पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का बड़ा बयान : रिटायर्ड नौकरशाह कर रहा है उत्तराखंड में उगाही

देहरादून I उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एक ऐसा वक्तव्य जारी किया है जिससे उत्तराखंड की सियासत में एक बार फिर चर्चा चरम पर आ गई है कि वह कौन नौकरशाह है जो दिल्ली में बैठकर उत्तराखंड की सरकार चला रहा है हालांकि यह चर्चा उसी दिन शुरू हो गई थी जब पुष्कर सिंह धामी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी लेकिन हरीश रावत के इस बयान के बाद चर्चा पर बवाल मचना तय है।
हरीश रावत ने जिस रिटायर्ड नौकरशाह की ओर इशारा किया है वह कोई और नहीं बल्कि हरीश रावत के मुख्यमंत्री रहे थे उनका सबसे अजीज कहां जाने वाला महा भ्रष्ट आईएएस है।
हरीश रावत उवाच -
“चंडीगढ़ में हूंँ, आज सुबह बहुत जल्दी आंख खुल गई थी। मन में बहुत सारे अच्छे और आशंकित करने वाले, दोनों भाव आये। कभी अपने साथ लोगों के द्वेष को देखकर मन करता है कि सब किस बात के लिये और फिर मैं तो राजनीति में वो सब प्राप्त कर चुका हूंँ जिस लायक में था। फिर मन में एक भाव आ रहा है, सभी लड़ाईयां चाहे वो राजनैतिक क्यों न हों, वो स्वयं सिद्धि के लिए नहीं होती हैं। सिद्धांत, पार्टी, समाज, देश, प्रांत कई तरीके के समर्पण मन में उभर करके आते हैं, कुछ लड़ाईयॉ उसके लिए भी लड़नी पड़ती हैं, चाहे उसको लड़ते-2 युद्ध भूमि में ही दम क्यों न निकल जाय! मेरे सामने भी पार्टी, पार्टी के सिद्धांत, पार्टी का नेतृत्व उत्तराखंड, उत्तराखंडियत, राज्य आंदोलन के मूल तत्वों की रक्षा आदि कई सवाल हैं। मैं जानता हूंँ कि केंद्र में सत्तारूढ़ दल, मेरे ऊपर कई प्रकार के अत्याचार ढहाने की कोशिश करेगा, उसकी तैयारियां हो रही हैं, मुझे आभास है और पुख्ता आभास है, मगर ज्यों-2 ऐसा आभास बढ़ता जा रहा है, चुनाव में लड़ने की मेरी संकल्प शक्ति भी बढ़ती जा रही है। एक नहीं, कई निहित स्वार्थ जो अलग-अलग स्थानों पर विद्यमान हैं, मेरे राह को रोकने के लिए एकजुट हो रहे हैं। क्योंकि जिस तरीके का उत्तराखंड मैंने बनाने की कोशिश की है, वो बहुत सारे लोगों के राजनैतिक व आर्थिक स्वार्थों पर चोट करता है। एक रिटायर्ड नौकरशाह आजकल सत्तारूढ़ दल ही नहीं बल्कि तीन-तीन राजनैतिक दलों के लिये एक साथ राजनैतिक उघाई कर रहे हैं, खनन की उघाई भी बट रही है। उत्तराखंड में बहुत सारे लोगों के आर्थिक स्वार्थ जुड़े हुए हैं, उन लोगों को भी एकजुट करने का प्रयास हो रहा है ताकि वो कुछ मदद सत्तारूढ़ दल की करें और तो कुछ कद्दू कटेगा-बटेगा के सिद्धांत पर कुछ आवाजों को बंद करने के लिए उनमें बांट दें। यदि सत्तारूढ़ दल मुझे युद्ध भूमि में राजनैतिक अस्त्रों से प्रास्त करने के बाद अन्यान्य अस्त्रों की खोज में है तो दूसरी तरफ एक राजनैतिक दल किसान और कुछ राजनैतिक स्वार्थों के साथ राजनैतिक दुरासंधि हो रही है, कहीं-कहीं 22 नहीं तो 2027 की सुगबुगाहट भी हवाओं में है। मगर चंडीगढ़ का यह एकांत मुझे प्रेरित कर रहा है कि जितनी शक्ति बाकी बची है, उससे उत्तराखण्ड और उत्तराखंडियत की रक्षा व पार्टी की मजबूती के लिए जो मैं अपने व्यक्तिगत कष्ट, मान-अपमान और यातनाओं को झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए और जब मैं अपने भावों के स्पंदन को विराम दे रहा हूंँ तो राजनैतिक संघर्ष का संकल्प मेरे मन में और होकर मुझे प्रेरित कर रहा है।
“जय हिंद”
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