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सवाल तो बनता हैः आखिर पीएम केयर्स फंड को क्यों कहा जा रहा सदी का सबसे बड़ा घोटाला! ऑडिट पर कैसा ऐतराज, सरकारी नहीं तो वेबसाइट पर पीएमओ का पता क्यों?

The question becomes: after all, why is the PM Cares Fund being called the biggest scam of the century! What is the objection to the audit, if not the government, then why the address of the PMO on t

अगर याचिका दायर न होती और आरटीआई न लगाई गई होती तो शायद ये खुलासा भी कभी नही हो पाता कि पीएम केयर्स फंड जिसे खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह गृह मंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बनाया और इसका कार्यालय पीएमओ है बावजूद इन सबके ये सरकारी नही है। जी हाँ। पीएम केयर्स फंड को लेकर सम्यक गंगवाल ने 2021 में वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान के ज़रिए दिल्ली हाईकोर्ट में पीएम केयर्स फंड को सरकारी फंड घोषित करने और समय समय पर पीएम केयर्स वेबसाइट पर ऑडिट रिपोर्ट का खुलासा करने की मांग को लेकर एक याचिका दायर की थी जिस पर मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ में सुनवाई हुई। कोर्ट ने मामले में केंद्र द्वारा सिर्फ एक पेज के जवाब पर नाराजगी व्यक्त करते हुए केंद्र की फटकार लगाई और कहा कि इतने अहम मुद्दे पर सिर्फ एक पेज का जवाब कैसे दाखिल कर सकते है। इसके आगे कुछ नही? ये मामला इतना आसान नही है हम व्यापक जवाब चाहते है। कोर्ट ने केंद्र को मामले में विस्तृत जवाब देने के लिए 4 सप्ताह का समय दिया है।

पीएमओ की तरफ से दाखिल किए गए जवाब में कहा गया था कि पीएम केयर्स ट्रस्ट पारदर्शिता के साथ काम करता है और इसके फंड का ऑडिट किया जाता है। तब तर्क दिया गया था कि संविधान और आरटीआई अधिनियम के तहत पीएम केयर्स फंड की स्थिति के बावजूद, तीसरे पक्ष की जानकारी का खुलासा करने की अनुमति नहीं है। इस पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की और कहा कि ये मामला गंभीर है आप विस्तृत जानकारी पेश करे।

आइये अब जानते है पीएम केयर्स फंड कब और क्यों शुरू हुआ?
दरअसल बात साल 2020 के मार्च महीने की है, जब कोरोना वायरस की महामारी की वजह से देश में लॉक डाउन लगाया गया था क्योंकि महामारी तेज़ी से फैल रही थी। उसी मार्च महीने की 29 तारीख़ को खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'पीएम केयर्स फंड' के स्थापना की घोषणा की थी, जिसके माध्यम से देश में पैदा हुई महामारी की अप्रत्याशित स्थिति का मुक़ाबला किया जा सके।

