मोदी मंत्रिमंडल विस्तार:तेरह मंत्रियों से वो कौन सी चूक हुई जो देना पड़ा इस्तीफा क्या वास्तव में आउट हुए मंत्रियों ने किया मोदी सरकार का बंटाधार जानिए सच क्या है

नैनीताल 08 जुलाई 2021: मोदी सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार होना और अचानक ही 13 बड़े मंत्रियों के एक साथ इस्तीफे ने कई सवाल खड़े कर दिये है ।

सवाल नंबर 1 क्या यह विस्तार आगामी चुनाव के लिए सोची समझी रणनीति है या फिर वास्तव में पुराने तेरह मंत्री एक साथ निक्कमे हो गए ?

सवाल नंबर 2 क्या नए मंत्रियों को शामिल करने से देश में पैदा हुई विभिन्न समस्याओं से निजात मिल पाएगा ?

सवाल नंबर 3 क्या प्रधानमंत्री ने अपनी छवि सुधारने के लिए नाकामियों का ठीकरा कुछ मंत्रियों पर फोड़ दिया गया और उन्हें स्वास्थ्य खराब होने के नाम पर इस्तीफा दिलवा दिया गया ?

सवाल नंबर 4 क्या कारण रहे कि राजनाथ सिंह नितिन गडकरी और निर्मला सीता रमण जैसे कद्दावर नेताओं को छुआ तक नहीं वो मंत्रालय में जस के तस बने हुए है ?

सवाल नंबर 5 जिन्हें मंत्रिमंडल में अब जगह मिली है वो क्या उतने ज़्यादा अनुभवी है जितने पहले वाले नही थे ?

ऐसे तमाम सवाल मोदी सरकार पर उठ रहे है जिनका संक्षिप्त विश्लेषण हम करने जा रहे है

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला बड़ा फेरबदल हुआ है जिसमें एक साथ तेरह मंत्रियों के इस्तीफे मंजूर किए गए और इनके स्थान पर इस बार प्रोफेशनल युवाओं को जगह दी गयी और साथ ही 9 महिलाओं को भी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। एक नज़र डालते है मंत्रिमंडल विस्तार पर और जिन मंत्रियों से इस्तीफे लिए गए है उनसे चूक कहाँ हो गयी ?

दरअसल मोदी सरकार के बारे में एक बात प्रसिद्ध है कि उनके फैसलों की भनक आखिरी समय तक मिलना बड़ा मुश्किल होता है इस बार भी मोदी सरकार ने कैबिनेट विस्तार को लेकर रूपरेखा तो बहुत पहले ही तैयार कर ली थी जिसकी भनक किसी को नही लगी पर इस बार मंत्रिमंडल के विस्तार से साफ जाहिर है कि मोदी सरकार ने अल्पसंख्यक कार्ड खेला है क्योंकि इस बार पिछड़े वर्ग के लोगो को जगह दी गयी है साथ ही महिला सशक्तिकरण को लेकर भी दांव खेला गया है।

आउट होने वाले पहले खिलाड़ी रमेश पोखरियाल निशंक

इस्तीफा देने वालों में पहला नाम रमेश पोखरियाल निशंक का आता है  जिनके पास अब तक शिक्षा मंत्रालय था उनसे ज़िम्मेदारी को वापस ले लिया गया । इसके पीछे की वजह हालांकि उनका खराब स्वास्थ्य बताया गया पर सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक निशंक ने बोर्ड परीक्षाओं को लेकर जो फैसले किये उनसे पीएम मोदी खासे नाराज हो गए थे इसी वजह से मोदी और निशंक के बीच मनमुटाव हो गया था और पीएम मोदी ने खुद शिक्षा मंत्रालय का कामकाज देखना शुरू कर दिया था । तो यहाँ हुई थी निषंक से चूक ।

