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संविधान दिवस पर विशेषः भारत के लोकतंत्र का गौरवशाली पर्व

Special on Constitution Day: Glorious festival of India's democracy

हर वर्ष 26 नवंबर को भारत संविधान दिवस के रूप में मनाता है। यह वह ऐतिहासिक दिन है जब सन 1949 में संविधान सभा ने भारत के संविधान को औपचारिक रूप से अंगीकृत किया था। हालांकि संविधान 26 जनवरी 1950 को पूर्ण रूप से लागू हुआ और हम गणतंत्र बने, लेकिन 26 नवंबर का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि इसी दिन डॉ. भीमराव अम्बेडकर की अध्यक्षता वाली प्रारूप समिति ने विश्व के सबसे वृहत् लिखित संविधान को अंतिम रूप दिया था। सन 2015 में भारत सरकार ने इसे आधिकारिक रूप से ‘संविधान दिवस’ घोषित किया, ताकि देश के नागरिक अपने संविधान के मूल्यों, उसकी रचना-प्रक्रिया और उसके निर्माताओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर सकें। भारतीय संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है, यह देश की आत्मा है। इसमें 395 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियां और आज तक 106 संशोधन हो चुके हैं। यह विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है, जिसमें ब्रिटेन, अमेरिका, आयरलैंड, कनाडा, फ्रांस आदि देशों के संविधानों के सर्वोत्तम प्रावधानों को भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप ढाला गया है। इसमें मौलिक अधिकार, नीति-निर्देशक तत्व, मौलिक कर्तव्य, संघीय ढांचा, स्वतंत्र न्यायपालिका, एकल नागरिकता, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार जैसे क्रांतिकारी प्रावधान हैं। सबसे खास बात यह है कि यह संविधान एक जीवंत दस्तावेज है इसमें संशोधन की प्रक्रिया रखी गई है ताकि यह बदलते समय के साथ प्रासंगिक बना रहे।

संविधान सभा में 299 सदस्य थे,जिनमें 15 महिलाएं भी शामिल थीं। दो वर्ष, ग्यारह माह और अठारह दिन की कड़ी मेहनत के बाद यह संविधान तैयार हुआ। डॉ. भीमराव अम्बेडकर को इसका मुख्य शिल्पी कहा जाता है। उन्होंने न केवल प्रारूप समिति की अध्यक्षता की, बल्कि सामाजिक न्याय, समानता और दलित-शोषित वर्गों के उत्थान के लिए संविधान में मजबूत प्रावधान करवाए। प्रस्तावना में घोषित ‘हम भारत के लोग... न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता’ जैसे शब्द आज भी हर भारतीय को प्रेरित करते हैं।

संविधान दिवस हमें यह याद दिलाता है कि हमारा लोकतंत्र कितना अनमोल है। आज जब दुनिया के कई देशों में लोकतंत्र संकट में है, भारत का संविधान लगातार मजबूत हो रहा है। केशवानंद भारती मामले (1973) में सुप्रीम कोर्ट ने ‘मूल ढांचे का सिद्धांत’ प्रतिपादित किया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि संसद भी संविधान के मूल स्वरूप को नष्ट नहीं कर सकती। इसी तरह 44वें संशोधन (1978) ने आपातकाल के दुरुपयोग को रोकने के लिए मजबूत प्रावधान किए। लेकिन आज संविधान दिवस के अवसर पर हमें आत्ममंथन भी करना चाहिए। क्या हम वास्तव में संविधान की भावना का पालन कर रहे हैं? प्रस्तावना में वर्णित वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानव गरिमा और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने में हम कहां हैं? साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रवाद और भ्रष्टाचार जैसी कुरीतियां अभी भी हमारे समाज में व्याप्त हैं। अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार तो है, परंतु क्या हर नागरिक को स्वच्छ हवा, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं मिल रही हैं? मौलिक कर्तव्यों (अनुच्छेद 51ए) को हम कितनी गंभीरता से लेते हैं?

संविधान दिवस केवल सरकारी आयोजन या भाषणों का दिन नहीं होना चाहिए। इसे हमें स्कूल-कॉलेजों में संविधान की प्रस्तावना पढ़ने, उसके मूल्यों पर चर्चा करने और सामाजिक न्याय की दिशा में ठोस कदम उठाने का अवसर बनाना चाहिए। युवा पीढ़ी को डॉ. अम्बेडकर, राजेंद्र प्रसाद, सरदार पटेल, मौलाना आजाद, सरोजिनी नायडू जैसे महान व्यक्तित्वों की भूमिका से परिचित कराना चाहिए। 

संविधान दिवस हमें यह संदेश देता है कि भारत का संविधान केवल कागज का दस्तावेज नहीं, बल्कि एक जीवंत विश्वास है। यह हमें सिखाता है कि विविधता में एकता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है। आइए, हम सब मिलकर संकल्प लें कि हम अपने संविधान के आदर्शों को न केवल शब्दों में, बल्कि आचरण में भी उतारेंगे। तब ही सच्चे अर्थों में हम डॉ. अम्बेडकर के सपनों का भारत बना पाएंगे। एक ऐसा भारत जो समता, स्वतंत्रता और बंधुता पर आधारित समृद्ध, न्यायपूर्ण और समावेशी राष्ट्र हो।