मीडिया का विषकाल: चाँद पर तिरंगा और मुख्य धारा की मीडिया में चाँद वाली सीमा हैदर

 Media poisoning: Tricolor on the moon and Seema Haider with the moon in the mainstream media

एक ज़माना हुआ करता था जब पत्रकार देशहित और समाज के लिए कलम से आंदोलन करते थे जिसकी गूंज से लोकतन्त्र के सर्वोच शिखर पर बैठे राजनेताओं और अधिकारियों की चूलें हिल जाया करती थी । उस दौर में पत्रकारों की ज़िम्मेदारी केवल सूचना प्रकाशित करना नहीं बल्कि सूचनाओं के पीछे छुपे तमाम कारकों को भी उजागर करना होता था । मीडिया संस्थान चाहे वो प्रिंट हो या ईलेक्ट्रोनिक, सभी पत्रकारों के माध्यम से सरकार और जनता के बीच सामंजस्य स्थापित करते थे और सरकारों के द्वारा बनाई गयी जनयोजनाओं की समीक्षा से लेकर कार्ययोजनाओं के धरातल में उतरने तक का विश्लेषण बेबाकी के साथ किया जाता था । जिससे सरकारों के द्वारा की जा रही मनमानी और भ्रष्टाचारों को जनता के बीच समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों के माध्यम से प्रकाशित और प्रदर्शित किया जाता था ताकि सरकार सही दिशा में कार्य कर सके । और यही नहीं कुछ घटनाओं को अपवाद के रूप में छोड़ दें तो पूर्व सरकारें भी मीडिया संस्थानों को चौथे स्तम्भ के रूप में आजादी के साथ कार्य करने की स्वतन्त्रता देती थी । या फिर यूं कहें कि मीडिया पूर्ण रूप से स्वतंत्र होकर कार्य करता था । 

लेकिन आज भारत की मुख्य धारा की अधिकतर मीडिया जिसे दैनिक समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों के रूप में देखा जाता है पतन के दौर में है, भारत के प्रधानमंत्री के अनुसार देश में अमृतकाल चल रहा है, लेकिन मुख्य धारा की मीडिया का ये विषकाल चल रहा है । आज मुख्य धारा की मीडिया से एक आम आदमी की समस्याएँ लगभग गायब हो चुकी है । बेरोजगारी आवास स्वास्थ्य भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर आजकल चर्चाएँ नहीं हुआ करती है और न ही सरकार का रिपोर्ट कार्ड दिखाया जाता है । आज के परिवेश में प्रदेश का मुख्यमंत्री हो देश का प्रधानमंत्री, उनकी जिम्मेदारियों और उनके द्वारा लागू की गयी योजनाओं क़ानूनों के विश्लेषण के बजाय उनके खाने पीने, कपड़े आदि का विश्लेषण किया जाता है ।  साक्षात्कार एक संपादक का हक हुआ करता था लेकिन अब यह जगह  फिल्मी सितारों ने ले ली है जो प्रधानमंत्री से देश के ज्वलंत मुद्दों पर सवाल नहीं करते बल्कि उनके आम खाने के तरीके पर सवाल और जवाब करते है । और करें भी क्यों न क्योंकि प्रधानमंत्री का आम मीठा है ।

कुछ दिनों से मुख्य धारा की मीडिया में पबजी वाले प्यार की आड़ में पाकिस्तान से भारत भागकर आयी सीमा हैदर चटपटा मसाला बनकर उभरी है। जिस सीमा हैदर पर आईएसआई  एजेंट होने का शक तमाम बड़े सेना के अधिकारी कर चुके है,और जांच चल रही है,जांच से पहले सीमा जेल जा चुकी है लेकिन भारतीय मीडिया सीमा को ऐसे कवरेज दे रही है जैसे वह कोई बड़ी वैज्ञानिक हो जिसने देश का नाम रौशन किया हो।

सीमा को लेकर की जा रही कवरेज पर तब हैरानी होती है,जब नामी मीडिया संस्थान  सीमा को कम्प्यूटर से भी तेज बताकर उसे खूब दुलारते है। 23 अगस्त को पूरा भारत चंद्रयान 3 की चांद पर सफल लैंडिंग की प्रार्थना कर रहा था,लेकिन देश के प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र को देखकर लग रहा था जैसे सिर्फ सीमा हैदर ही है जो चंद्रयान की सफलता के लिए प्रार्थना कर रही है । इसरो के वैज्ञानिकों ने रात दिन एक कर भारत का तिरंगा चाँद पर लहरा दिया लेकिन भारत की मीडिया ने चाँद वाले झंडे की सीमा हैदर को हीरोइन बना दिया मुख्य धारा की मीडिया से इसरो के वैज्ञानिक गायब है ।  वो कैसे वैज्ञानिक बने ? कितना परिश्रम किया? और आज जिन्होनें पूरे देश को विश्व पटल पर गौरवान्वित किया ये सब मुख्य धारा मीडिया के विषय नहीं है ।  मुख्य धारा मीडिया का विषय है सीमा हैदर । सीमा हैदर पटाखे फोड़ेगी मीडिया दिखाएगी, वो नाचेगी मीडिया दिखाएगी, वो हँसेगी मीडिया दिखाएगी, वो रोएगी मीडिया दिखाएगी ... आंखिर चल क्या रहा है ? क्या देश की जनता वास्तव में यही सब देखना चाहती है या फिर उसे जानबूझकर दिखाया जा रहा है या फिर इसके पीछे भी कोई साजिश है जिसे छुपाने के लिए सीमा हैदर को राष्ट्रीय न्यूज़ चैनलों पर घंटो प्रसारित कर जनता को गुमराह किया जा रहा है ।

