बांग्लादेश में छात्र आंदोलन पर ‘खूनी दमन’ के आरोप में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को फांसी की सजा, 30 दिन में भाग्य तय!भारत पर बढ़ा सबसे बड़ा दबाव
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने मानवता के विरुद्ध गंभीर अपराधों में दोषी ठहराते हुए मृत्युदंड सुनाया है। यह फैसला उनकी अनुपस्थिति में आया, क्योंकि पिछले वर्ष देश छोड़ने के बाद से वह भारत में रह रही हैं। अदालत उन्हें पहले ही ‘फरार’ घोषित कर चुकी थी। यह पूरा मामला छात्र आंदोलन के दौरान कथित दमन और अत्याचारों से जुड़ा है।
इसी प्रकरण में विशेष न्यायाधिकरण ने पूर्व गृहमंत्री असदुज्जमां खान कमाल को भी फांसी की सजा सुनाई। फैसले के कुछ ही घंटों बाद पूरे बांग्लादेश में हिंसा भड़क उठी, जिसके बाद अंतरिम यूनुस सरकार ने देशभर में हाई अलर्ट जारी कर दिया।
निर्णय सुनाते हुए न्यायाधीश गुलाम मुर्तजा मजूमदार ने कहा कि प्रस्तुत साक्ष्य यह सिद्ध करते हैं कि हसीना और अन्य सह–आरोपियों ने 15 जुलाई से 15 अगस्त 2024 के बीच छात्र–नेतृत्व वाले प्रदर्शनों को दबाने के लिए जानलेवा बल का इस्तेमाल किया। अदालत कक्ष में मौजूद लोगों ने फैसले का तालियों से स्वागत किया। इस ऐतिहासिक निर्णय का प्रसारण राष्ट्रीय टीवी पर भी किया गया।
अब बड़ा सवाल यह है कि भारत में निर्वासन के रूप में रह रहीं शेख हसीना के पास आगे क्या विकल्प बचे हैं।
कानूनी रूप से हसीना तभी अपील दायर कर सकती हैं जब वह फैसले के 30 दिनों के भीतर बांग्लादेश की किसी अदालत में सरेंडर करें या फिर गिरफ्तार हों। यानी 17 दिसंबर 2025 तक ही उन्हें अपील का अधिकार मिल सकता है। यदि वह इस अवधि में स्वयं को अधिकारियों के हवाले नहीं करतीं, तो उनका कानूनी अधिकार अपने आप समाप्त हो जाएगा। मौजूदा परिस्थितियों और आवामी लीग के नेताओं पर हो रहे हमलों को देखते हुए यह संभावना बहुत कम है कि वह बांग्लादेश लौटने का जोखिम उठाएँगी।
फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए शेख हसीना ने आरोपों को “पक्षपातपूर्ण, झूठा और राजनीति से प्रेरित” बताते हुए कहा कि यह फैसला एक “ग़ैर-अधिकृत न्यायाधिकरण” ने दिया है, जिसे एक “अनिर्वाचित सरकार” चला रही है—ऐसी सरकार जिसका कोई लोकतांत्रिक जनादेश नहीं है। उनकी यह प्रतिक्रिया साफ संकेत देती है कि वह आत्मसमर्पण वाले विकल्प की ओर नहीं बढ़ रहीं।
उनकी रणनीति का दूसरा विकल्प है—भारत में ही बने रहना और उम्मीद करना कि भारत सरकार उन्हें प्रत्यर्पित नहीं करेगी। हालाँकि, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत से हसीना और पूर्व गृहमंत्री कमाल को तुरंत सौंपने की औपचारिक माँग कर दी है। ढाका के विदेश मंत्रालय ने दावा किया कि भारत–बांग्लादेश प्रत्यर्पण समझौते के तहत दोनों दोषियों को ढाका को सौंपना भारत की ‘अनिवार्य जिम्मेदारी’ है।
बता दें कि जुलाई 2024 में आर्थिक संकट, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के विरोध में भड़के छात्र आंदोलन ने हसीना सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया था। लंबी सुनवाई के बाद ICT-BD ने 78 वर्षीय अवामी लीग नेता को हिंसक दमन का “मुख्य सूत्रधार” ठहराया, जिसमें सैकड़ों लोगों की मौत हुई थी। इसी आधार पर पूर्व गृहमंत्री कमाल को भी मृत्युदंड दिया गया।
कुछ दिनों बाद, 5 अगस्त को हसीना भारत चली आईं। वहीं, बांग्लादेश में नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो. मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार प्रदर्शनों के दौरान लगभग 1,400 लोगों की मौत हुई थी। देश में फरवरी 2026 में आम चुनाव होने की संभावना जताई जा रही है।
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों का आरोप है कि हसीना सरकार ने सत्ता बचाने के लिए प्रदर्शनकारियों पर “योजनाबद्ध तरीके से जानलेवा बल” का इस्तेमाल किया। हालांकि, हसीना इन आरोपों को निराधार बताते हुए पूरी तरह खारिज करती हैं। उनका कहना है कि उन्होंने सुरक्षा बलों को गोली चलाने का कोई आदेश नहीं दिया था और पूरा मामला राजनीतिक प्रतिशोध पर आधारित है।