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संचार साथी:सरकार का नया डिजिटल हथियार या जनता की जासूसी?मार्च 2026 से हर नए स्मार्टफोन में Mandatory होगा संचार साथी!डर या सुरक्षा?

Sanchar Saathi: The government's new digital weapon or public spying? Sanchar Saathi will be mandatory in every new smartphone from March 2026! Fear or security?

कल्पना कीजिए कि आपके फोन में एक ऐसा ऐप पहले से मौजूद हो, जो आपके डिवाइस से जुड़ी कई जरूरी जानकारियों तक पहुंच रखता हो—और जिसे हटाने की अनुमति भी पूरी तरह आपके हाथ में न हो। भारत सरकार के दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा जारी एक निर्देश के बाद कुछ ऐसा ही बड़ा बदलाव सामने आया है। इस आदेश के तहत मार्च 2026 से देश में बिकने वाले सभी नए स्मार्टफोन्स में ‘संचार साथी’ मोबाइल एप को प्री-इंस्टॉल करना अनिवार्य होगा। साथ ही, पहले से चल रहे स्मार्टफोन्स में यह एप सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिए भेजे जाने की योजना है।

सरकार का कहना है कि यह कदम नागरिकों को साइबर ठगी और मोबाइल फ्रॉड से बचाने के लिए उठाया गया है। ‘संचार साथी’ एप की मदद से उपभोक्ता अपने खोए या चोरी हुए फोन को सभी नेटवर्क्स पर ब्लॉक कर सकते हैं, IMEI नंबर की पुष्टि कर सकते हैं, अपने नाम पर जारी सिम कार्ड्स की संख्या जांच सकते हैं और संदिग्ध कॉल या मैसेज की रिपोर्ट कर सकते हैं।

हालांकि, जैसे ही कुछ यूजर्स ने सोशल मीडिया पर ऐप की परमिशन लिस्ट के स्क्रीनशॉट साझा किए, बहस तेज हो गई। रिपोर्ट्स के मुताबिक यह एप कैमरा, मैसेज, कॉल लॉग और डिवाइस संबंधी अन्य जानकारियों तक पहुंच की अनुमति मांगता है।

 

 

 

 

लाल रंग से घिरे हिस्से में जो लिखा है, उसका आसान हिंदी अर्थ क्या है चलिए पहले ये जानते हैं। इसमें साफ लिखा है कि इन निर्देशों के जारी होने के 90 दिनों के भीतर यह सुनिश्चित किया जाए कि दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा निर्धारित “संचार साथी” मोबाइल एप्लिकेशन भारत में उपयोग के लिए बनाए या आयात किए जाने वाले सभी मोबाइल फोनों में पहले से इंस्टॉल (Pre-installed) हो। यह भी सुनिश्चित किया जाए कि पहले से इंस्टॉल किया गया “संचार साथी” ऐप, फोन को पहली बार चालू करने या सेटअप करने के समय उपयोगकर्ताओं को साफ दिखाई दे और आसानी से उपलब्ध हो, और उसकी कार्यक्षमताओं (Features) को बंद या सीमित न किया गया हो।

यानि साफ शब्दों में:
सरकार ने मोबाइल कंपनियों को निर्देश दिया है कि भारत में बिकने वाले हर नए फोन में “संचार साथी” ऐप पहले से मौजूद होना चाहिए और वह यूज़र को आसानी से दिखना और काम करना चाहिए।

इसी वजह से कई लोगों को आशंका है कि इस एप के जरिए नागरिकों की निजता पर असर पड़ सकता है। चिंता यह भी जताई जा रही है कि चूंकि भविष्य में यह एप फोन में पहले से इंस्टॉल रहेगा, इसलिए यूजर्स के पास इसे इस्तेमाल न करने का विकल्प सीमित हो सकता है।

 

विपक्षी दलों ने भी सरकार के इस फैसले की तीखी आलोचना की है। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने इसे नागरिकों की प्राइवेसी पर सीधा हमला बताते हुए ‘जासूसी जैसा कदम’ करार दिया है। वहीं कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल ने कहा कि यह फैसला नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन है और सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए।

दूसरी ओर, एक्सपर्ट्स मानते हैं कि तकनीकी रूप से कोई भी ऐप, जिसे व्यापक अनुमतियां दी जाती हैं, गलत हाथों में पड़ने पर जोखिम पैदा कर सकता है।और संचार साथी यूजर्स के फोन का लगभग सारा एक्सेस मांगता है।  हालांकि सरकार का दावा है कि ‘संचार साथी’ से जुड़ा पूरा डेटा सुरक्षित रहेगा और केवल कानूनी आवश्यकता पड़ने पर ही इसे एजेंसियों के साथ साझा किया जाएगा। लेकिन डेटा कितने समय तक स्टोर रहेगा और उसकी निगरानी किसके हाथ में होगी, क्या सरकार हर नागरिक की निगरानी करना चाहती है? जैसे तमाम सवाल अभी भी अनुत्तरित हैं।

बीते वर्षों में सामने आए पेगासस स्पाइवेयर के मामले ने भी लोगों की चिंताओं को और बढ़ाया है। हालांकि सरकार बार-बार स्पष्ट कर चुकी है कि ‘संचार साथी’ कोई स्पाइवेयर नहीं, बल्कि एक साइबर सुरक्षा उपकरण है। हाल ही में दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी यह साफ किया कि इस एप को चाहें तो अनइंस्टॉल किया जा सकेगा, जिससे पहले फैल रही अफवाहों पर कुछ हद तक विराम लगा है।

अब जब मोबाइल कंपनियों को इस आदेश के पालन के लिए 90 से 120 दिनों का समय दिया गया है, तो आने वाले दिनों में यह साफ हो जाएगा कि ‘संचार साथी’ लोगों के लिए सुरक्षा कवच बनेगा या फिर निजता को लेकर नई बहस की शुरुआत करेगा।