उत्तराखंड हाईकोर्ट: शिक्षा विभाग में दिव्यांग आरक्षण घोटाले की जांच की मांग पर हुई सुनवाई,याचिकाकर्ता को एक सप्ताह में शपथपत्र दाखिल करने के निर्देश
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अपात्र दिव्यांगता प्रमाण पत्रों के आधार पर शिक्षा विभाग में आरक्षण का लाभ ले रहे कार्मिकों की जांच से जुड़े जनहित याचिका पर आज सुनवाई की। सुनवाई के दौरान संबंधित विभाग के निदेशक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालत के समक्ष उपस्थित हुए और अब तक की गई कार्यवाही का विवरण शपथपत्र के रूप में प्रस्तुत किया।
अदालत ने प्रस्तुत दस्तावेजों का अवलोकन करने के बाद याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वह एक सप्ताह के भीतर अपना प्रतिउत्तर शपथपत्र दाखिल करे। मामले की अगली सुनवाई भी एक सप्ताह बाद नियत की गई है। इससे पूर्व कोर्ट ने राज्य मेडिकल बोर्ड के महानिदेशक को नोटिस जारी कर शिक्षा विभाग में दिव्यांग आरक्षण के तहत हुई नियुक्तियों की स्थिति स्पष्ट करने को कहा था। रिकॉर्ड के अनुसार, राज्य गठन के बाद दिव्यांग आरक्षण के तहत भरे गए 52 पदों में से केवल 13 नियुक्तियां ही मेडिकल बोर्ड द्वारा सही पाई गईं। शेष अधिकांश कर्मचारी 2022 में कराए गए पुनर्मूल्यांकन में या तो उपस्थित नहीं हुए, या उनके प्रमाण पत्रों में विसंगतियाँ पाई गईं, और कुछ को दिव्यांग श्रेणी में अयोग्य पाया गया।
जनहित याचिका नेशनल फेडरेशन ऑफ द ब्लाइंड, उत्तराखंड शाखा द्वारा दायर की गई है। याचिका में आरोप है कि कई अपात्र व्यक्ति फर्जी या संदिग्ध प्रमाण पत्रों का उपयोग कर ‘दृष्टिबाधित’ श्रेणी में आरक्षण का अनुचित लाभ ले रहे हैं, जिससे वास्तविक पात्र दिव्यांग उम्मीदवार अपने संवैधानिक अधिकारों से वंचित हो रहे हैं। याचिका में यह भी कहा गया है कि प्रशासनिक स्तर पर कई शिकायतें दर्ज कराने के बावजूद कोई पारदर्शी कार्रवाई नहीं हुई।
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को अवगत कराया कि राज्य आयुक्त (दिव्यांगजन) ने भी इस मामले में दी गई शिकायत को खारिज कर दिया था और एम्स ऋषिकेश से पुन: सत्यापन कराने की मांग पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया, जिससे जांच की आवश्यकता और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।