आइये अब जानते है कि पीएम केयर्स फंड को सदी का सबसे बड़ा घोटाला क्यों कहा जा रहा है?
पीएम केयर्स फंड को लेकर आरटीआई एक्टिविस्ट साकेत गोखले ने एक बड़ा ख़ुलासा किया था, उन्होंने दावा किया था कि प्रधानमंत्री केयर फंड 32 हज़ार करोड़ रूपये से ज़्यादा का घोटाला है। उन्होंने बाकायदा अपने एक फेसबुक पोस्ट में 12 अक्टूबर 2021 को बताया था कि, “3 हफ्ते पहले, मैंने नेश्नल इंफोर्मेटिक सेंटर या राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) से पूछा कि पीएम केयर्स को "gov. in" वेबसाइट कैसे आवंटित की गई ? क्योंकि भारत सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट में पीएम केयर फंड से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान बताया था कि “पीएम केयर्स फंड का भारत सरकार से कोई जुड़ाव नहीं है,एनआईसी अब विचित्र रूप से दावा कर रही है कि सरकारी विभागों के लिए दिशानिर्देशों के तहत केयर फंड के लिए डोमेन आवंटित किए गए थे।”
उन्होंने अपने पोस्ट के साथ दो स्क्रीनशॉट भी साझा किया है जिसमें भारत सरकार द्वारा डोमेन जारी करने के लिए बनाई गई गाइडलाइन भी शामिल है। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की गाइडलाइन कहती है कि भारत सरकार सिर्फ  राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रालयों, न्यायिक संस्था, राज्य और केन्द्रशासित प्रदेश की सरकार और संसदीय व्यवस्था से जुड़े चुनिंदा कार्यालयों को ही “.gov. in” डोमेन जारी करता है।
केन्द्रीय मंत्रालय द्वारा जारी इस गाइडलाइन से साफ है कि “.Gov. in” डोमेन भारत सरकार के इतर किसी अन्य संस्था या संगठनों के लिए जारी नहीं किया जाता है।
साकेत गोखले ने आगे बताया है कि, ‘इस धोखाधड़ी को कवर करने की कोशिश में, एनआईसी ने “gov. in" वेबसाइट आवंटन के लिए किए गए रिक्वेस्ट की जानकारी देने से इनकार कर दिया है, जो पीएम केयर्स के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय से भेजी गई थी। इसके साथ ही गोखले ने सवाल उठाया है कि, “एक निजी फंड ने सरकारी वेबसाइट का इस्तेमाल करके अवैध रूप से 32,000+ करोड़ रूपये से ज़्यादा कैसे जुटाए ?”

मामला जब कोर्ट तक पहुंचा तब  
केन्द्र सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट को बताया था कि प्राइम मिनिस्टर सिटीज़न असिस्टेंस एंड रिलीफ इन इमरजेंसी सिचुएशन फंड (PM-CARES Fund) भारत सरकार का फंड नहीं है और इसकी राशि भारत सरकार के खजाने में नहीं जाती और इस फंड पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। पूर्व में हुई सुनवाई पर केन्द्र ने दिल्ली हाई कोर्ट को ये भी बताया था कि पीएम केयर्स फंड को सूचना के अधिकार के दायरे में नहीं लाया जा सकता और इसे “राज्य” के रूप में भी घोषित नहीं किया जा सकता।
आपको बता दे कि हाल ही में 'पीएम केयर्स फंड' की वेबसाइट पर दो सालों का लेखा जोखा पेश किया गया है. जो जानकारी उपलब्ध कराई गयी है उसके अनुसार इस फंड में कुल 10,990 करोड़ रुपये इकठ्ठा हुए हैं. जो जानकारी वेबसाइट पर साझा की गई उसमें बीते वित्तीय वर्ष यानी मार्च 31, 2021 तक हुए ख़र्च का ही ब्योरा दिया गया है। इसमें से एक तिहाई हिस्सा ही खर्च किया गया। मौजूदा वित्तीय वर्ष की जानकारी फ़िलहाल वेबसाइट पर मौजूद नहीं है।

अब सवाल उठता है कि मोदी सरकार ने पीएम केयर्स फंड में आम जनता से पैसे लिए हैं। सरकार इसका ऑडिट क्यों नहीं करवाती है, ये आम जनता का पैसा है। ईडी और सीबीआई इसकी जांच क्यों नहीं करती? कोर्ट में केंद्र ने बड़ी चालाकी से सिर्फ एक पेज में अपना जवाब देकर पल्ला झाड़ने की कोशिश क्यों की? अगर पीएम केयर्स फंड सरकारी नही है तो आज भी पीएम केयर्स फंड की आधिकारिक वेबसाइट पर पीएमओ का पता क्यों है? और पीएम मोदी, रक्षा मंत्री, गृह मंत्री, वित्त मंत्री आज भी इसके कर्ताधर्ता क्यों है?