संपादकीय:क्या न्यायपालिका के निर्णय तय करते है रिटायरमेंट के बाद जजों का भविष्य ? बीजेपी नेता अरुण जेटली ने भी उठाया था कूलिंग पीरियड का मुद्दा कानून मंत्री किरण रिजिजू ने भी कहा था ' जनता देख रही है 'जज़ साहब'
संपादकीय 14 फरवरी 2023
आजकल न्यायपालिका के द्वारा दिये गए निर्णयों पर देश के राजनेता से लेकर आम जनता तक सवाल उठाने लगी है सत्ताधारी दल हो या विपक्ष, आए दिन रिटायर हुए जजों की नियुक्तियों को उन्हीं जजों के द्वारा दिये गए निर्णयों से जोड़ने लगते हैं ।
हाल ही में जस्टिस रंजन गोगोई का रिटायर होने के बाद राज्यसभा सांसद बन जाना और जस्टिस अब्दुल नजीर को रिटायरमेंट के बाद आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बना दिया जाना, राजनैतिक दलों और जनता को सोचने पर मजबूर कर रहा है जिस वजह से न्यायपालिका के निर्णयों पर सवाल उठ रहे हैं ।
देश में आज़ादी के बाद से अब तक सुप्रीम कोर्ट में कुल 50 मुख्य न्यायाधीश रहे हैं। न्यायमूर्ति एच जे कनिया भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश थे तो वहीं वर्तमान में मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ हैं। सुप्रीम कोर्ट के ज़्यादातर रिटायर्ड जज किसी न किसी कमीशन के चेयरमैन ज़रूर बने लेकिन रिटायरमेंट के तुरंत बाद किसी और पद पर तैनाती को लेकर भारत मे विवाद हमेशा ही रहा।
क्या है सुप्रीम कोर्ट के जजों के आफ्टर रिटायरमेंट कूलिंग पीरियड?
2012 में नेता प्रतिपक्ष रहे अरुण जेटली ने कहा था, कि रिटायरमेंट के फौरन बाद जजों को किसी नए सरकारी पद पर नियुक्त करना न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए ख़तरनाक हो सकता है, लेकिन उनकी इस सलाह को उनकी ही सरकार में कोई तवज्जो नहीं दी गई। उन्होंने जजों के कूलिंग पीरियड की वकालत करते हुए कहा था कि" सेवानिवृत्ति से पहले लिए गए फैसले सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले पद की चाहत से प्रभावित होते हैं…मेरी सलाह है कि सेवानिवृत्ति के बाद दो सालों (नियुक्ति से पहले) का अंतराल होना चाहिए अन्यथा सरकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अदालतों को प्रभावित कर सकती है और एक स्वतंत्र, निष्पक्ष और ईमानदार न्यायपालिका कभी भी वास्तविकता नहीं बन पाएगी"
उदाहरण के तौर पर मान लीजिये अगर किसी जज का रिटायरमेंट नजदीक है और वो सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में कोई फैसला सुना दे या मान लीजिए जनहित के किसी मामले में जज कोई ऐसा निर्णय/फैसला सुना दे जिसके समर्थन में पहले से ही देश की अधिकतर जनता हो और खुद केंद्र सरकार भी, तो उस जज के रिटायरमेंट के बाद किसी बड़े पद पर तैनाती की संभावना बढ़ सकती है,यही अरुण जेटली ने भी संभावना जताई थी,लेकिन विडंबना रही कि जो अरुण जेटली रिटायरमेंट के बाद जजों के कूलिंग पीरियड की पैरवी कर रहे थे उनकी सरकार आने के बाद तीन जजों जस्टिस पी सदाशिवम,जस्टिस अग्रवाल, और जस्टिस गोयल की रिटायरमेंट के बाद तुरंत ही नियुक्तियां कर दी गयी थी। पूर्व न्यायाधीश एस. अब्दुल नज़ीर से पहले हालिया वर्षों में उच्चतम न्यायालय के दो रिटायर्ड जजों को अलग-अलग राज्यों का गवर्नर बनाया गया । इनमें सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे पी. सदाशिवम और पूर्व न्यायाधीश एम. फातिमा बीवी शामिल हैं । वहीं, काफी पहले सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के बाद राजभवन पहुंचने वाले पूर्व जजों में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सर सैयद फजल अली का नाम भी शामिल है। जस्टिस अब्दुल नज़ीर से पहले केंद्र की एनडीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी. सदाशिवम को 2014 में केरल का गवर्नर नियुक्त किया था । जस्टिस गोयल को रिटायरमेंट के दिन ही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का चेयरमैन बना दिया गया,जस्टिस अग्रवाल को नेशनल कंज्यूमर रिड्रेसल कमीशन का चेयरमैन बनाया गया।