आउट होने वाले दूसरे खिलाड़ी डॉ हर्षवर्धन

इस्तीफा देने वालों में दूसरा नाम डॉ हर्षवर्धन का आता है जिन्होंने इस्तीफा दिया, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर कोरोना काल मे बड़ी जिम्मेदारी थी उनके कंधों पर लेकिन जिस तरह कोरोना की दूसरी लहर बेकाबू हुई और अस्पतालों में ऑक्सीज़न और बेड्स की कमी के चलते हालात बदतर होते चले गए तो विपक्ष और मीडिया के सवालों में  मोदी सरकार घिरती चली गयी इसी का खामियाजा डॉ हर्षवर्धन को भुगतना पड़ा। हर्षवर्धन के पास सिर्फ स्वास्थ्य मंत्रालय ही नही बल्कि विज्ञान और तकनीकी मंत्रालय भी थे जिसकी ज़िम्मेदारी उन्होंने ठीक से नही निभाई और ये तीनो मंत्रालय उन्हें खाली करने पड़े। ये थी डॉ हर्षवर्धन की चूक।

आउट होने वाले तीसरे खिलाड़ी प्रकाश जावड़ेकर

प्रकाश जावड़ेकर जिनके पास पर्यावरण वन और जलवायु मंत्रालय रहा । प्रकाश जावड़ेकर महाराष्ट्र से राज्यसभा सांसद भी है,मीडिया रिपोर्ट में पर्यावरण को लेकर कहा जा रहा है कि जावड़ेकर के नेतृत्व में वनों का संरक्षण नही हो पा रहा था और वन मंत्री गैर जिम्मेदाराना रवैया रखते है जिसकी वजह से उनके हाथों से ये मंत्रालय छीना गया । उन्होंने वनों की सुरक्षा के लिए ठोस नीतियां नही बनाई । और ये थी प्रकाश जावड़ेकर की चूक ।

आउट होने वाले चौथे खिलाड़ी रविशंकर प्रसाद

रवि शंकर केंद्रीय कानून मंत्री थे । ये बिहार के पटना साहिब से लोकसभा सांसद है मोदी सरकार में इनके पास कानून और न्याय ,संपर्क एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालयो की बागडोर थी। आपको शायद याद भी हो हाल ही में ट्वीटर पर ये खासे चर्चा में घिर गए थे इनका ट्वीटर एकाउंट भी कुछ समय के लिए बन्द कर दिया गया था। इनके लिये कहा जा रहा है कि जनता की नजरों में ये खरे नही उतरे क्योंकि देश की महिलाओं को जब न्याय चाहिए होता है तब ये अपनी ज़िम्मेदारी छोड़ कर ट्वीट करने में व्यस्त रहते थे जिसकी वजह से जनता में मोदी सरकार को लेकर नाराज़गी व्याप्त होने लगी थी । ये थी रवि शंकर प्रसाद की चूक।

आउट होने वाले पांचवें खिलाड़ी बाबुल सुप्रियो

पांचवें खिलाड़ी के रूप में आउट होने वाले बाबुल सुप्रियो जिन्हें होना तो फ़िल्म इंडस्ट्री में चाहिए था लेकिन फिल्में छोड़ वो मोदी सरकार के मंत्री बन गए। बाबुल पश्चिम बंगाल के आसनसोल से सांसद रहे है, बाबुल पर्यावरण मंत्रालय में राज्य मंत्री थे। खुद ने तो कुछ काम किया नही उल्टा ये पार्टी से नाराज़ रहते थे जैसे किसी शादी में अक्सर फूफाजी नाराज़ हुआ करते है। आपको याद होगा पश्चिम बंगाल विधानसभा में जब बाबुल चुनावी मैदान में उतरे थे तो पार्टी की किरकिरी करवा दी थी, 50 हज़ार वोटो से बाबुल को करारी हार मिली थी ऐसे में पार्टी कमजोर खिलाड़ी पर दांव कतई नही लगाएगी वो तब जब चुनाव सर पर हो। भई राजनीति में उतरे थे तो राजनीति के दांवपेंच सीखने थे ना,, गाना तो तो बाद में भी गा ही लेते । ये थी बाबुल सुप्रियो की चूक।

आउट होने वाले छठे खिलाड़ी राव साहेब दानवे पाटिल  

फिर है राव साहेब दानवे पाटिल जिनके पास उपभोक्ता खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में राज्य मंत्री का भार था। महाराष्ट्र की जलना लोकसभा सीट से सांसद रहे है राव साहेब दानवे। इनके लिए कहा जा रहा कि अमित शाह कुछ समय से इनसे नाराज़ थे नाराजगी किस बात की थी ये तो खुलासा नही हो पाया पर सूत्रों की माने तो पिछले कुछ महीनों में देश के किसान सरकार से नाराज़ है किसानों की मांगो पर एक की सहमति बन रही थी लेकिन पार्टी की नही । हालांकि पार्टी ने हमेशा यही कहा कि हम किसानों के साथ है लेकिन अगर साथ होते तो देश मे इतनी अराजकता नही फैलती। खैर अमित शाह को नाराज़ करना मतलब आप जानते ही है। ये थी चूक राव साहेब दानवे पाटिल की चूक

