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उत्तराखण्डः जंगलों में आग लगने का मामला! हाईकोर्ट में हुई सुनवाई, पर्यावरणविद प्रो. अजय रावत से मांगे सुझाव

Uttarakhand: Forest fires: High Court hears case, seeks suggestions from environmentalist Prof. Ajay Rawat

नैनीताल। उत्तराखंड हाइकोर्ट ने फायर सीजन में प्रदेश के जंगलों में लगने वाली आग पर स्वतः संज्ञान लिए जाने वाली जनहित याचिका सहित कई अन्य जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की। मामले की सुनवाई  के बाद मुख्य न्यायधीश जी नरेंद्र व न्यायमूर्ती सुभाष उपाध्याय की खण्डपीठ ने पर्यावरणविद प्रोफेसर अजय रावत से कहा है कि वे कोर्ट का मार्गशन करने व वनों में लगने वाली आग से इन्हें बचाने के लिए अपने सुझाव वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अगले शुक्रवार को पेश करें। सुनवाई में न्यायमित्र मैनाली की तरफ से कोर्ट को अवगत कराया गया कि कोर्ट 2021 से राज्य सरकार को वनों को आग से बचाने के लिए दिशा निर्देश जारी करती आ रही रही है, लेकिन अभी तक धरातल पर कुछ भी नही हुआ। फायर सीजन में प्रदेश के जंगल आग उगलते हैं। जो अभी तक पूर्व का आदेश का अनुपालन हुआ है वह नाम मात्र का है। अगर आदेशों का अनुपालन हुआ होता, तो 2021 से अब तक फायर की घटनाओं में कमी आती। इसलिए गठित पर्यावरणविदों की रिपोर्ट मंगाई जाए। जिसपर कोर्ट ने पर्यावरणविद प्रो. अजय रावत को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोर्ट में पेश होने के साथ-साथ अपने सुझाव पेश देने के निर्देश दिए हैं। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि आग लगने की वजह से उच्च हिमालयी क्षेत्रों का तापमान बढ़ने लगा है। राज्य में बादल फटने की वजह से जन धन की हानि हो रही है।  कोर्ट हर साल राज्य सरकार का मार्गदर्शन करती आई है। लेकिन इसके बाद भी इसपर काबू पाने के लिए सरकार कोई ठोस उपाय ढूंढ नही पा रही है। अभी तक जो कदम राज्य सरकार के द्वारा उठाए गए वे भी कोर्ट के आदेश पर उठाये गए।

आज भी कोर्ट सहित न्यायमित्र मैनाली ने इसपर काबू करने के लिए अपने-अपने सुझाव दिए। कोर्ट ने अपने सुझाव में कहा कि उच्च हिमालयी क्षेत्रो में खाल बनाये जाएं। जो जल स्रोत है उनका पानी खालों में जमा किया जाय। जहां पानी नही है। उनमें भी खाले बनाई जाय। सभी खालों को एक दूसरे से जोड़ा जाय। जिससे की फायर सीजन में उनका उपयोग फायर लाइन की तरह किया जा सके। जबकि न्यायमित्र की तरफ से यह भी कहा गया कि 2021 से राज्य सरकार कोर्ट को यह आश्वासन देने के अलावा कुछ नही कर रही है। फारेस्ट फायर पर काबू करने के लिए उच्च न्यायालय ने 2017 में विस्तृत गाइड लाइन जारी की थी। कोर्ट ने 2021  में  मुख्य समाचार पत्रों में प्रकाशित आग की खबरों पर स्वतः संज्ञान लिया था। यही नहीं राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने भी इसपर काबू पाने के लिए मुख्य न्यायाधीश को पत्र भेजा था। जिसमें कहा था कि वन, वन्यजीव व पर्यावरण को बचाने के लिए उच्च न्यायालय राज्य को दिशा-निर्देश जारी करें। कोर्ट ने इनका संज्ञान लेकर कई दिशा निर्देश राज्य सरकार को जारी किए थे। लेकिन अभी तक उन आदेशों का सही तरह से अनुपालन नही होने पर कोर्ट ने इस मामले को पुनः सुनवाई के लिए आज सूचिबद्ध किया।  जबकि हाइकोर्ट ने 2016 में भी जंगलों को आग से बचाने के लिए गाइड लाइन जारी की थी। कोर्ट ने अपने दिशा-निर्देशों में कहा था कि गांव स्तर से ही आग बुझाने के लिए कमेटियां गठित किए जाएं। नागरिकों में जागरूकता अपनाने के साथ साथ अन्य कई निर्देश दिए थे। जिसपर आज तक अमल नही किया गया। न्यायमित्र मैनाली ने कहा कि सरकार जहां आग बुझाने के लिए हेलीकाप्टर का उपयोग कर रही है उसका खर्चा बहुत अधिक है और पूरी तरह से आग भी नही बुझती है। इसके बजाय गांव स्तर पर कमेटियां गठित की जाय। उन्हें इसके दुष्परिणाम के बारे में भी कोर्ट को अवगत कराया। अभी तक उस आदेश का अनुपालन तक नही हुआ।