रिटायरमेंट के तुरंत बाद हुई जजों की नियुक्तियों पर सवाल खड़े होते रहे है,और तब सवाल पूछने वाले ये भी जांच करते है कि कब कब जजों की रिटायरमेंट के बाद नियुक्तियां तय हुई यानि रिटायरमेंट के तुरंत बाद हुई नियुक्तियों से पता चलता है, कि इन नियुक्तियों को लेकर सम्बंधित सरकारों ने जजों के कार्यकाल के दौरान ही फैसले ले लिए थे कि किस जज को अब कहां नियुक्त करना है। इससे जजों के उन निर्णयों, फैसलों और आदेशो पर सवाल खड़े होते है जिन पर उन जजों के कार्यकाल की सरकारों से सम्बंधित मामलों पर दांव लगा हुआ था। सीधी भाषा में सरकार से सम्बंधित वो मामले जो सुप्रीम कोर्ट में चल रहे थे और सरकार की नजर जज के फैसले पर ही अटकी थी, वो फैसले प्रभावित होने की पूरी संभावना थी क्योंकि जज के द्वारा दिये गए फैसले के बाद ही जज के रिटायरमेंट के बाद उसकी किस्मत लिखी जानी थी।(ये केवल एक अंदेशा है,एक संभावना है)।
वजह चाहे जो रही हो लेकिन जजों के रिटायरमेंट के बाद उनकी तुरंत नियुक्ति होने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता को एक बड़ा खतरा होता ही है। अगर जज के फैसले प्रभावित न भी हो तो भी ये मान लिया जाएगा कि रिटायरमेंट के बाद हुई नियुक्ति में उक्त फैसले का ही प्रभाव रहा है लिहाजा न्यायपालिका से जनता का विश्वास भी उठने लगता है।
आपको शायद याद हो केरल हाईकोर्ट के जज जस्टिस बी कमाल पाशा ने रिटायर्ड होने के बाद विदाई समारोह में एक कटाक्ष और व्यंग्यात्मक टिप्पणी जजों के रिटायरमेंट के बाद तुरंत नियुक्ति के मामले को लेकर की थी। उन्होंने कहा था कि "जब एक जज रिटायरमेंट के बाद सरकार से नियुक्ति की उम्मीद कर रहा हो तो वो आमतौर पर अपने रिटायरमेंट के आखिरी साल में सरकार को नाखुश नही करना चाहेगा।ये आम शिकायत है कि ऐसे जज रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली नियुक्तियों की उम्मीद में सरकार को नाखुश करने की हिम्मत नही दिखाते"। जस्टिस पाशा के इस बयान ने जजों की पोल खोल कर रख दी थी। उन्होंने आगे ये भी कहा था कि किसी भी जज को किसी भी सरकार से मिलने वाली वेतनभोगी नौकरियों को कम से कम रिटायरमेंट के बाद के तीन साल के कूलिंग पीरियड में स्वीकार नही करना चाहिए।
आखिर क्या है सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज अब्दुल नज़ीर का सुर्खियां बना विवाद?
दरअसल केंद्र सरकार ने 12 फरवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट से 4 जनवरी 2023 को रिटायर्ड हुए जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर को आंध्रप्रदेश का नया राज्यपाल नियुक्त किया है। करीब 6 साल उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में बतौर जज तमाम अहम फैसले दिए। नाम की ही तरह उनके फैसलों ने भी नजीर कायम की। अयोध्या बाबरी मस्जिद विवाद,राइट टू प्राइवेसी,ट्रिपल तलाक ,नोटबन्दी जैसे ज्वलंत मुद्दों पर सुनवाई करते समय जस्टिस अब्दुल नज़ीर सुप्रीम कोर्ट की बेंच में शामिल रहे थे। अयोध्या बाबरी मस्जिद मामले में अब्दुल नज़ीर ही 5 जजों की बेंच में इकलौते मुस्लिम जज थे। उनके रिटायरमेंट के बाद कुछ ही दिनों के भीतर उन्हें आंध्रप्रदेश के गवर्नर के तौर पर नियुक्त करने से विपक्ष को भी चुटकी लेने का मौका मिल गया और अब्दुल नजीर के सुप्रीम कोर्ट में जज रहते हुए दिए गए फैसलों पर विपक्ष के शक और पुख्ता होने लगे है। राशिद अल्वी भी कहते हैं कि जज को सरकारी पद देना दुर्भाग्यपूर्ण है।