आउट होने वाले सांतवें खिलाड़ी देबोश्री चौधरी

फिर आते है देबोश्री चौधरी पर , जो कि मोदी सरकार में महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री थे ये पश्चिम बंगाल की रायगंज लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद भी है। इनके लिए कहा जा रहा था इनके इस्तीफे के बाद कोई और बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी पर कब पता नही फिलहाल मंत्रिमंडल के विस्तार में तो इनका नाम कहीं नही है। इनसे चूक हुई या नही ये देबोश्री खुद भी सोच रहे है।

आउट होने वाले आठवें खिलाड़ी सदानंद गौड़ा

फिर जो नाम आता है वो है सदानंद गौड़ा का । ये मोदी सरकार में रासायनिक एवं उर्वरक मंत्री थे कर्नाटक के बेंगलुरु नार्थ से बीजेपी सांसद थे। ऐसा चर्चा में आया था कि कोरोना काल मे दवाईयों की किल्लत को लेकर मोदी सरकार की जो किरकिरी हुई थी उसका खामियाजा सीधे तौर पर सदानंद को भुगतना पड़ा । कोरोना काल मे दवाईयों और इजेक्शनों की कालाबाज़ारी खूब हुई जिसका ठीकरा सदानंद पर ही फोड़ा गया, यही वजह रही कि सदानंद को इस्तीफा देना पड़ा। महामारी के वक्त जनता से धोखा करना भारी पड़ गया और यही बड़ी चूक साबित हुई।

आउट होने वाले नौवें खिलाड़ी संजय धोत्रे

फिर है संजय धोत्रे। संजय शिक्षा के साथ सूचना और प्राद्योगिकी मंत्रालय में राज्य मंत्री थे ये महाराष्ट्र के अकोला लोकसभा सीट से सांसद थे इनके कामकाज से स्वयं मोदी भी नाराज़ थे इस्तीफे के बाद पार्टी ने उन्हें यहां वहाँ समायोजित तो करना है ही लेकिन मोदी की नाराजगी संजय को भारी पड़ गयी। भैया पार्टी में रहना है तो मुखिया को नाराज़ नही करते ये समझना चाहिए। इतनी बड़ी चूक करोगे तो कही समायोजित भी नही हो पाओगे ।

आउट होने वाले दसवें खिलाड़ी संतोष गंगवार

खैर अब आते है संतोष गंगवार। उत्तरप्रदेश के बरेली वाले सांसद।जी हाये श्रम एवं रोजगार स्वतंत्र प्रभार मंत्री थे।अब ये तो सभी जानते है कि देश में रोजगार के क्या हालात है।दूसरा लॉक डाउन के वक्त संतोष गंगवार का पत्र वायरल हो गया था जिसके बाद सभी ने उत्तरप्रदेश सरकार की खूब आलोचना भी की थी। वो पत्र जल्दबाज़ी में लिखा गया था जिसमें दवाइयों की कालाबाज़ारी और कुप्रबंधन पर सवाल खड़े किए थे और उन्होंने ये पत्र  सीधे योगी आदित्यनाथ को लिख दिया था कि उनके संसदीय क्षेत्र बरेली में ऑक्सीजन सहित मेडिकल उपकरणों की कालाबाज़ारी चल रही है। इस पर सवाल पार्टी पर भी खड़े होने लगे जिसका खामियाजा अब जाकर संतोष गंगवार को भुगतना पड़ा । पार्टी में रहकर जीहुजूरी करनी थी लेकिन संतोष गंगवार उतर आए बगावत पर। बस यही चूक इन्हें आउट करा गयी

