उत्तराखंड!ये कैसा न्याय? पिंजरे में कैद गुलदार को गुस्साए ग्रामीणों ने ज़िंदा जलाकर दी दर्दनाक मौत!150 लोगों पर हुआ मुकदमा दर्ज! वन्यजीव और मनुष्य के बीच इस संघर्ष का असली दोषी कौन?

एक ओर जब उत्तराखंड के जंगली जानवरों ख़ासकर शेर, बाघ चीता,गुलदार की घटती संख्या को लेकर सरकार और पशु प्रेमी चिंतित है तो आज वही पौड़ी गढ़वाल जिला मुख्यालय के नागदेव रेंज के पाबौ ब्लॉक के सपलोड़ी गांव में जानवरों के प्रति बेहद ही अमानवीय कृत्य सामने आया है। यहां पिंजरे में कैद एक गुलदार को गुस्साए ग्रामीणों ने ज़िंदा ही जलाकर मार डाला। मामले में 150 ग्रामीणों के खिलाफ थाने मे मुकदमा पंजीकृत किया गया है।
उक्त मामले में वन विभाग दरोगा सतीशचंद्र ने थाने में तहरीर दी और आरोप लगाया कि जब वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी पिंजरे में कैद गुलदार को रेंज कार्यालय नागदेव ले जा रहे थे तो 150 ग्रामीणों ने उनके साथ धक्का मुक्की की,पिंजरा छीना और उसके ऊपर घास डालकर आग लगा दी। आग की लपटें तेज़ थी और पिंजरा बंद था जिस वजह से गुलदार अपनी जान नही बचा पाया,और आग ।के बुरी तरह जलने से उसकी मौत हो गयी।
तहरीर के आधार पर ग्राम प्रधान अनिल कुमार,देवेंद्र, हरि सिंह रावत,सरिता देवी, विक्रम सिंह सहित 150 लोगो के विरुद्ध सरकारी कार्य मे बाधा डालने,वन कर्मियों पर हमला करने और आग लगाकर गुलदार को ज़िंदा जलाकर मार देने पर मुकदमा पंजीकृत करवाया है। उधर प्रभागीय वनाधिकारी गढ़वाल ने बताया कि आरोपियों की पहचान कर ली गयी है।
आपको बता दें कि इसी ग्राम पंचायत में बीती 15 मई को हरियाली सैण के जंगल मे काफल तोड़ने गयी एक महिला सुषमा देवी पर शाम को गुलदार ने हमला बोल दिया था जिसमे उसकी मौत हो गयी थी।इसके अलावा पाबौ ब्लॉक के कुलमोरी गांव की देवेश्वरी देवी पर भी घर के आंगन में ही हमला बोल कर गुलदार ने बुरी तरह जख्मी कर दिया था,गनीमत रही कि देवेश्वरी की जान बच गयी। लेकिन ग्रामीणों में दहशत फैल गयी थी। इन दोनों घटना से ग्रामीणों में खासा रोष उत्पन्न हो गया था और पिंजरा लगाकर गुलदार को पकड़ने की मांग की गई। जिसके बाद वन विभाग ने पिंजरा लगा दिया था। पकड़े गए गुलदार की उम्र 7 वर्ष थी।
गौरतलब है कि भारत अपनी वन्यजीव आबादी में बढ़ोत्तरी के लिहाज से दुनिया में अग्रणी है। बाघ और एशियाई हाथी का तो भारत सबसे बड़ा ठिकाना माना ही जाता है, लेकिन उसी देश में मनुष्य-जानवरों के बीच संघर्ष वन्यजीव संरक्षण की राह में सबसे बड़ी चुनौती बन गया है।
प्राकृतिक संसाधनों पर इंसानी अतिक्रमण से हाथियों के स्वाभाविक कॉरीडोर छिन गए हैं, बाघों और तेंदुओं की बढ़ती आबादी के लिए रहने की जगह और भोजन की किल्लत हो रही है,यही हाल उन छोटे जानवरों का भी है जो यूं तो अनुसूची एक में दर्ज नहीं हैं लेकिन संघर्ष का एक अलग कोण बनाते हैं। जैसे किसानों की फसल को बरबाद करते जंगली सूअर और नीलगाय और गांव खलिहानों से लेकर शहरों के आवासीय इलाकों में उत्पात मचाते बंदर।
पिछले कुछ महीनों में उत्तराखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान, ओडीशा, कर्नाटक, पंजाब और केरल जैसे कई राज्यों में बाघ और तेंदुओं के हमलों और उन्हें पीट पीट कर मार देने की घटनाएं प्रकाश में आई है,और जानवरों के हमले भी बढ़े हैं। तेजी से बढ़ती जनसंख्या के साथ घर बनाने के लिए जमीन की आवश्यकता भी बढ़ी है। फल्वरूप जंगलों की कटाई कर उंची-उंची इमारतों का निर्माण हो रहा है। कंक्रीट विकास के साथ शहर से सटे इलाकों में जंगली जानवरों का आतंक भी काफी बढ़ा है। आये दिन शहर से सटे इलाकों में गुलदारों, हाथियों,बाघों और अन्य जंगली जानवरों के उपद्रव की घटनाएं देखने को मिल रही है। ऐसे में यह सवाल भी स्वभाविक है कि जानवरों का बसेरा उजाड़कर मनुष्य अपना घर बसाएंगे तो जानवर किधर जाएंगे।
पौड़ी गढ़वाल में हुई ये घटना भी वन्यजीव और मनुष्य के बीच संघर्ष का एक उदाहरण है। इसमें कौन सबसे ज़्यादा दोषी है ये स्वार्थी मनुष्य कभी तय नही कर पायेगा।