Manipur Violence:आखिर क्यों मणिपुर में फैली हिंसा?जातीय हिंसा,आगजनी,तोड़फोड़ हत्या,इंटरनेट बंद!मां बाप को बच्चों को देनी पड़ी नींद की गोलियां!क्या है इन सबके पीछे की वजह?

Manipur Violence:why the violence spread in Manipur? Caste violence, arson, vandalism, murder, internet shutdown! Parents had to give sleeping pills to children! What is the reason behind all this?

मणिपुर पिछले काफी दिनों से हिंसा की आग में सुलग रहा है। जातीय हिंसा, आगजनी, तोड़फोड़, लूटपाट, हत्या...हालात भयावह हैं। इंटरनेट बंद है। उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए जा चुके हैं। हजारों लोग अपना घर-बार छोड़कर पड़ोसी राज्य असम में पलायन कर रहे हैं। राजधानी इम्फाल से दक्षिण में 63 किलोमीटर पर स्थित चुराचंदपुर जिला हिंसा का केंद्र बना हुआ है। केंद्र सरकार लगातार हालात पर नजर बनाए हुए है। बड़ी तादाद में आर्मी और असम राइफल्स के जवानों को तैनात किया गया है।
माता-पिता इतने डरे हुए थे कि उन्होंने बच्चों को नींद की दवाइयां दे दीं ताकि वे रोएं नहीं. निवासियों को डर है कि आने वाले दिनों में कहीं हमले और और खून-खराबा बड़े पैमाने पर न हो। 


आखिर क्या वजह है कि मणिपुर राज्य आज भयावह स्थिति में है,हिंसा आगजनी हत्या जैसे हालात आखिर क्यों बने?


इस पूरी हिंसा की वजह मणिपुर हाई कोर्ट का एक आदेश था. इस आदेश में हाई कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि वह 10 साल पुरानी सिफारिश को लागू करे जिसमें गैर-जनजाति मैतेई समुदाय को जनजाति में शामिल करने की बात कही गई थी।


तीन मई को हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद इंफाल घाटी में स्थित मैतेई और पहाड़ी इलाकों में रहने वाले कुकी समुदाय के बीच हिंसा भड़क उठी. मैतेई मणिपुर में प्रमुख जातीय समूह है और कुकी सबसे बड़ी जनजातियों में से एक है. 
मणिपुर में 16 जिले हैं. राज्य की जमीन इंफाल घाटी और पहाड़ी जिलों के तौर पर बंटी हुई है. इंफाल घाटी मैतेई बहुल हैं. मैतई जाति के लोग हिंदू समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. 

 

 

पहाड़ी जिलों में नागा और कुकी जनजातियों का वर्चस्व है. हालिया हिंसा चुराचांदपुर पहाड़ी जिलों में ज्यादा देखी गई. यहां पर रहने वाले लोग कुकी और नागा ईसाई हैं. बता दें कि चार पहाड़ी जिलों में कुकी जाति का प्रभुत्व है. 

मणिपुर की आबादी लगभग 28 लाख है. इसमें मैतेई समुदाय के लोग लगभग 53 फीसद हैं. मणिपुर के भूमि क्षेत्र का लगभग 10% हिस्सा इन्हीं  लोगों के कब्जे में हैं. ये लोग मुख्य रूप से इंफाल घाटी में बसे हुए हैं. कुकी जातीय समुह मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का विरोध कर रही है.
कुकी जातीय समुह में कई जनजातियाँ शामिल हैं. मणिपुर में मुख्य रूप से पहाड़ियों में रहने वाली विभिन्न कुकी जनजातियाँ वर्तमान में राज्य की कुल आबादी का 30 फीसद हैं.

 

कुकी जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने का विरोध करती आई है. इन जनजातियों का कहना है कि अगर मैती समुदाय को आरक्षण मिल जाता है तो वे सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले से वंचित हो जाएंगे. कुकी जनजातियों का ऐसा मानना है कि आरक्षण मिलते ही मैतेई लोग अधिकांश आरक्षण को हथिया लेंगे.

बता दें कि अनुसूचित जनजाति मांग समिति मणिपुर बीते 10 सालों से राज्य सरकार से आरक्षण की मांग कर रहा है. किसी भी सरकार ने इस मांग को लेकर अबतक कोई भी फैसला नहीं सुनाया. आखिरकार मैतेई जनजाति कमेटी ने कोर्ट का रुख किया. कोर्ट ने इस मांग को लेकर राज्य सरकार से केंद्र से सिफारिश करने की बात कही है. इस सिफारिश के बाद ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर ने विरोध जताना शुरू कर दिया.

मैतेई ट्राइब यूनियन की एक याचिका पर 19 अप्रैल को सुनवाई हुई थी. सुनवाई पूरी होने के बाद 20 अप्रैल को मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने की बात कही. मामले में कोर्ट ने 10 साल पुरानी केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की सिफरिश पेश करने के लिए कहा था. 

सुनवाई में कोर्ट ने मई 2013 में जनजाति मंत्रालय के एक पत्र का हवाला दिया था. इस पत्र में मणिपुर की सरकार से सामाजिक और आर्थिक सर्वे के साथ जातीय रिपोर्ट के लिए कहा गया था.

