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टीचर्स को लगा सुप्रीम झटका! अब नौकरी करनी है तो पास करना होगा TET,सुप्रीम कोर्ट ने कहा दो साल में .......?

Supreme shock for teachers! Now if you want to get a job, you will have to pass TET, in two years.......?

सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले ने देशभर के लाखों शिक्षकों को सकते में डाल दिया है। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अब पहली से आठवीं कक्षा तक पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों के लिए टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (TET) पास करना जरूरी होगा। इस फैसले से जहां शिक्षक संगठनों में गुस्सा और बेचैनी है, वहीं अभिभावक इसे शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने वाला कदम मान रहे हैं। आइए जानते हैं, इस फैसले का असर किन पर पड़ेगा और क्यों मचा है इतना बवाल।

 

 

कोर्ट के आदेश के मुताबिक, जो शिक्षक पहले से नौकरी कर रहे हैं और जिनकी सेवा में पांच साल से ज्यादा वक्त बाकी है, उन्हें अगले दो साल में TET पास करना होगा। ऐसा न करने पर उनकी नौकरी खतरे में पड़ सकती है। जिन शिक्षकों की सेवा पांच साल से कम बची है, उन्हें इस परीक्षा से छूट मिलेगी, लेकिन वे प्रमोशन के हकदार नहीं होंगे। कोर्ट ने दो टूक कहा कि शिक्षक की योग्यता पर कोई समझौता नहीं होगा। हालांकि, अल्पसंख्यक संस्थानों को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अपने शिक्षक चुनने का अधिकार है। इस वजह से यह सवाल कि क्या अल्पसंख्यक स्कूलों में भी TET जरूरी होगा, अब सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच के पास विचार के लिए भेजा गया है।

इस फैसले ने शिक्षक संगठनों में आक्रोश पैदा कर दिया है। दिल्ली गवर्नमेंट स्कूल टीचर्स एसोसिएशन के महासचिव अजय वीर यादव ने गुस्सा जाहिर करते हुए कहा कि लाखों शिक्षक पहले ही शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत तय योग्यता पूरी कर चुके हैं। अब 20 साल की नौकरी के बाद उनकी योग्यता पर सवाल उठाना अपमानजनक है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि अगर बीच नौकरी में योग्यता जांचनी ही है, तो यह नियम सबके लिए लागू होना चाहिए। ज्यूडिशरी और IAS-IPS अधिकारियों की भी दोबारा परीक्षा क्यों नहीं? सिर्फ शिक्षकों को निशाना बनाना अन्याय है।

इस फैसले का असर सरकारी और गैर-अल्पसंख्यक निजी स्कूलों पर साफ दिखेगा। सरकारी स्कूलों में नई भर्तियां अब सिर्फ TET पास करने वालों की होंगी। पुराने शिक्षकों को भी, जिनकी सेवा पांच साल से ज्यादा बची है, यह परीक्षा देनी होगी। निजी स्कूल अब बिना TET पास किए शिक्षकों को मनमाने ढंग से नहीं रख सकेंगे। अल्पसंख्यक स्कूलों का मामला अभी सुलझना बाकी है, जिस पर बड़ी बेंच फैसला करेगी।

वहीं, अभिभावक संगठनों का मानना है कि यह कदम शिक्षा की गुणवत्ता को और बेहतर बनाएगा। लेकिन शिक्षकों का गुस्सा और उनकी चिंताएं इस फैसले को विवादों के केंद्र में ला रही हैं।