पाकिस्तान से दुबई होते हुए नेपाल के रास्ते चार बच्चों समेत भारत मे अवैध रूप से आने वाली सीमा हैदर को न्यूज़ चैनलों ने इस कदर प्रसिद्द किया है कि कुछ राजनीतिक दलों ने तो उसे चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दे दिया है । हालांकि वो बात और है कि जब कोई चुनाव लड़ता है तो उम्मीदवार को चुनाव आयोग की तय प्रक्रिया के अनुसार ही कई तरह के प्रारूप भरने होते हैं । इन प्रारूपों में उम्मीदवार को भारत का नागरिक होने से लेकर संपत्ति,शिक्षा, पता, न्यायालय वाद विवाद आदि की जानकारी देनी होती है। साथ ही अलग अलग प्रारूपों में कई सवालों के जवाब देने होते हैं । इसके अलावा गृह कर चुकाने की रसीद, एवं अन्य करों के चुकाने की रसीद आदि की जानकारी भी देनी होती है।

भारत का एक सामान्य नागरिक को आधार कार्ड में एक छोटा सा बदलाव करने में लोहे के चने चबाने पड़ते है,जन्मतिथि गलत हो जाये या नाम गलत हो जाये तो आधारकार्ड में अंकित कराने  के लिए तमाम तरह के शपथपत्र बनवाने पड़ते है,राजपत्रित अधिकारी से सत्यापित प्रमाण पत्र बनवाना पड़ता है । एक छोटे संशोधन करवाने में पहचान सिद्ध करने के लिए आपको एक ऐसा दस्तावेज़ देना पड़ता है जिसमें आपका नाम, तस्वीर, पता, जन्मतिथि और पिता का नाम स्पष्ट रूप में अंकित हो ।

सीमा पार से आई सीमा हैदर जिसके पास ऐसा कोई दस्तावेज़ नहीं जो ये साबित करे कि वो भारत कि नागरिक है और न ही सरकार ने सीमा हैदर को भारत की नागरिकता देने के लिए कोई आदेश पारित किया है लेकिन हमारे  देश की बेशर्म मीडिया सीमा हैदर को भारत की नागरिकता दिलवाने के लिए आतुर दिखाई पड़ती है ।

 

सीमा हैदर एक मुद्दा है , जो मीडिया ने पैदा किया है जहां सीमा हैदर के इश्क से लेकर मुश्क तक की खबरें करनें  तमाम न्यूज़ चैनल के तथाकथित खोजी पत्रकार पहुँच रहे है जो जनता के सामने लव, सेक्स, धोखा, भारत, पाकिस्तान से जैसे मुद्दों से बनी बिरयानी रोज घंटों तक बेच रहे है । यकीन मानिए देश को चाँद तक ले जाने वाले इसरो चीफ़ का पूरा नाम सीमा हैदर की तुलना में बहुत कम लोग जानते है क्योंकि मुख्य धारा की मीडिया का फोकस सीमा हैदर है और यह प्रोपेगेंडा तब तक चलेगा जब तक वर्तमान सरकार का कोई ऐसा एजेंडा पूरा नहीं हो जाता जिसकी जानकारी जनता को फिलहाल नहीं है और जब तक होगी तब तक एजेंडा पूरा हो चुका होगा ।

कुछ संस्थाओं को छोड़कर आज मुख्य धारा की मीडिया में पत्रकारिता की कल्पना करना ही अपवाद है क्योंकि मीडिया संस्थान की आय या तो सरकारी विज्ञापन से होती है या फिर गैर सरकारी विज्ञापन से, दोनों में ही सरकार की दखलंदाज़ी रहती है और अब सरकारों को भी समझ आ गया है कि पत्रकार को दबाने से अच्छा है पत्रकारो को वेतन देने वाले संस्थान की आय में दखल दिया जाए ताकि सरकार के मन मुताबिक खबरें चल सकें । अगर किसी संस्थान का पत्रकार फिर भी पत्रकारिता के मापदण्डों के अनुरूप खबर करता है तो उसे निकाल बाहर कर दिया जाता है और उस पत्रकार पर पूरी रिसर्च कर एक आईटी सेल को लगा दिया जाता है ताकि पत्रकार का मानसिक उत्पीड़न हो सके । औरनिष्पक्ष पत्रकारिता के चलते कहीं पर तो मानसिक हानि ही नहीं अपितु शारीरिक हानि भी पत्रकारों की झोली में आती है । आज मुख्य धारा की मीडिया से सरकार की आलोचनाएँ ख़त्म हो चुकी है और यदा कदा कोई कर दे तो वो सरकार की नजरों में आ जाता है फिर सरकार उसका हुक्का पानी बंद करने के रास्ते तलाशने लगती है ।

आज अधिकतर मीडिया संस्थानों में सरकारी नुमाइंदों का कब्जा हो चुका है जिसकी झलक आप तमाम समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों की खबरों में पाते हो । सरकार जो चाहती है न्यूज़ चैनल वही दिखाते है और समाचार पत्र वही छापते है । जनता से संबन्धित ऐसे तमाम मुद्दे जिनसे सरकार बचना चाहती है उसी वक़्त सीमा हैदर जैसा कोई मुद्दा मीडिया में आ जाता है जो देश की समस्याओं के मुद्दों से ज्यादा अहम हो जाता है और जनता का ध्यान भी अहम मुद्दों से हटकर सीमा हैदर जैसे मुद्दों पर केन्द्रित हो जाता है ।