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मित्र पुलिस पर फिर खड़े हुए सवाल: कार्यप्रणाली की आलोचना करना व्यापारी को पड़ा भारी! भरने पड़े दस हजार, लापरवाह और जिम्मेदार कर्मचारियों पर नहीं हुई कोई कार्यवाही 

Questions raised again on friend police: Criticizing the methodology cost the businessman heavily! Ten thousand had to be filled, no action was taken against careless and responsible employees

उत्तराखंड मित्र पुलिस अक्सर सुर्खियों में रहती है। कभी मामले को खुलासे को लेकर तो कभी अपनी कार्यप्रणाली को लेकर मित्र पुलिस पर सवाल भी खड़े हो जाते हैं। कुछ ऐसा ही मामला एक बार फिर सामने आया है। एक व्यापारी को मित्र पुलिस की आलोचना करना भारी पड़ गया। लेकिन अब मित्र पुलिस की यह कार्यवाही से एक बार फिर प्रदेश में सुर्खियों में है। दरअसल पिथौरागढ़ में बंदीगृह(जेल) से भागने वाली नेपाल की युवती के मामले में अभी जांच जारी है। इसमें लापरवाही बरतने वाले किसी भी जिम्मेदार कर्मचारी पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

इस बीच युवती के जेल से भागने को लेकर पिथौरागढ़ पुलिस पर टिप्पणी करने वाले एक कारोबारी को दोषी मानते हुए जांच के बाद पुलिस ने उनका दस हजार का चालान काट दिया है। साथ ही आगे सतर्क रहने की भी चेतावनी दी है। पुलिस के अनुसार फेसबुक की एक पोस्ट पर बीते 10 अगस्त को मंजू जोशी की आईडी से पिथौरागढ़ पुलिस पर टिप्पणी की गई। जांच में पता चला कि ये टिप्पणी उनके पति लक्ष्मी दत्त जोशी ने की थी। जोशी एक कारोबारी हैं और शहर के पुराने  बाजार में उनका कारोबार है। पोस्ट बंदी गृह से भागने वाली युवती को लेकर की गई थी। जोशी ने पोस्ट पर टिप्पणी के तौर पर लिखा कि पिथौरागढ़ पुलिस प्रशासन भ्रष्टाचार में लिप्त है। ये बात पिथौरागढ़ पुलिस को नागवार गुजरी। इस पोस्ट के बाद एसपी लोकेश्वर सिंह ने मामले को लेकर कार्यवाही के निदेश जारी करते हुए एसएसआई मदन सिंह बिष्ट को जांच सौंपी। 16 अगस्त को पुलिस ने व्यापारी को नोटिस जारी किया। इसके बाद जोशी कोतवाली पहुंचे। यहां पुलिस ने आईपीसी की धारा 83 के तहत उनका दस हजार का चालान कर दिया। 

वही पिथौरागढ़ पुलिस की यह कार्यवाही अब पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है। इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता मोहन सिंह नाथ कहते हैं यह अपराध की श्रेणी में नहीं आता है। आलोचना तो जजों, उनके फैसलों की भी होती है, सरकार और प्रशासन की भी होती है। व्यक्तिगत लांछन मानहानि की श्रेणी में आता है। विभाग या समूह के खिलाफ मामला नहीं बनता। लोकतंत्र में आलोचना जनता और मीडिया का अधिकार है। फिल्मों में तो पुलिस को अधिकतर भ्रष्ट ही बताया जाता है। उपरोक्त मामले में लगाई गई धारा गलत है। राज्य अर्थात पुलिस कार्यप्रणाली की आलोचना जनता कर सकती है।