आउट होने वाले इग्यारहवें खिलाड़ी प्रताप सारंगी

खैर फिर नाम आता है प्रताप सारंगी का जो कि ओडिशा के बालासोर से सासंद रहे। इनके पास सूक्ष्म लघु और मध्यम के साथ पशुपालन डेयरी और मत्स्य पालन मंत्रालय में राज्य मंत्री की ज़िम्मेदारी थी। प्रताप हमेशा ही विवादों में रहे हैं शायद आपको याद हो ये वही प्रताप है जिन्होंने कहा था जिन लोगों को भी वंदे मातरम स्‍वीकार नहीं है उनको भारत में रहने का कोई अधिकार नहीं है उन्‍होंने कांग्रेस पर लोगों को भड़काने का आरोप लगाया था। इनकी वीडियो भी खूब वायरल हुई थी जिसमे उन्‍होंने कहा था कि लोगों को भड़काने वाले देशभक्त नहीं हैं जो भारत की स्वतंत्रता, एकता और वंदे मातरम को स्वीकार नहीं करते उनको इस देश में रहने का कोई अधिकार नहीं है। कहा जा रहा है कि पार्टी में खलबली मचाने के लिए प्रताप के बयान काफी थे मंत्रालय के कामो को करने की बजाय ये क्रांतिकारी बनकर आंदोलन पैदा करना चाहते थे जिसकी वजह से इनसे राज्य मंत्री की उपाधि छीन ली गयी। और इसी चूक ने इन्हे मंत्रिमंडल से मुक्त कर दिया ।

आउट होने वाले बारहवें खिलाड़ी रतन लाल कटारिया

फिर है रतन लाल कटारिया। हरियाणा के अंबाला से सांसद है इनके पास जल शक्ति मंत्रालय में राज्य मंत्री की ज़िम्मेदारी थी। इनसे तो मंत्री पद छीनना ही था इसके पीछे वजह भी छोटी मोटी नही है ,ये विवादित बयान देकर खुद के पैरों में ही कुल्हाड़ी जो मार बैठे थे। रतन लाल कटारिया ने किसान आंदोलन पर किसानों को लेकर एक बेहद अजीबो गरीब बयान दिया था, आंदोलन करने वालों में भारत का अन्नदाता किसान नहीं है बल्कि इस आंदोलन में सोनिया गांधी और राहुल गांधी जैसे कुछ राजनीतिक तत्व घुस गए हैं। और रतनलाल कटारिया ने कहा कि अगर किसानों को उनका विरोध करना ही था तो कहीं और मर लेते । कटारिया ने कहा कि मैं हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना करता हूं कि इन काले झंडे दिखाने वालों को सद्बुद्धि दें । इस बयान से पहले भी रतन ने प्रदर्शनकारी किसानों को पागल सांड बताया था, हालांकि बाद में कटारिया ने इससे इनकार करते हुए कहा था कि उनकी टिप्पणी को गलत तरीके से पेश किया गया। खैर ऐसे बार बार विवादित बयान देने वाले को पार्टी कब तक रखेगी जबकि चुनाव नजदीक है और जनता सब याद रखती है । और यही मंत्रिमंडल से आउट होने के लिए सबसे बड़ी चूक साबित हुई ।

आउट होने वाले तेरहवें खिलाड़ी थावर चंद्र गहलोत जिन्हें कर्नाटक का राज्यपाल बनाया गया

कैबिनेट विस्तार से सबसे पहले थावर चंद गहलोत को मंत्रिमंडल से हटाया गया था। वह सामाजिक न्याय और आधिकारिकता मंत्री थे । इसके अलावा थावर चंद गहलोत के पास राज्यसभा में नेता सदन और बीजेपी पार्लियामेंट्री बोर्ड के सदस्य का अहम पद भी था । उन्हें कर्नाटक का राज्यपाल बनाया गया । 