शिड्यूल ट्राइब डिमांड कमिटी ऑफ मणिपुर यानी एसटीडीसीएम 2012 से ही मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने की मांग करता आया है. हाईकोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने ये बताया कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ. उससे पहले मैतेई को जनजाति का दर्जा मिला हुआ था. दलील ये थी कि मैतेई को जनजाति का दर्जा इस समुदाय, उसके पूर्वजों की जमीन, परंपरा, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए जरूरी है.

मणिपुर उच्च न्यायालय ने 20 अप्रैल को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति की लिस्ट में शामिल करने के अनुरोध पर चार सप्ताह के भीतर विचार करें. कोर्ट ने कहा कि सिफारिश को केंद्र के पास विचार के लिए भेजा जाए. मेइती को एसटी श्रेणी में शामिल करने के कदम के विरोध में कुकी संगठनों ने बुधवार को 'आदिवासी एकजुटता मार्च' निकाला. मार्च के बाद हिंसा भड़क गई. 

विरोध के पीछे मुख्य कारण यह था कि मेइती एसटी का दर्जा चाहते थे. सवाल ये उठने लगा कि उन्नत होने के बावजूद उन्हें एसटी का दर्जा कैसे मिल सकता है? ऑल मणिपुर ट्राइबल यूनियन के महासचिव केल्विन नेहसियाल ने इंडिया टुडे को बताया कि अगर उन्हें एसटी का दर्जा मिलता है तो वे हमारी सारी जमीन ले लेंगे. 

मीडीया रिपोर्ट्स के मुताबिक केल्विन ने बताया कि विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि अगर मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा दे दिया गया तो उनकी जमीनें पूरी तरह से खतरे में पड़ जाएंगी और इसीलिए वो अपने अस्तित्व के लिए छठी अनुसूची चाहते हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कुकी को सुरक्षा की जरूरत थी और अभी भी है क्योंकि वे बहुत गरीब थे. उनके पास कोई स्कूल नहीं था और झूम खेती पर जीवित थे. वहीं मैतेई जाति के लोगों का ये कहना है कि एसटी दर्जे का विरोध सिर्फ एक दिखावा है. कुकी आरक्षित वन क्षेत्रों में बस्तियां बना कर अवैध कब्जा कर रहे हैं. 
ऑल मेइतेई काउंसिल के सदस्य चंद मीतेई पोशंगबाम ने मीडिया को बताया कि एसटी दर्जे के विरोध की आड़ में उन्होंने ( कुकी ने) मौके का फायदा उठाया, उनकी मुख्य समस्या निष्कासन अभियान है. ये अभियान पूरे मणिपुर में चलाया जा रहा है न कि केवल कुकी क्षेत्र में, लेकिन इसका विरोध सिर्फ कुकीज ही कर रहे हैं. 

इस साल मार्च में कई मणिपुरी संगठनों ने 1951 को आधार वर्ष मानते हुए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के कार्यान्वयन के लिए नई दिल्ली में जंतर मंतर पर एक प्रदर्शन किया. 

कई संगठनों का दावा है कि मणिपुर में 24.5 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ अचानक जनसंख्या वृद्धि देखी जा रही है. इन संगठनों ने ये दावा किया कि मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में जनसंख्या में तेजी से उछाल आया है. ऐसे में ये संगठन एनआरसी को मणिपुर के हित में बता रहे हैं, उनका कहना है कि यह राज्य की सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के लिए जरूरी था. 

ऑल मेइतेई काउंसिल के चंद मीतेई पोशांगबामोफ ने इंडिया टुडे को बताया कि कुकी म्यांमार सीमा के पार से अवैध रूप से पलायन कर रहे हैं और मणिपुर में वन भूमि पर कब्जा कर रहे हैं. हाल ही में मणिपुर सरकार ने आरक्षित वन क्षेत्रों में अवैध बस्तियों को खाली करने के लिए एक बेदखली अभियान शुरू किया. यह अभियान सभी क्षेत्रों में था, जिसमें मैतेई और मुस्लिम लोग रहते थे, लेकिन केवल कुकी ही विरोध कर रहे हैं. 

चंद मीतेई के मुताबिक म्यांमार की सीमा से लगे क्षेत्रों में पिछले दो दशकों में अचानक जनसंख्या वृद्धि के कारण मेइती एनआरसी की मांग कर रहे हैं. म्यांमार के अवैध अप्रवासी 1970 के दशक से मणिपुर में बस रहे हैं, लेकिन आंदोलन अब तेज हो गया है."

वहीं कुकी जनजाति का कहना है कि बेदखली अभियान और एसटी दर्जे की मांग कुकी को उनकी जमीन से दूर करने के लिए उठाया गया एक कदम है. कुकी का ये भी दावा है कि एनआरसी एक मनगढ़ंत कहानी है. हमारे पास (कुकी के पास) अपनी नागरिकता साबित करने के लिए सभी जरूरी दस्तावेज हैं और हम मेइती समुदाय के साथ शांति से रह रहे हैं. मेइती अब हमारी जमीन हड़पना चाहते हैं.

2017 में मणिपुर के ऑल मणिपुर ट्राइबल यूनियन के सदस्य रह चुके केल्विन नेहसियाल ने इंडिया टुडे को बताया कि एन बीरेन सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद यह समस्या शुरू हुई. केल्विन का दावा है कि भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने कुकी जिलों में समृद्ध पेट्रोलियम भंडार और अन्य खनिजों के भंडार पाए. उनका आरोप है कि मैतेई समुदाय के लोग ही राज्य मशीनरी को चलाते हैं और अब वो उनका सब कुछ लूट लेना चाहते हैं.