उत्तराखंड:सात बार विधायक बन चुके बंशीधर भगत को राज्यपाल ने बनाया प्रोटेम स्पीकर!क्या होता प्रोटेम स्पीकर? कितनी शक्तियां प्राप्त होती है एक प्रोटेम स्पीकर को? जानिए पूरी डिटेल खबर के लिंक में

उत्तराखंड की पांचवी नवगठित विधानसभा को भाजपा के वरिष्ठतम विधायक कालाढूगी बंशीधर भगत को राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से.नि) नई सरकार में विधानसभा द्वारा अनुच्छेद 180(1) के तहत अध्यक्ष का निर्वाचन ना होने तक प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया गया है।
नई विधानसभा द्वारा जब तक नए अध्यक्ष का निर्वाचन नहीं कर लिया जाता, तब तक विधानसभा के अध्यक्ष के पद के कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए संविधान के अनुच्छेद-180(1) के अनुसार राज्यपाल द्वारा कार्यवाहक अध्यक्ष (प्रोटेम स्पीकर) की नियुक्ति की जाती है। इसके साथ ही संविधान के अनुच्छेद-188 के प्राविधान के अनुसार नव निर्वाचित सदस्यों को सदन में स्थान ग्रहण करने से पूर्व राज्यपाल या उनके द्वारा इस निमित्त नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष शपथ लेना आवश्यक होता है।
क्या होता प्रोटेम स्पीकर?
आमतौर पर प्रोटेम स्पीकर का काम नए सदस्यो को शपथ दिलाना और स्पीकर (विधानसभा अध्यक्ष ) का चुनाव कराना होता हैं. लेकिन जब प्रोटेम स्पीकर के जरिए फ्लोर टेस्ट कराने की बात कही गई है तो उसका रोल काफी महत्वपूर्ण हो जाता हैं. आमतौर पर सबसे सीनियर मोस्ट विधायक यानि जो सबसे ज्यादा बार चुनाव जीतकर आया हो , उसे प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है लेकिन राज्यपाल इसे माने ये जरूरी नहीं है.विधानसभा सचिवालय की तरफ से राज्यपाल को सीनियर मोस्ट विधायकों के नाम भेजे जाते है और राज्यपाल उनसे से एक सीनियर मोस्ट विधायक को चुनता है, ये राज्यपाल के विशेषाधिकार है कि वो किसे चुने. प्रोटेम (Pro-tem) लैटिन शब्द प्रो टैम्पोर(Pro Tempore) का संक्षिप्त रूप है. इसका शाब्दिक आशय होता है-'कुछ समय के लिए.' प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति गवर्नर करता है और इसकी नियुक्ति आमतौर पर तब तक के लिए होती है जब तक विधानसभा अपना स्थायी विधानभा अध्यक्ष नहीं चुन लेती. यह नवनिर्वाचित विधायकों का शपथ-ग्रहण कराता है और यह पूरा कार्यक्रम इसी की देखरेख में होता है. सदन में जब तक विधायक शपथ नहीं लेते, तब तक उनको सदन का हिस्सा नहीं माना जाता.प्रोटेम स्पीकर की सबसे बड़ी ताकत होती है कि वो वोट को क्लालिफाई या डिसक्वालिफाई घोषित कर सकता है. इसके साथ ही वोट की गिनती समान होने और टाई की स्थिति आने पर उसके पास निर्णायक वोट करने का अधिकार होता है।
आपको बता दें कि बंशीधर भगत अब तक सात बार विधायक बन चुके हैं। वर्ष 1991 में वह पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा में नैनीताल से विधायक बने। फिर 1993 मे दूसरी बार एवं 1996 में तीसरी बार नैनीताल के विधायक बने। इस दौरान उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार में खाद्य एवं रसद राज्यमंत्री, पर्वतीय विकास मंत्री, वन राज्य मंत्री का कार्यभार संभाला। वर्ष 2000 में राज्य गठन के बाद वह उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री रहे। वर्ष 2007 में हल्द्वानी विधानसभा से वह चौथी बार विधायक बने। उत्तराखंड सरकार में उन्हें वन और परिवहन मंत्री बनाया गया। इसके बाद 2012 में परिसीमन कालाढूंगी विधानसभा से उन्होंने फिर विजय प्राप्त की। फिर वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में छठी जीत दर्ज की। भगत बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष एवं कैबिनेट मंत्री बनने के बाद उन्होंने सातवी बार 2022 में कालाढूंगी से इस बार भी जीत दर्ज की हैै।