उत्तराखंड सरकार ने सतर्कता विभाग को किया आरटीआई के दायरे से बाहर

उत्तराखण्ड में सतर्कता विभाग को सूचना के अधिकार अधिनियम से बाहर कर दिया गया है,यानी अब विजिलेंस को आसूचना संगठन घोषित करने के बाद इसके द्वारा आरटीआई के तहत कोई भी जानकारी नही मांगी जा सकेगी।

राज्यपाल बेबी रानी मौर्य की इस संबंध में स्वीकृति के बाद राज्य सरकार ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी, राज्य सरकार का तर्क है कि आरटीआई के दायरे में होने से सतर्कता विभाग के जांच कार्य में बाधा आ रही थी,कार्मिक और सतर्कता अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने मीडिया को बताया कि सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 24 की उपधारा चार और उत्तरप्रदेश सतर्कता अधिष्ठान अधिनियम 1965 की धारा चार की उपधारा एक के अधीन शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए ये कदम उठाया गया है।

आपको बता दें कि बीते 4 सितंबर को मंत्रिमंडल ने इस फैसले को मंजूरी दे दी थी,सरकार इसके पीछे अपना तर्क दे रही है कि आरटीआई के तहत मांगी जाने वाली सूचनाओं से विजिलेंस की जांच आगे बढ़ने में अड़चनें पेश आ रही है। आपको बता दें साल 2005 में केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार थी 12 अक्टूबर को सरकार ने एक नया कानून लागू किया जिसे राइट टू इनफार्मेशन यानी सूचना का अधिकार कहा गया जिसके चलते दबी और छुपी हुई सूचनाएं आम आदमी तक पहुंचने लगी लेकिन 2014 में केंद्र में एनडीए सरकार का प्रदार्पण हुआ और प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने कुर्सी संभाली , जिसके बाद आरटीआई कानून में काफी बदलाव भी हुए इसी तरह से पिछले कुछ बदलावों का सीधा और साफ मतलब यही है कि सरकार जो कुछ भी करेगी अगर उसमे किसी भी प्रकार का कोई भ्रष्टाचार हुआ तो अब उसकी सूचना आम आदमी तक नही मिल पाएगी, तो क्या ये मान लिया जाए कि केंद्र के पद चिन्हों पर उत्तराखंड की बीजेपी सरकार आम आदमी की पहुच से उसका एकमात्र हथियार भी छीन लेना चाहती है ?