ये तो थे निकाले गए मंत्री अब बात करते है बीजेपी के अल्पसंख्यक कार्ड खेलने की। मोदी सरकार ने इस बार कई पिछड़े वर्गों के लोगो को मंत्रिमंडल में जगह दी है ये सभी नेता अलग अलग समुदाय से सम्बंध रखते है। अब नए मंत्रिमंडल में एसटी(अनुसूचित जनजाति) के मंत्रियों की संख्या 8 हो गयी है जो कि अब तक कि किसी भी सरकार में सबसे ज़्यादा संख्या है । अब मोदी सरकार को कोई ये नही कह सकेगा कि मोदी सरकार अल्पसंख्यक विरोधी सरकार है चुनाव आने से पहले ही मोदी सरकार ने अल्पसंख्यक का दांव खेल दिया है । मंत्रिमंडल विस्तार में पिछड़े वर्ग के मंत्रियों को भी जगह दी गयी है ये भी एक चुनावी पैंतरा है बीजेपी हमेशा ब्राह्मण कार्ड खेलती आयी है और साथ ही कट्टर हिंदुत्व को फॉलो करती आयी है  लेकिन इस बार चूंकि देश मे मोदी सरकार को लेकर नकारात्मक सोच पैदा होने लगी तो बीजेपी ने भी सभी पार्टियों की तरह जाति पर दांव खेल अल्पसंख्यकों को अपनी ओर खींचने की कोशिश की है। गौर करने वाली बात ये है कि 8 तो अनुसूचित जनजाति के मंत्री हो गए अब मोदी टीम में 27 मंत्री पिछड़े वर्ग यानी ओबीसी के होंगे ब्राह्मण कार्ड पर सत्ता हासिल करने वाले मोदी खुद ओबीसी कोटे के है इसीलिए शायद उन्होंने अब ओबीसी के लोगो का सहयोग हासिल करने के लिए ये चाल चली । इसके अलावा महिलाओं को भी अच्छी खासी जगह दी गयी है मोदी मंत्रिमंडल में अब महिलाओं की संख्या 11 हो चुकी है 11 तो वैसे भी शगुन का नम्बर माना जाता है तो महिलाओं को मंत्रिमंडल में जगह दे कर मोदी ने मातृ शक्ति को भी अपनी ओर करने का प्रयत्न किया है ।

आप इस चाणक्य नीति को समझिए जब देश मे आपके खिलाफ आवाज़ें उठने लगे तो आप सबसे पहले निम्न वर्ग का विश्वास जीतने की कोशिश करते है फिर महिलाओं का विश्वास क्योंकि कुछ भी हो घर हो या समाज महिलाओं की कही बात अनदेखी नही की जा सकती। फिर देश के युवाओं को अपनी ओर करने की नीति बनाई जाती है । देश में युवा आज बेरोजगार घूम रहे है जिसके कारण युवाओं में मोदी सरकार के खिलाफ काफी रोष पनप रहा है । मोदी सरकार के नए मंत्रिमंडल में युवाओं को इस बार ज़्यादा मौका देकर मोदी सरकार ने देश के नौजवानों साधना चाहती है । पहले मंत्रिमंडल में औसत आयु 61 वर्ष हुआ करती थी अब 58 हो गयी है यानी मंत्रिमंडल में 58 की सीमा को छूते हुए तो चुनाव नही होगा जाहिर है 50 से कम या चलो 50 तक भी उम्र मान ले तो भी युवा पीढ़ी को ही मौका मिलेगा । नए मंत्रिमंडल में इस बार कई चेहरे तो ऐसे भी है जिन्हें केंद्र में काम करने का कोई अनुभव भी नही है ये संख्या 46 के करीब है यानी 46 नए चेहरों ने कभी केंद्र सरकार में काम ही नही किया ये भी एक जुआ खेला है मोदी सरकार ने। हालांकि इस बार मंत्रिमंडल में मोदी सरकार ने पढ़े लिखे नेताओ को ही शामिल किया है जिनमे 68 नेता ग्रेजुएट है,6 डॉक्टर्स है,13 वकालत किये हुए है,5 इंजीनियरिंग किये हुए है 7 सिविल सर्वेन्ट 3 एमबीए और 7 पीएचडी किये हुए है।यानी 89 प्रतिशत नेता मंत्रिमंडल में अच्छे खासे पढ़े लिखे है। फ़िलहाल मोदी के नए मंत्रिमंडल में अब 77 नेता शामिल हो गए है इससे पहले ये संख्या 53 ही थी। उधर मोदी सरकार ने ताश के इक्को को हाथ भी नही लगाया क्योंकि आज बीजेपी की ताकत ही इनसे है ये राजनाथ सिंह, निर्मला सीतारमण, नितिन गडकरी। ये वो नाम है जिन्हें दाएं बाएं करना मतलब आगामी चुनाव में हार सुनिश्चित करवाना ।अब आगे चुनाव को लेकर मोदी क्या नई रणनीति तैयार करने वाले है ये तो वक्त ही बताएगा। फ़िलहाल मोदी सरकार ने चुनाव को लेकर कमर कसना शुरू कर दिया है क्योंकि सत्ता छिनने का डर इस बार साफ झलक रहा है।