआ किसान आंदोलन आज भी जस से तस है भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष राकेश टिकैत का कहना है कि जब तक न्यूनतम समर्थन मूल्य MSP की गारंटी सरकार नहीं दे देती तब तक हमारा विरोध प्रदर्शन चलता रहेगा ।
कुछ महीनों बाद उत्तर प्रदेश समेत 5 राज्यों में विधान सभा के चुनाव होने जा रहे है ऐसे में भाजपा खतरा मोल कैसे लें ? प्रधानमंत्री मोदी ने बड़ी चतुराई से किसानों पर व्यंग कसते हुए कहा कि शायद तपस्या में ही कोई कमी रह गयी जो मैं किसान भाइयों को समझा नहीं पाया लेकिन याद कीजिये संसद में दिया गया प्रधानमंत्री का वो भाषण जिसमें स्वयं प्रधानमंत्री ने इन किसानों को आंदोलनजीवी और परजीवी कह कर मज़ाक उड़ाया था एक वर्ष में इस देश के 750 से अधिक किसानों ने अपने प्राणों की आहुति दे डाली लेकिन मजाल है कि प्रधानमंत्री मोदी संवेदना को ले कर एक ट्वीट भी कर दें ये कैसी देश सेवा है साहब आपको अपने किसानों का दर्द नहीं दिखता लेकिन अमेरिका में एक प्रदर्शनकारी की मौत होती है तो भारत के प्रधानमंत्री का संवेदना ट्वीट होता है देश के 750 किसान मर जाते है किसी भी भाजपा के बड़े मंत्री का कोई बोल नहीं फूटता और एक ऐसी पार्टी जो देशभक्ति से ओत प्रोत नजर आती है उसके किसी भी कार्यकर्ता को किसान नजर नहीं आता अजीब विडम्बना है साल भर किसानों ने क्या क्या नहीं झेला अपने ही देश में संविधान के दायरे में रह कर प्रदर्शन करने पर किसानों पर आँसू गैस दागे गए लाठियाँ भांजी गयी रास्ते पर कीलों को बिछाया गया मुख्यधारा की मीडिया से लेकर संसद तक आतंकवादी खालिस्तानी आंदोलनजीवी परजीवी जैसे शब्दों से नवाज़ा गया और रही सही कसर लखीमपुर खीरी में गाड़ी से किसानों को कुचलकर पूरी की गयी जिसमें केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा उर्फ टेनी का बेटा आशीष मिश्रा मुख्य आरोपी है । मुख्य धारा की मीडिया का एक धड़ा किसानों से सीधे कह रहा है कि कृषि कानून वापस हो गए अब घर को जाइए । सबसे बड़ा सवाल तो न्यूनतम समर्थन मूल्य है जिस पर इस आंदोलन की आधारशिला रखी गयी थी आंखिर क्या वो कारण है जो सरकार किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी नहीं देना चाहती । क्या एमएसपी की गारंटी देने से किसानों का नुकसान होगा या फिर वास्तव में भला ! अभी तक सरकार की तरफ में एमएसपी पर कोई भी बयान सामने नहीं आया है ।
इस पूरे आंदोलन को खत्म करने के लिए वर्तमान सरकार ने साम दाम दंड भेद के सारे हथकंडे अपना लिए लेकिन देश का किसान किसी भी समझौते के लिए तैयार न हुआ हैरानी तो तब हुई जब भाजपा के ही अन्य मंत्री और नेता भी दबे स्वर में कृषि क़ानूनों की खिलाफत करते नजर आए लेकिन बयान देने की हिम्मत किसी की नहीं हुई सोशल मीडिया से लेकर मुख्य धारा की मीडिया तक ढेरों ब्यान बतौर सबूत मौजूद है आज कई भाजपा शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के चेहरे पर चमक आ गयी है लेकिन क्या किसान वास्तव में आंदोलन खत्म कर रहे है या ये बस एक शुरुआत है ।
प्रधानमंत्री मोदी का एक ऐसा निर्णय जिसका खामियाजा देश की जनता भुगत रही है एक साल में हमने अपने अमूल्य 750 किसानों को खोया है अब आप इसको प्रधानमंत्री की दूरदर्शिता कहिए या हठधर्मिता या फिर किसानों का अडियलपन ! खैर वजह सभी जानते है अपने अपने खबरिया स्रोतों के कारण देश की जनता में एक सोच विकसित हो गयी है जिससे आजकल आंकलन करना बहुत आसान हो जाता है । भाजपा सरकार ने कृषि कानून वापस ले कर केवल चुनावी लहर को अपने पक्ष में करने की भरसक कोशिश की है लेकिन ये कोशिश भाजपा को नाकाफी साबित हो सकती है जिसका असर आगामी विधानसभा चुनाव में देखने को जरूर मिलेगा ।