सौजन्य: एएनआई
राशिद अल्वी ने एक इंटरव्यू में कहा कि एक रिपोर्ट के मुताबिक 50 फीसदी रिटायर्ड जज सुप्रीम कोर्ट के हैं, सरकार कहीं ना कहीं उन्हें दूसरे पदों के लिए भेज देती है जिससे लोगों का यकीन न्यायिक व्यवस्था पर कम हो रहा है। उन्होंने आगे ये भी कहा कि जस्टिस गोगोई को अभी तो राज्यसभा में नियुक्ति दी थी और अब जस्टिस नजीर को गवर्नर बना दिया।
जस्टिस गोगोई के राज्यसभा सांसद बनने के बाद जस्टिस नजीर को गवर्नर बनाना उन लोगों के शक को और मजबूत करता है । जस्टिस रंजन गोगोई ने अपने कार्यकाल में अयोध्या मामला ,NRC मामला,आरटीआई दायरे में सीजेआई कार्यालय मामला,राफेल डील मामला,और अमिताभ बच्चन का आय से अधिक मामले में निर्णय दिये थे जिसमें कई निर्णयों को सरकार ने अपने राजनैतिक फायदे के लिए भुनाया था । साथ ही पूर्व जस्टिस रंजन गोगोई पर 2019 में एक महिला ने यौन शोषण का आरोप लगाया था जिस महिला के द्वारा आरोप लगाया था वो इजराइली स्पायवेयर पेगासस PEGASUS के ज़रिए संभावित जासूसी की टारगेट लिस्ट में शामिल थी। महिला से जुड़े हुए तीन नंबरो को जासूसी के लिए संभावित टारगेट के लिए चुना गया था । 20 अप्रैल, 2019 को एक हलफनामे में अपने आरोप दर्ज करने के कुछ दिनों बाद उन्हें कथित तौर पर 'पर्सन ऑफ इंटरेस्ट' के रूप में मार्क किया गया था।
हालांकि इस पूरे मामले में रंजन गोगोई ने किसी भी तरह की कोई टिप्पणी करने से साफ इंकार कर दिया था,लेकिन ये खुलासा वाशिंगटन पोस्ट और अन्य मीडिया संस्थानों की ग्लोबल इन्वेस्टिगेशन में हुआ था। इन्हीं तर्कों के साथ कई और लोगो ने भी रिटायरमेंट के बाद तुरंत जजों की नियुक्ति के इस ट्रेंड को गलत माना है,रिटायरमेंट के तुरंत बाद जजों की नियुक्तियां उन जजों के फैसलों पर सवाल खड़े करती है जो उन्होंने सरकार के पक्ष में दिए। इसका सीधा साफ मतलब है कि जिस जज का रिटायरमेंट के समय नजदीक हो उसके फैसलों पर नजर रखो,अगर उसके फैसले सरकार को खुश करने वाले हो समझ जाओ जल्द ही रिटायरमेंट के बाद वो जज किसी बड़े पद नियुक्त होने वाला है। इस तरह पारदर्शिता खत्म होने लगेगी और न्यायपालिका से जनता या विपक्ष न्याय की उम्मीद भी छोड़ देगा।
केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू भी कह चुके है कि जज बनने के बाद उन्हें (जजों) चुनाव या जनता की जांच का सामना नहीं करना है। जनता जज, उनके दस्तावेज और जिस तरह से वे न्याय देते हैं और अपना ध्यान रखते हैं उसे देख रहे हैं। सोशल मीडिया के इस युग में कुछ भी छुपाया नहीं जा सकता है।अगर हम न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करते हैं या उसके अधिकार, सम्मान और गरिमा को कम करते हैं तो लोकतंत्र सफल नहीं होगा:
केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू
twitter.com/woZedmyQsH
आगामी जून के महीने में भी सुप्रीम कोर्ट के तीन और जज रिटायर होने वाले है। 16 जून को जस्टिस केएम जोसेफ,17 जून को जस्टिस अजय रस्तोगी और 29 जून को जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम रिटायर होंगे,वही जून के अगले महीने एक जज जस्टिस कृष्ण मुरारी 8 जुलाई को रिटायर होंगे जबकि जस्टिस एस रविन्द्र भट्ट 20 अक्टूबर को रिटायर होंगे। क्रिसमस के मौके पर जस्टिस संजय किशन कॉल रिटायर होने वाले है। इन सभी जजों के रिटायरमेंट से पहले फैसले,निर्णय और आदेश बेहद महत्वपूर्ण माने जाएंगे क्योंकि रिटायरमेंट के बाद अगर ये कूलिंग पीरियड में नही रहे तो इनकी भी नियुक्तियां कही न कहीं ज़रूर होगी और वो नियुक्तियां भी इनके फैसलों पर ही निर्भर करेगी।